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मछलियाँ पकड़ने का शौकीन भी था वो सुरों का चितेरा

( पिछले अंक से आगे ...) चाहें कोई पिछली पीढ़ी का श्रोता हो या आज की पीढ़ी का युवा वर्ग हर कोई नौशाद के संगीत पर झूमता है। ज़रा कुछ गीतों पर नजर डालिये... मधुबाला का 'प्यार किया तो डरना क्या' जिस पर आज के दौर में रीमिक्स बनाया जाता है... और जब दिलीप कुमार का "नैन लड़ जई हैं तो मनवा मा.." सुन ले तो कदम अपने आप थिरकने लगते हैं। आज ज्यादातर लोग उस दौर से ताल्लुक नहीं रखते पर फिर भी लगता है कि नौशाद फिल्मों में संगीत नहीं देते थे...बल्कि जादू बिखेरते थे। उनके संगीत में लोक संगीत की झलक मिलती है। लखनऊ में जन्में १८ वर्षीय बालक से जब उसके पिता ने घर और संगीत में से एक को चुनने को कहा तब उसने संगीत को चुना और खूबसूरत सपने और कड़वी सच्चाइयों वाले मुम्बई शहर जा पहुँचा। आँखों में हजारों सपने लिये फुटपाथ को घर बनाये इस शानदार संगीतकार ने सैकड़ों धुनें तैयार कर दी। यदि फिल्मों पर गौर करें तो महल, बैजू बावरा, मदर इंडिया, मुगल-ए-आज़म, दर्द, मेला, संघर्ष, राम और श्याम, मेरे महबूब-जैसी न जाने कितनी ही फिल्में हैं। नौशाद की बात करें और लता व रफी की बात न हो तो क्या फायदा। मुगल-ए-आज़म

जवाँ है मुहब्बत, हसीं है ज़माना....आज भी नौशाद के संगीत का

"आज पुरानी यादों से कोई मुझे आवाज़ न दे...", नौशाद साहब के इस दर्द भरे नग्में को आवाज़ दी थी मोहम्मद रफी साहब ने, पर नौशाद साहब चाहें या न चाहें संगीत प्रेमी तो उन्हें आवाज़ देते रहेंगें, उनके अमर गीतों को जब सुनेंगें उन्हें याद करते रहेंगे. तपन शर्मा सुना रहें हैं दास्ताने नौशाद, और आज की महफ़िल है उन्हीं की मौसिकी से आबाद. नौशाद का जन्म २५ दिसम्बर १९१९ में एक ऐसे परिवार में हुआ, जिसका संगीत से दूर दूर तक नाता नहीं था और न ही संगीत में कोई रुचि थी। पर नौशाद शायद जानते थे कि उन्हें क्या करना है। दस साल की उम्र में भी जब वे फिल्म देख कर लौटते तो उनकी डंडे से पिटाई हुआ करती थी। ये उस समय की बातें हैं जब फिल्मों में संगीत नहीं हुआ करता था। और थियेटर में पर्दे के पास बैठे संगीतकार ही संगीत बजा कर फिल्म के दृश्य के हिसाब से तालमेल बिठाया करते थे। वे कहते थे कि वे फिल्म के लिये थियेटर नहीं जाते बल्कि उस ओर्केस्ट्रा को सुनने जाते हैं। उन संगीतकारों को सुनने जो हारमोनियम, पियानो, वायलिन आदि बजाते हुए भी दृश्य की गतिविधियों के आधार पर आपस में संतुलन बनाये रखते हैं। और यही वो पल होते

बिल्लू को कहना नही कोई हज्ज़ाम...

सप्ताह की संगीत सुर्खियाँ (11) नामांकन में आना भी एक उपलब्धि है - पंडित रवि शंकर ग्रैमी पुरस्कार विजेता उस्ताद जाकिर हुसैन को बधाई देने वालों में तीन बार ग्रैमी हुए पंडित रवि शंकर भी हैं. एक ताज़ा इंटरव्यू में पंडित जी ने कहा-"विश्व मोहन भट्ट को जब ग्रैमी मिला तब इस बाबत मीडिया में जग्रता आयी. मेरे पहले दो सम्मानों के बारे में तो मुझे भी ख़बर नही लगी देशवासियों की बात तो दूर है. कई बार जूरी के सदस्यों के वोट न मिल पाने के कारण कोई अच्छा संगीतकार विजयी होने से रह जाता है पर इससे उसके संगीत की महत्ता कम नही होती, मेरा मानना है कि नामांकन में आना भी एक बड़े सम्मान की बात है. मुझे दुःख है कि लक्ष्मी शंकर ग्रैमी नही जीत पायी, वे बेहद प्रतिभाशाली हैं.पर खुशी इस बात की है कि जाकिर ने इसे जीता." गौरतलब है कि मोहन वीणा वादक पंडित विश्व मोहन भट्ट भी पंडित रवि शंकर जी के ही शिष्य हैं. भारत रत्न पंडित रवि शंकर ऐ आर रहमान को भी बधाई देना नही भूले-"मैं हिन्दी फ़िल्म संगीतकारों का सालों से प्रशंसक रहा हूँ, सी रामचंद्र, सलिल चौधरी, एस डी और आर डी बर्मन, इल्ल्याराजा और अब ऐ आर रहमान जो न

सुनो कहानी: प्रेमचंद की 'ठाकुर का कुआँ''

