स्वरगोष्ठी – 472 में आज
काफी थाट के राग – 16 : राग सूर मल्हार
पण्डित भीमसेन जोशी से राग सूर मल्हार की खयाल रचनाएँ और लता मंगेशकर से फिल्मी गीत सुनिए
पण्डित भीमसेन जोशी |
लता मंगेशकर |
मल्हार अंग के रागों की श्रृंखला में कुछ राग अपने युग के महान संगीतज्ञों, कवियों के नाम पर प्रचलित है। ऐसा ही एक उल्लेखनीय राग है; सूर मल्हार। ऐसी मान्यता है कि इस राग की रचना हिन्दी के भक्त कवि सूरदास ने की थी। इस ऋतु प्रधान राग में निबद्ध रचनाओं में पावस के सजीव चित्रण का गुण तो होता ही है, नायिका के विरह के भाव को सम्प्रेषित करने की क्षमता भी होती है। राग सूर मल्हार काफी थाट का राग माना जाता है। इसकी जाति औडव-षाडव होती है, अर्थात आरोह में पाँच और अवरोह में छः स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इसका वादी मध्यम और संवादी षडज होता है। यह उत्तरांग प्रधान राग है। राग सूर मल्हार में दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता है। आरोह में गान्धार और धैवत स्वरों का तथा अवरोह में गान्धार स्वर का प्रयोग वर्जित होता है। काफी थाट के राग सूर मल्हार की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए शास्त्रज्ञ मयूर वीणा वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र ने बताया था कि राग सूर मल्हार का मुख्य अंग है; सा, रे, प, म, नी(कोमल), म, प, नी(कोमल), ध, प, म, रे, सा होता है। राग के गायन अथवा वादन में यदि सारंग झलकने लगे तो नी(कोमल), ध, म, प, नी(कोमल), ध, प स्वरों का प्रयोग करने से सारंग तिरोहित हो जाता है। श्री मिश्र के अनुसार सारंग के भाव में मेघ मल्हारांश उद्वेग के चपल और गम्भीर ओज से युक्त भाव में राग देस के अंश के विरह भाव के मिश्रण से कसकयुक्त उल्लास में वेदना के मिश्रण से नये रसभाव का सृजन होता है। अब आप पण्डित भीमसेन जोशी से राग सूर मल्हार में निबद्ध दो मोहक खयाल रचनाएँ सुनिए। मध्यलय की रचना एकताल में है, जिसके बोल हैं; "बादरवा गरजत आए..." और इसके बाद द्रुत तीनताल की बन्दिश के बोल हैं; "बादरवा बरसन लागी..."।
राग सूर मल्हार : "बादरवा गरजत आए..." और "बादरवा बरसन लागी..." : पण्डित भीमसेन जोशी
फिल्मी संगीतकारों ने वर्षा ऋतु के इस राग सूर मल्हार पर आधारित एकाध गीत ही रचे हैं, जिसमें वर्षा ऋतु के अनुकूल भावों की अभिव्यक्ति हो। संगीतकार वसन्त देसाई का संगीतबद्ध किया एक कर्णप्रिय गीत हमे अवश्य उपलब्ध हुआ है। फिल्म संगीतकारों में वसन्त देसाई एक ऐसे संगीतकार रहे हैं जिनकी रचनाओं में रागदारी संगीत के प्रति लगाव और उनकी प्रतिबद्धता के स्पष्ट दर्शन होते हैं। मल्हार अंग के रागों के प्रति उनका लगाव उनकी अन्तिम फिल्म ‘शक’ तक निरन्तर बना रहा। इस श्रृंखला की 470वीं कड़ी में बसन्त देसाई द्वारा राग मियाँ मल्हार में स्वरबद्ध ‘गुड्डी’ का आकर्षक गीत आप सुन चुके हैं। आज के अंक में हम राग सूर मल्हार के स्वरों में पिरोया उनका एक गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। 1967 में प्रदर्शित फिल्म "रामराज्य" का यह गीत है, जिसे भरत व्यास ने लिखा, वसन्त देसाई ने संगीतबद्ध किया और लता मंगेशकर ने स्वर दिया है। राग "सूर मल्हार" के स्वर में पगे इस फिल्मी रचना को आप सुनिए और मुझे इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग सूर मल्हार : "डर लागे गरजे बदरवा..." : लता मंगेशकर : फिल्म - रामराज्य
संगीत पहेली
"स्वरगोष्ठी" के 472वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1976 में प्रदर्शित एक फिल्म के राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर देना आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। श्रृंखला के तीसरे सत्र अर्थात 480वें अंक की पहेली का उत्तर प्राप्त होने के बाद तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे उन्हें वर्ष के तृतीय सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।
1 - इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का स्पर्श है?
