Skip to main content

Posts

Showing posts with the label kishore kumar

चित्रकथा - 40: किशोर कुमार को याद करती हुईं फ़िल्म जगत की पाँच अभिनेत्री और गायिकाएँ

अंक - 40 किशोर कुमार को याद करती हुईं फ़िल्म जगत की पाँच अभिनेत्री और गायिकाएँ "बेक़रार दिल तू गाएजा..."  दोस्तों, एक ज़माना था जब घर बैठे प्राप्त होने वाले मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ बहुत से कार्यक्रम ऐसे हुआ करते थे जिनमें कलाकारों से साक्षात्कार करवाये जाते थे और जिनके ज़रिये फ़िल्म और संगीत जगत की इन हस्तियों की ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी बातें जानने को मिलती थी। गुज़रे ज़माने के इन अमर फ़नकारों की आवाज़ें आज केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन के संग्रहालय में ही सुरक्षित हैं। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि शौकीया तौर पर मैंने पिछले बीस वर्षों में बहुत से ऐसे कार्यक्रमों को लिपिबद्ध कर अपने पास एक ख़ज़ाने के रूप में समेट रखा है। आज ’चित्रकथा’ के इस अंक में प्रस्तुत है हरफ़नमौला कलाकार किशोर कुमार के बारे में फ़िल्म जगत की कुछ अभिनेत्रियों व गायिकाओँ द्वारा कहे हुए शब्द और किशोर दा से जुड़ी उनकी स्मृतियाँ। कल 13 अक्तुबर को किशोर दा की पुण्यतिथि थी; अत: आज का यह अंख उन्ही को समर्पित करते हैं। माला सिन्हा

फिल्मी चक्र समीर गोस्वामी के साथ || एपिसोड 01 || किशोर कुमार

Filmy Chakra With Sameer Goswami  Episode 01  Kishore Kumar  फ़िल्मी चक्र कार्यक्रम में आप सुनते हैं मशहूर फिल्म और संगीत से जुडी शख्सियतों के जीवन और फ़िल्मी सफ़र से जुडी दिलचस्प कहानियां समीर गोस्वामी के साथ, लीजिये आज इस कार्यक्रम के पहले एपिसोड में सुनिए कहानी किशोर कुमार की...प्ले पर क्लिक करें और सुनें....

राग अल्हैया बिलावल : SWARGOSHTHI – 279 : RAG ALHAIYA BILAWAL

स्वरगोष्ठी – 279 में आज मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन – 12 : समापन कड़ी में खुशहाली का माहौल “भोर आई गया अँधियारा सारे जग में हुआ उजियारा...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच जारी हमारी श्रृंखला – ‘मदन मोहन के गीतों में राग-दर्शन’ की यह समापन कड़ी है। श्रृंखला की बारहवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आप सभी संगीत-प्रेमियों का एक बार फिर हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला आप तक पहुँचाने के लिए हमने फिल्म संगीत के सुपरिचित इतिहासकार और ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी का सहयोग लिया है। हमारी यह श्रृंखला फिल्म जगत के चर्चित संगीतकार मदन मोहन के राग आधारित गीतों पर केन्द्रित है। श्रृंखला के प्रत्येक अंक में हमने मदन मोहन के स्वरबद्ध किसी राग आधारित गीत की चर्चा की और फिर उस राग की उदाहरण सहित जानकारी भी दी। श्रृंखला की बारहवीं कड़ी में आज हम आपको राग अल्हैया बिलावल के स्वरों में पिरोये गए 1972 में प्रदर्शित फिल्म ‘बावर्ची’ से एक सुमधुर, उल्लास से परिपूर्ण गीत का रसास्वादन करा

"छू कर मेरे मन को...", क्यों राजेश रोशन को अपने पैसे से इस गीत को रेकॉर्ड करना पड़ा?

एक गीत सौ कहानियाँ - 59   ‘ छू कर मेरे मन को...’  रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 59-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म ’याराना’ के मशहूर गीत "छू कर मेरे मन को, किया तूने क्या इशारा..." के बारे में जिसे किशोर कुमार ने गाया था।  रबीन्द्र

"रूप तेरा मस्ताना, प्यार मेरा दीवाना" - कैसे बना था एक ही शॉट में फ़िल्माये जाने वाले हिन्दी सिनेमा का यह पहला गीत?

एक गीत सौ कहानियाँ - 44   ‘ रूप तेरा मस्ताना, प्यार मेरा दीवाना ... ’ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'।  इसकी 44-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'आराधना' के मशहूर गीत "रूप तेरा मस्ताना, प्यार मेरा दीवाना..." के बारे में। 'आ राधना' कई

सुरीली बाँसुरी के पर्याय पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया

स्वरगोष्ठी – 174 में आज व्यक्तित्व – 4 : पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया ‘देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ की चौथी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, जारी लघु श्रृंखला ‘व्यक्तित्व’ के अन्तर्गत हम आपसे संगीत के कुछ असाधारण संगीत-साधकों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं, जिन्होंने मंच, विभिन्न प्रसारण माध्यमों अथवा फिल्म संगीत के क्षेत्र में लीक से हट कर उल्लेखनीय योगदान किया है। हमारी आज की कड़ी के व्यक्तित्व हैं, विश्वविख्यात बाँसुरी वादक पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया, जिन्होने एक साधारण सी दिखने वाली बाँस की बाँसुरी के मोहक सुरों के बल पर पूरे विश्व में भारतीय संगीत की विजय-पताका को फहराया है। चौरसिया जी की बाँसुरी ने शास्त्रीय मंचों पर तो संगीत प्रेमियों को सम्मोहित किया ही है, फिल्म संगीत के प्रति भी उनका लगाव बना रहा। उन्होने सुप्रसिद्ध सन्तूर वादक पण्डित शिवकुमार शर

