स्वरगोष्ठी – 465 में आज
काफी थाट के राग – 9 : राग आभोगी कान्हड़ा
विदुषी अश्विनी भिड़े से आभोगी कान्हड़ा की बन्दिश और आशा भोसले से फिल्म का एक गीत सुनिए
आशा भोसले |
अश्विनि भिड़े देशपांडे |
राग आभोगी अथवा आभोगी कान्हड़ा को काफी थाट जन्य माना जाता है। इसमें गान्धार स्वर कोमल और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। इस राग में पंचम और निषाद स्वर वर्जित होने से राग की जाति औड़व औड़व होती है। इस राग का गायन और वादन रात्रि के दूसरे प्रहर में अधिक खिलता है। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षड्ज होता है। यह कर्नाटक पद्धति का एक मधुर राग है, जिसका प्रचार उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में अधिक हुआ है। कान्हड़ा का प्रकार होने के कारण अवरोह में गान्धार स्वर का वक्र प्रयोग किया जाता है, जैसे; कोमल ग, म, रे, सा। यह स्वर बार बार प्रयोग किया जाता है और कोमल गान्धार स्वर आन्दोलित होता है। ग्रन्थकार हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव की पुस्तक “राग परिचय” के अनुसार राग आभोगी और राग आभोगी कान्हड़ा बहुत थोड़ा अन्तर होता है। राग आभोगी को आभोगी कान्हड़ा बनाने के लिए कोमल ग, म, रे, सा, स्वरसमूह का प्रयोग किया जाता है, अन्यथा सम्पूर्ण राग के चलन में कोई परिवर्तन नहीं होता। कुछ विद्वान इस भेद को नहीं मानते, उनका कहना है कि यह भेद करना ‘बाल की खाल निकालना’ है। आभोगी और आभोगी कान्हड़ा दोनों में रे, कोमल ग, म, कोमल ग, रे, सा स्वरों का प्रयोग होता है, केवल आभोगी कान्हड़ा में कान्हड़ा अंग लाने के लिए कोमल ग, म, रे, सा का प्रयोग करते हैं। परन्तु आभोगी में इन स्वरों का प्रयोग नहीं किया जाता। कुछ विद्वानों का मत है कि आभोगी राग में आन्दोलित कोमल गान्धार स्वर से ही कान्हड़ा अंग स्पष्ट हो जाता है, चाहे वक्र कोमल गान्धार स्वर अवरोह में लें अथवा न लें। इस राग का चलन तीनों सप्तकों में होता है। यह खयाल शैली का राग है, इसमें ठुमरी नहीं गायी जाती। इस राग का आलाप अत्यन्त कर्णप्रिय लगता है। राग आभोगी कान्हड़ा के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए अब हम प्रस्तुत कर रहे हैं, इस राग में एक मोहक द्रुत खयाल, जिसे स्वर दे रही हैं, सुविख्यात गायिका अश्विनी भिड़े देशपाण्डे।
राग आभोगी कान्हड़ा : “रस बरसत तोरे घर...” : विदुषी अश्विनी भिड़े देशपाण्डे
राग आभोगी का न्यास स्वर मध्यम और उपन्यास स्वर धैवत होता है। इस राग के गायन और वादन का सर्वाधिक उपयुक्त समय रात्रि में 11 से 12 बजे के मध्य माना जाता है। इस राग के बारे में सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ और मयूरवीणा वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र बताते हैं कि संगीतमार्तण्ड पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर के मतानुसार अवरोह में जब सां, ध, म, ग(कोमल), रे ,सा स्वरों का प्रयोग किया जाएगा तो यह राग आभोगी होगा। जब इसमें म, ग(कोमल), रे, सा के स्थान पर ग(कोमल), म, रे, सा स्वरो का प्रयोग करेंगे यह आभोगी कान्हड़ा बन जाता है। ये कान्हड़ा अंग के राग हैं। इस राग की प्रकृति शान्त व आत्मनिवेदन की होती है। आभोगी के श्रवण से भक्तिभाव की अभिव्यक्ति होगी तथा आभोगी कान्हड़ा के श्रवण से मन शान्त हो जाएगा। दोनों ही राग डिप्रेशन और चिन्ताविकृत को दूर का रास्ता दिखा कर गहन निद्रा का सुख प्रदान कर सकते हैं। कुछ विद्वान राग आभोगी और आभोगी कान्हड़ा में वादी और संवादी स्वरों का अन्तर भी मानते हैं। वे राग आभोगी में षडज और मध्यम तथा राग आभोगी कान्हड़ा में मध्यम और षडज को क्रमशः वादी और संवादी मानते हैं। इस परिवर्तन से राग आभोगी पूर्वांग और राग आभोगी कान्हड़ा को उत्तरांग प्रधान राग होना चाहिए, परन्तु यह भेद उचित नहीं मालूम होता। शास्त्र सदैव क्रियात्मक संगीत का अनुसरण करता है। जो बातें क्रियात्मक संगीत में होती है, वही शास्त्र में शामिल की जाती है। क्रियात्मक संगीत में कोमल ग, म, रे, सा के अतिरिक्त कोई भेद दिखाई नहीं पड़ता। इसलिए वादी और संवादी स्वरों के फलस्वरूप पूर्वांग और उत्तरांग का भेद न्यायसंगत नहीं है। अब हम आपको राग आभोगी कान्हड़ा पर आधारित वर्ष 1975 में प्रदर्शित फिल्म “कागज की नाव” से एक गीत सुनवा रहे हैं। पार्श्वगायिका आशा भोसले के स्वर में प्रस्तुत इस गीत के शब्द नक्श लायलपुरी के उयर संगीत सपन जगमोहन का है। “हिन्दी सिने राग इनसाइक्लोपीडिया” के ग्रन्थकार के.एल. पाण्डेय के अनुसार इस गीत में राग आभोगी कान्हड़ा के साथ राग बागेश्री का स्पर्श भी हुआ है। आप यह गीत सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
राग आभोगी कान्हड़ा : “ना जइयो रे सौतन घर...” : आशा भोसले : फिल्म : कागज की नाव
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ के 465वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1971 में प्रदर्शित एक फिल्म के राग आधारित लोकप्रिय गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर देना आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। श्रृंखला के दूसरे सत्र अर्थात 470वें अंक की पहेली का उत्तर प्राप्त होने के बाद तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे उन्हें वर्ष के द्वितीय सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।
1 - इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का आधार है?
