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चित्रकथा - 44: फ़िल्म-संगीत में मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़लें

अंक - 44 फ़िल्म-संगीत में मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़लें "आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक..."  रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं है। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। हमारी दिलचस्पी का आलम ऐसा है कि हम केवल फ़िल्में देख कर या गाने सुनने तक ही अपने आप को सीमित नहीं रखते, बल्कि फ़िल्म संबंधित हर तरह की जानकारियाँ बटोरने का प्रयत्न करते रहते हैं। इसी दिशा में आपके हमसफ़र बन कर हम आ रहे हैं हर शनिवार ’चित्रकथा’ लेकर। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ के पहले अंक म

फिल्मी चक्र समीर गोस्वामी के साथ || एपिसोड 13 || जयकिशन

Filmy Chakra With Sameer Goswami  Episode 13 Jaikishan फ़िल्मी चक्र कार्यक्रम में आप सुनते हैं मशहूर फिल्म और संगीत से जुडी शख्सियतों के जीवन और फ़िल्मी सफ़र से जुडी दिलचस्प कहानियां समीर गोस्वामी के साथ, लीजिये आज इस कार्यक्रम के तेरहवें एपिसोड में सुनिए कहानी सुरों के बाज़ीगर जयकिशन की...प्ले पर क्लिक करें और सुनें.... फिल्मी चक्र में सुनिए इन महान कलाकारों के सफ़र की कहानियां भी - किशोर कुमार शैलेन्द्र  संजीव कुमार  आनंद बक्षी सलिल चौधरी  नूतन  हृषिकेश मुखर्जी  मजरूह सुल्तानपुरी साधना  एस डी बर्मन राजेंद्र कुमार  शकील बदायुनी 

ठुमरी सिन्धु भैरवी और किरवानी : SWARGOSHTHI – 342 : THUMARI SINDHU BHAIRAVI & KIRVANI

स्वरगोष्ठी – 342 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 9 : ठुमरी सिन्धु भैरवी और किरवानी विरहिणी नायिका की व्यथा – “का करूँ सजनी आए न बालम...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला “फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी” की नौवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी सहयोगी संज्ञा टण्डन के साथ आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पिछली श्रृंखला की भाँति इस श्रृंखला में भी हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। गीतों का परिचयात्मक आलेख हमारे सम्पादक-मण्डल की सदस्य संज्ञा टण्डन ने प्रस्तुत किया है। आपको हमारा यह प्रयोग कैसा लगा, अवश्य सूचित कीजिएगा। दरअसल यह श्रृंखला पूर्व में प्रकाशित / प्रसारित की गई थी। हमारे पाठकों / श्रोताओं को यह श्रृंखला सम्भवतः कुछ अधिक रुचिकर प्रतीत हुई थी। अनेक संगीत-प्रेमियों ने इसके पुनर्प्रसारण का आग्रह किया है। सभी सम्मानित पाठकों / श्रोताओं के अनुरोध का सम्मान करते हुए और पूर्वप्रकाशित श्रृंखला में थोड़ा परिमार्जन करते हुए यह श्रृंखला हम पुनः प्रस्तुत कर

चित्रकथा - 43: पुत्र ॠतुराज सिसोदिया की यादों में पिता बसन्त प्रकाश और ताऊ खेमचन्द प्रकाश

अंक - 43 पुत्र ॠतुराज सिसोदिया की यादों में पिता बसन्त प्रकाश और ताऊ खेमचन्द प्रकाश "रफ़्ता-रफ़्ता आप मेरे दिल के मेहमाँ हो गए..."  फ़िल्म संगीत के सुनहरे युग में जहाँ एक तरफ़ कुछ संगीतकार लोकप्रियता की बुलंदियों तक पहुँचे, वहीं दूसरी तरफ़ बहुत से संगीतकार ऐसे भी हुए जो बावजूद प्रतिभा सम्पन्न होने के बहुत अधिक दूर तक नहीं बढ़ सके। आज जब सुनहरे दौर के संगीतकारों की बात चलती है तब अनिल बिस्वास, नौशाद, सी. रामचन्द्र, रोशन, सचिन देव बर्मन, ओ.पी. नय्यर, मदन मोहन, रवि, हेमन्त कुमार, कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, राहुल देव बर्मन जैसे नाम सब से पहले लिए जाते हैं। इन चमकीले नामों की चमक के सामने बहुत से नाम इस चकाचौंध में नज़रंदाज़ हो जाते हैं। ऐसा ही एक नाम है संगीतकार बसंत प्रकाश का। जी हाँ, वही बसंत प्रकाश जो 40 के दशक के सुप्रसिद्ध संगीतकार खेमचंद प्रकाश के छोटे भाई थे। खेमचंद जी की तरह बसंत प्रकाश इतने मशहूर तो नहीं हुए, पर फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने को समृद्ध करने में अपना अमूल्य योगदान दिया। आज बसंत प्रकाश जी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन यह हमारा सौभाग्य है कि