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।
3 – इस गीत में किस सुपरिचित पार्श्वगायिका के स्वर है?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia9@gmail.com पर ही शनिवार 1 अगस्त, 2020 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। फेसबुक पर पहेली का उत्तर स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेताओं के नाम हम उनके शहर/ग्राम, प्रदेश और देश के नाम के साथ “स्वरगोष्ठी” के अंक संख्या 474 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत, संगीत या कलाकार के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के सही उत्तर और विजेता
“स्वरगोष्ठी” के 470वें अंक में हमने आपको 1951 में प्रदर्शित फिल्म "मल्हार" के एक गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से कम दो सही उत्तरों की अपेक्षा की थी। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग - गौड़ मल्हार दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – तीनताल तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – लता मंगेशकर।
‘स्वरगोष्ठी’ की इस पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; अहमदाबाद, गुजरात से मुकेश लाडिया, बीकानेर, राजस्थान से लक्ष्मीनारायण सोनी, चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों में से प्रत्येक को दो-दो अंक मिलते हैं। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से आप सभी को हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर ईमेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नए प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं।
संवाद
मित्रों, इन दिनों हम सब भारतवासी, प्रत्येक नागरिक को कोरोना वायरस से मुक्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं। अब हम काफी हद तक हम सफल भी हुए हैं। परन्तु अभी भी हमें पर्याप्त सतर्कता बरतनी है। विश्वास कीजिए, हमारे इस सतर्कता अभियान से कोरोना वायरस पराजित होगा। आप सब से अनुरोध है कि प्रत्येक स्थिति में चिकित्सकीय और शासकीय निर्देशों का पालन करें और अपने घर में सुरक्षित रहें। इस बीच शास्त्रीय संगीत का श्रवण करें और अनेक प्रकार के मानसिक और शारीरिक व्याधियों से स्वयं को मुक्त रखें। विद्वानों ने इसे “नाद योग पद्धति” कहा है। “स्वरगोष्ठी” की नई-पुरानी श्रृंखलाएँ सुने और पढ़ें। साथ ही अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवगत भी कराएँ।
अपनी बात
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी नई श्रृंखला “काफी थाट के राग” की सोलहवीं कड़ी में आज आपने काफी थाट के जन्य राग सूर मल्हार का परिचय प्राप्त किया। राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए सुविख्यात संगीतज्ञ पण्डित भीमसेन जोशी के स्वरों में राग सूर मल्हार की दो रचनाओं के माध्यम से राग के शास्त्रीय स्वरूप का दर्शन कराया। इसके साथ ही “स्वरगोष्ठी” की परम्परा के अनुसार आज की कड़ी में हमने आपको 1967 में प्रदर्शित फिल्म "रामराज्य" से वसन्त देसाई का स्वरबद्ध किया एक गीत "डर लागे गरजे बदरिया..." प्रस्तुत किया। गीत के स्वर लता मंगेशकर के हैं।
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प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
राग सूर मल्हार : SWARGOSHTHI – 472 : RAG SOOR MALHAR : 26 जुलाई, 2020
Comments
हां संगीत का रसिया जरूर हूं आनंद लेता हूं
एक सुझाव आया तो प्रस्तुत किया है यदि धृष्टता ना समझें तो प्रस्तुत है --
कि वेब पेज में दिए गए श्री भीमसेन जी जोशी और सुश्री लता मंगेशकर के गीतों के टाइटल में "सूर" शब्द प्रयोग किया गया है उसको "सुर" किया जाए तो उचित रहेगा ऐसा मेरा विनम्र मानना है क्योंकि सूर और सुर में तो काफी अंतर है.
यह आलोचना नहीं है सिर्फ सादर ध्यान इंगित करना है
बाकी प्रशंसा के लिए तो क्या कहना मैं तो कोई विशेषज्ञ नहीं
जो जानकार है वह प्रशंसा करे और जो नहीं जानता है वह प्रशंसा करे उसमें काफी अंतर होता है
मेरे से ज्यादा विद्वान लोग इस स्तंभ की प्रशंसा कर चुके हैं
धन्यवाद
आदरणीय डाक्टर पंचोली जी, नमस्कार।
आपने बिलकुल ठीक कहा है, हिन्दी के शब्द सुर और सूर में काफी अन्तर है। परन्तु संगीत के जिस राग की हम चर्चा कर रहे हैं, वह "सूर मल्हार" ही है। राग परिचय की पहली पंक्ति में ही इस बात का उल्लेख किया गया है कि 'चूँकि इस राग की रचना हिन्दी के भक्त कवि सूरदास ने की थी अतः उन्हीं के नाम के साथ इसे राग 'सूर मल्हार" कहे जाने की परम्परा है। अपना मन्तव्य प्रकट करने के लिए आपका आभार।
कृष्णमोहन मिश्र
सम्पादक