कोई होता मेरा अपना.....शोर के "जंगल" में कोई जानी पहचानी सदा ढूंढती जिंदगी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 715/2011/155 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' की एक और शाम लेकर मैं, सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ हाज़िर हूँ। जैसा कि आप जानते हैं इन दिनों इस स्तंभ में जारी है लघु शृंखला ' एक पल की उम्र लेकर ', जिसके अन्तर्गत सजीव जी की लिखी कविताओं की इसी शीर्षक से किताब में से चुनकर १० कविताओं पर आधारित फ़िल्मी गीत बजाये जा रहे हैं। आज की कविता का शीर्षक है ' जंगल '। यह जंगल मेरा है मगर मैं ख़ुद इसके हर चप्पे से नहीं हूँ वाकिफ़ कई अंधेरे घने कोने हैं जो कभी नहीं देखे मैं डरा डरा रहता हूँ अचानक पैरों से लिपटने वाली बेलों से गहरे दलदलों से मुझे डर लगता है बर्बर और ज़हरीले जानवरों से जो मेरे भोले और कमज़ोर जानवरों को निगल जाते हैं मैं तलाश में भटकता हूँ, इस जंगल के बाहर फैली शुआओं की, मुझे यकीं है कि एक दिन ये सारे बादल छँट जायेंगे मेरे सूरज की किरण मेरे जंगल में उतरेगी और मैं उसकी रोशनी में चप्पे-चप्पे की महक ले लूंगा फिर मुझे दलदलों से पैरों से लिपटी बेलों से डर नहीं लगेगा उस दिन - ये जंगल सचमुच में मेरा होगा मेरा अपना। जंगल की आढ़ लेकर कवि नें कितनी सुंदरता

एक हसीना थी, एक दीवाना था....एक कहानी नुमा गीत जिसमें फिल्म की पूरी तस्वीर छुपी है

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 678/2011/118 'ए क था गुल और एक थी बुलबुल' शृंखला में कल आपने १९७९ की फ़िल्म 'मिस्टर नटवरलाल' का गीत सुना था। जैसा कि हमने कल बताया था कि आनन्द बक्शी साहब के लिखे दो गीत आपको सुनवायेंगे, तो आज की कड़ी में सुनिये उनका लिखा एक और ज़बरदस्त कहानीनुमा गीत। यह केवल कहानीनुमा गीत ही नहीं, बल्कि उसकी फ़िल्म का सार भी है। पुनर्जनम की कहानी पर बनने वाली फ़िल्मों में एक महत्वपूर्ण नाम है 'कर्ज़' (१९८०)। राज किरण और सिमी गरेवाल प्रेम-विवाह कर लेते हैं। राज को भनक तक नहीं पड़ी कि सिमी ने दरअसल उसके बेहिसाब जायदाद को पाने के लिये उससे शादी की है। और फिर एक दिन धोखे से सिमी राज को गाड़ी से कुचल कर पहाड़ से फेंक देती है। राज किरण की मौत हो जाती है और सिमी अपने स्वर्गवासी पति के एस्टेट की मालकिन बन जाती है। लेकिन कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई। प्रकृति भी क्या क्या खेल रचती है! राज दोबारा जनम लेता है ॠषी कपूर के रूप में, और जवानी की दहलीज़ तक आते आते उसे अपने पिछले जनम की याद आ जाती है और किस तरह से वो सिमी से बदला लेता है अपने इस जनम की प्रेमिका टिना मुनीम के

आओ मनाये जश्ने मोहब्बत, जाम उठाये गीतकार मजरूह साहब के नाम

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 669/2011/109 म जरूह सुल्तानपुरी एक ऐसे गीतकार रहे हैं जिनका करीयर ४० के दशक में शुरु हो कर ९० के दशक के अंत तक निरंतर चलता रहा और हर दशक में उन्होंने अपना लोहा मनवाया। कल हमनें १९७३ की फ़िल्म 'अभिमान' का गीत सुना था। आज भी इसी दशक में विचरण करते हुए हमनें जिस संगीतकार की रचना चुनी है, वो हैं राजेश रोशन। वैसे तो राजेश रोशन के पिता रोशन के साथ भी मजरूह साहब नें अच्छा काम किया, फ़िल्म 'ममता' का संगीत उसका मिसाल है; लेकिन क्योंकि हमें १०-कड़ियों की इस छोटी सी शृंखला में अलग अलग दौर के संगीतकारों को शामिल करना था, इसलिए रोशन साहब को हम शामिल नहीं कर सके, लेकिन इस कमी को हमन उनके बेटे राजेश रोशन को शामिल कर पूरा कर रहे हैं। एक बड़ा ही लाजवाब गीत हमनें सुना है मजरूह-राजेश कम्बिनेशन का, १९७७ की फ़िल्म 'दूसरा आदमी' से। "आओ मनायें जश्न-ए-मोहब्बत जाम उठायें जाम के बाद, शाम से पहले कौन ये सोचे क्या होना है शाम के बाद"। हज़ारों गीतों के रचैता मजरूह सुल्तानपुरी के फ़न की जितनी तारीफ़ की जाये कम है। ज़िक्र चाहे दोस्त के दोस्ती की हो या फिर महब