फिल्मी चक्र समीर गोस्वामी के साथ || एपिसोड 12 || शकील बदायूनी

Filmy Chakra With Sameer Goswami  Episode 12 Shakeel Badauni फ़िल्मी चक्र कार्यक्रम में आप सुनते हैं मशहूर फिल्म और संगीत से जुडी शख्सियतों के जीवन और फ़िल्मी सफ़र से जुडी दिलचस्प कहानियां समीर गोस्वामी के साथ, लीजिये आज इस कार्यक्रम के बारहवें एपिसोड में सुनिए कहानी सहज शब्दों के जादूगर शकील बदायुनी की...प्ले पर क्लिक करें और सुनें.... फिल्मी चक्र में सुनिए इन महान कलाकारों के सफ़र की कहानियां भी - किशोर कुमार शैलेन्द्र  संजीव कुमार  आनंद बक्षी सलिल चौधरी  नूतन  हृषिकेश मुखर्जी  मजरूह सुल्तानपुरी साधना  एस डी बर्मन राजेंद्र कुमार 

ठुमरी पीलू और देश : SWARGOSHTHI – 341 : THUMARI PILU & DESH

स्वरगोष्ठी – 341 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 8 : ठुमरी पीलू और देश दो भिन्न रागों में श्रृंगार रस से परिपूर्ण ठुमरी  - “गोरी तोरे नैन काजर बिन कारे...” आशा भोसले और मोहम्मद रफी इकबाल बानो, उस्ताद अख्तर अली और ज़ाकिर अली खाँ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला “फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी” की इस आठवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी सहयोगी संज्ञा टण्डन के साथ आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पिछली श्रृंखला की भाँति इस श्रृंखला में भी हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं। गीतों का परिचयात्मक आलेख हमारे सम्पादक-मण्डल की सदस्य संज्ञा टण्डन ने प्रस्तुत किया है। आपको हमारा यह प्रयोग कैसा लगा, अवश्य सूचित कीजिएगा। दरअसल यह श्रृंखला पूर्व में प्रकाशित / प्रसारित की गई थी। हमारे पाठकों / श्रोताओं को यह श्रृंखला सम्भवतः कुछ अधिक रुचिकर प्रतीत हुई थी। अनेक संगीत-प्रेमियों ने इसके पुनर्प्रसारण का आग्रह किया है। सभी सम्मानित पाठकों / श्रोताओं के अनुरोध का सम्म

चित्रकथा - 42: फ़िल्मी गीतों में पहेलियाँ

अंक - 42 फ़िल्मी गीतों में पहेलियाँ "ईचक दाना बीचक दाना दाने उपर दाना..."  किसी व्यक्ति की बुद्धि या समझ की परीक्षा लेने वाले एक प्रकार के प्रश्न, वाक्य अथवा वर्णन को पहेली (Puzzle) कहते हैं जिसमें किसी वस्तु का लक्षण या गुण घुमा फिराकर भ्रामक रूप में प्रस्तुत किया गया हो और उसे बूझने अथवा उस विशेष वस्तु का ना बताने का प्रस्ताव किया गया हो। इसे 'बुझौवल' भी कहा जाता है। पहेली व्यक्ति के चतुरता को चुनौती देने वाले प्रश्न होते है। जिस तरह से गणित के महत्व को नकारा नहीं जा सकता, उसी तरह से पहेलियों को भी नज़रअन्दाज नहीं किया जा सकता। पहेलियां आदि काल से व्यक्तित्व का हिस्सा रहीं हैं और रहेंगी। वे न केवल मनोरंजन करती हैं पर दिमाग को चुस्त एवं तरो-ताजा भी रखती हैं। हमारे फ़िल्मी गीतों में भी कई बार हमें पहेलियाँ मिली हैं और ये गीत पहेलियों की वजह से यादगार बन गए हैं। आइए आज ’चित्रकथा’ में नज़र डालें कुछ ऐसे ही फ़िल्मी गीतों पर। हिं दी में पहेलियों का व्यापक प्रचलन रहा है। पहेलियाँ मूलत: दो प्रकार की हैं। कुछ पहेलियाँ ऐसी