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'ठाकुर का कुआँ' 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शन्नो अग्रवाल की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना ' 'पुत्र-प्रेम' ' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की अमर कहानी "ठाकुर का कुआँ" , जिसको स्वर दिया है डॉक्टर मृदुल कीर्ति ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 7 मिनट 42 सेकंड। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी ‘हाथ-पांव तुड़वा आएगी और कुछ न होगा। बैठ चुपके से। ब्राह्मण देवता आशीर्वाद देंगे, ठाकुर लाठी मारेगें, साहूजी एक पा

खुदाया खैर...एक बार फ़िर शाहरुख़ की आवाज़ बने अभिजीत

"बड़ी मुश्किल है, खोया मेरा दिल है..." शाहरुख़ खान के उपर फिल्माए गए इस गीत में आवाज़ थी अभिजीत भट्टाचार्य की. जब ये गीत आया तो श्रोताओं को लगा कि यही वो आवाज़ है जो शाहरुख़ के ऑन स्क्रीन व्यक्तित्व को सहज रूप से उभरता है. पर शायद वो ज़माने लद चुके थे जब नायक अपनी फिल्मों के लिए किसी ख़ास आवाज़ की फरमाईश करता था. जहाँ शाहरुख़ के शुरूआती दिनों में कुमार सानु ने उनके गीतों को आवाज़ दी (कोई न कोई चाहिए..., और काली काली ऑंखें...), वहीँ बाद में उनकी रोमांटिक हीरो की छवि पर उदित नारायण की आवाज़ कुछ ऐसे जमी की सुनने वाले बस वाह वाह कर उठे, "डर" और "दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगें" के गीत आज तक सुने और याद किए जाते हैं. फ़िर हीरो की छवि बदली, पहले जिस नायक का लक्ष्य नायिका को पाना मात्र होता था, वह अब अपने कैरिअर के प्रति भी सजग हो चुका था. वो चाँद तारे तोड़ने के ख्वाब सजाने लगा और ऐसे नायक को परदे पर साकार किया शाहरुख़ ने एक बार फ़िर अपनी फ़िल्म "येस् बॉस" में और यहाँ फ़िर से मिला उन्हें अभिजीत की आवाज़ का साथ और इस फ़िल्म के गीतों ने इस नायक-गायक की जोड़

मिलिए उभरती हुई पार्श्व गायिका तरन्नुम मालिक से

लगभग एक महीने पहले आवाज़ पर हमने एक नए गीत " एक धक्का दो ..." का विश्वव्यापी उदघाटन किया था, जिसे जबरदस्त सराहना मिली थी. उभरते हुए निर्देशक/गीतकार अभिषेक भोला (जिनकी आने वाली फ़िल्म "कॉफी" को हिंद युग्म मीडिया सहयोग प्रदान करने जा रहा है) ने इस गीत के बोल लिखे थे, धुन और आवाज़ थी, फ़िल्म इंडस्ट्री में तेज़ी से कमियाबी की सीढियां चढ़ती गायिका तरन्नुम मालिक की. इस गीत का विडियो भी बेहद चर्चित हुआ था जिसे ख़ुद अभिषेक ने निर्देशित किया था. आज हम आपकी मुलाकात इस गीत की गायिका तरन्नुम मालिक से करवा रहे हैं. मात्र २१ वर्षीया इस युवा गायिका ने बहुत कम समय में ही इंडस्ट्री के बड़े नामों को अपनी प्रतिभा से प्रभावित किया है. इससे पहले कि हम बातचीत शुरू करें, संगीतकार शंकर एहसान और लॉय के निर्देशन में उनका गाया फ़िल्म "जोंनी गद्दार" का ये दमदार गीत सुनिए - दिल्ली में जन्मी तरन्नुम को संगीत विरासत में मिला, उनके पिता रमेश मालिक ने बचपन से ही उनके हुनर को पहचाना और उनके दिशा निर्देश में में तरन्नुम ने पार्श्व गायन को अपना कैरिअर चुना. निरंतर रियाज़ और स्टेज कार्यक्रमों

मेरी प्यास हो न हो जग को...मैं प्यासा निर्झर हूँ...- कवि गीतकार पंडित नरेंद्र शर्मा जी की याद में

महान कवि और गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा जी को उनकी पुण्यतिथि पर याद कर रही है सुपुत्री लावण्य शाह - काव्य सँग्रह "प्यासा ~ निर्झर" की शीर्ष कविता मेँ कवि नरेँद्र कहते हैँ- "मेरे सिवा और भी कुछ है, जिस पर मैँ निर्भर हूँ मेरी प्यास हो ना हो जग को, मैँ,प्यासा निर्झर हूँ" हमारे परिवार के "ज्योति -कलश" मेरे पापा और फिल्म "भाभी की चूडीयाँ " फिल्म के गीत मेँ,"ज्योति कलश छलके" शब्द भी उन्हीँ के लिखे हुए हैँ जिसे स्वर साम्राज्ञी लता दीदी ने भूपाली राग मेँ गा कर फिल्मोँ के सँगीत मेँ साहित्य का,सुवर्ण सा चमकता पृष्ठ जोड दिया !"यही हैँ मेरे लिये पापा"! हमारे परिवार के सूर्य ! जिनसे हमेँ ज्ञान, भारतीय वाँग्मय, साहित्य,कला,संगीत,कविता तथा शिष्टाचार के साथ इन्सानियत का बोध पाठ भी सहजता से मिला- ये उन के व्यक्तित्त्व का सूर्य ही था जिसका प्रभामँडल "ज्योति कलश" की भाँति, उर्जा स्त्रोत बना हमेँ सीँचता रहा - मेरे पापा उत्तर भारत, खुर्जा ,जिल्ला बुलँद शहर के जहाँगीरपुर गाँव के पटवारी घराने मेँ जन्मे थे.प्राँरभिक शिक्षा खुर्जा मेँ हुई