ई मेल के बहाने यादों के खजाने - हमारी ही मुठ्ठी में आकाश सारा...फिर क्यों ये नन्हीं जानें भटकने को मजबूर हैं बेसहारा
नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। इस साप्ताहिक विशेषांक को हम सजाते हैं या तो आप ही के भेजे हुए प्यारे प्यारे ईमेल से 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' के रूप में, या किसी कलाकार से आपको मिलवाया जाता है, या फिर कोई विशेषालेख पेश होता है। आज बारी है 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' की। आज एक ऐसा ईमेल पेश हो रहा है जिसे पढ़ कर हम सब थोड़ा सोचने पर भी मजबूर हो जाएँगे, थोड़ी सी उदासी भी छायेगी, और थोड़ा सा आशावादी स्वर भी गूंजेगा। लीजिए पहले ईमेल पढ़िए जिसे लिख भेजा है मेरे प्रिय दोस्त सुमित चक्रवर्ती ने चण्डीगढ़ से। यह उनका भेजा हुआ दूसरा ईमेल है जिसे हम शामिल कर रहे हैं। ******************************************* प्रिय सुजॊय दा 'ई-मेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' में मेरे पिछ्ले ई-मेल को शामिल करने का शुक्रिया। आज मैं आपको अपने एक अनोखे अनुभव के बारे में बताने जा रहा हूँ। किसी ने सच ही कहा है कि बच्चे ईश्वर का रूप होते हैं| एक नन्हे सदस्य के आते ही पूरे घर का माहौल बदल जाता है| उनकी नन्ही-नन्ही किलकारियाँ और नटखट अटखेल