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।
3 – इस गीत में किस पार्श्वगायिका के स्वर है?
पिछली पहेली के सही उत्तर और विजेता
“स्वरगोष्ठी” के 463 वें अंक में हमने आपको 1960 में निर्मित किन्तु अप्रदर्शित फिल्म “भूल न जाना” के एक लोकप्रिय गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से कम दो सही उत्तरों की अपेक्षा की थी। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – सिन्दूरा, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – कहरवा तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – मुकेश।
‘स्वरगोष्ठी’ की इस पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों में से प्रत्येक को दो अंक मिलते हैं। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से आप सभी को हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर ईमेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नए प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं।
संवाद
मित्रों, इन दिनों हम सब भारतवासी, प्रत्येक नागरिक को कोरोना वायरस से मुक्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं। अन्य समर्थ देशों की तुलना में हमारे प्रयास अधिक सराहनीय रहे हैं। अभी भी हमें पर्याप्त सतर्कता बरतनी है। विश्वास कीजिए, हमारे इस अभियान से कोरोना वायरस पराजित होगा। आप सब से अनुरोध है कि प्रत्येक स्थिति में चिकित्सकीय और शासकीय निर्देशों का पालन करें और अपने घर में सुरक्षित रहें। इस बीच शास्त्रीय संगीत का श्रवण करें और अनेक प्रकार के मानसिक और शारीरिक व्याधियों से स्वयं को मुक्त रखें। विद्वानों ने इसे “नाद योग पद्धति” कहा है। “स्वरगोष्ठी" की नई-पुरानी श्रृंखलाएँ सुने और पढ़ें। साथ ही अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवगत भी कराएँ।
अपनी बात
मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी नई श्रृंखला “काफी थाट के राग” की नौवीं कड़ी में आज आपने काफी थाट के जन्य राग आभोगी अथवा आभोगी कान्हड़ा का परिचय प्राप्त किया। राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए सुविख्यात विदुषी अश्विनी भिड़े देशपाण्डे के स्वर में राग आभोगी कान्हड़ा में एक द्रुत खयाल हमने प्रस्तुत किया। इसके साथ ही वर्ष 1975 में प्रदर्शित फिल्म “कागज की नाव” से राग आभोगी कान्हड़ा का स्पर्श करता एक गीत पार्श्वगायिका आशा भोसले के स्वर में प्रस्तुत किया। इस गीत के गीतकार नक्श लायलपुरी और संगीतकार सपन जगमोहन हैं। कुछ तकनीकी समस्या के कारण हम अपने फेसबुक के मित्र समूह पर “स्वरगोष्ठी” का लिंक साझा नहीं कर पा रहे हैं। सभी संगीत अनुरागियों से अनुरोध है कि हमारी वेबसाइट http://radioplaybackindia.com अथवा http://radioplaybackindia.blogspot.com पर क्लिक करके हमारे सभी साप्ताहिक स्तम्भों का अवलोकन करते रहें। “स्वरगोष्ठी” के वेब पेज के दाहिनी ओर निर्धारित स्थान पर अपना ई-मेल आईडी अंकित कर आप हमारे सभी पोस्ट को नियमित रूप से अपने ई-मेल पर प्राप्त कर सकते है। “स्वरगोष्ठी” की पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेंगे। आज के इस अंक अथवा श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः सात बजे “स्वरगोष्ठी” के इसी मंच पर हम एक बार फिर संगीत के सभी अनुरागियों का स्वागत करेंगे।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
राग आभोगी कान्हड़ा : SWARGOSHTHI – 465 : RAG ABHOGI KANHADA : 7 जून, 2018
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