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गीत अतीत 08 || हर गीत की एक कहानी होती है || बेखुद || बिस्वजीत नंदा || हेमा सरदेसाई ||

Geet Ateet 08 Har Geet Kii Ek Kahaani Hoti Hai... Bekhud Biswajit Nanda & Hema Sardesaai Biswajit Nanda लन्दन में बसे देसी कलाकार बिस्वजीत नंदा और सुप्रसिद्ध गायिका हेमा सरदेसाई मिले तो बना गीत "बेखुद", शब्द पिरोये सजीव सारथी ने और सुर संजोये कृष्ण राज ने. लीजिये सुनें "बेखुद" के बनने की कहानी आज गायक बिस्वजीत नंदा की जुबानी... डाउनलोड कर के सुनें  यहाँ  से.... सुनिए इन गीतों की कहानियां भी - ओ रे रंगरेज़ा (जॉली एल एल बी) मैनरलैस मजनूं (रंनिंग शादी डॉट कॉम) रंग (अरविन्द तिवारी, गैर फ़िल्मी सिंगल) हमसफ़र (बदरी की दुल्हनिया) सनशाईन (गैर फ़िल्मी सिंगल) हौले हौले (गैर फ़िल्मी सिंगल) कागज़ सी है ज़िन्दगी 

जिसे अंधी गंदी खाईयों से लाए हम बचा के, उस आजादी को हरगिज़ न मिटने देंगें- ये प्रण लिया वी डी, बिस्वजीत और सुभोजीत ने

Season 3 of new Music, Song # 16 ६३ वर्ष बीत चुके हैं हमें आजाद हुए. मगर अब समय है सचमुच की आजादी का. तन मन और सोच की आजादी का. अभी बहुत से काम बाकी है, क्योंकि जंग अभी भी जारी है. आतंकवाद, नक्सलवाद, भ्रष्टाचार, जाने कितने अन्दुरुनी दुश्मन हैं जो हमारे इस देश की जड़ों को अंदर से खोखला कर रहे हैं. आज समय आ गया है कि हम स्मरण करें उन देशभक्तों की कुर्बानियों का जिनके बदौलत आज हम खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं. आज समय है एक बार फिर उस सोयी हुई देशभक्ति को जगाने का जिसके अभाव में हम ईमानदारी, इंसानियत और इन्साफ के कायदों को भूल ही चुके हैं. आज समय है उस राष्ट्रप्रेम में सरोबोर हो जाने का जो त्याग और कुर्बानी मांगती है, जो एक होकर चलने की रवानी मांगती है. कुछ यही सोच यही विचार हम पिरो कर लाये हैं अपने इस नए स्वतंत्रता दिवस विशेष गीत में, जिसे लिखा है विश्व दीपक तन्हा ने, सुरों से सजाया है सुभोजित ने और गाया है बिस्वजीत ने. जी हाँ इस तिकड़ी का कमाल आप बहुत से पिछले गीतों में भी सुन ही चुके है, जाहिर है इस गीत में भी इन तीनों ने जम कर मेहनत की है. तो आईये सुनते है आज का ये ताज़ा अपलोड और इस

"खुद पे यकीं" एक मिशन है, जिसका उद्देश्य स्पष्ट है और अब दरकार है बस आपके सहयोग की

अभी कुछ दिन पहले हमने एक खास गीत जारी किया था, जिसका उद्देश्य शारीरिक विकलांगता से झूझ रहे लोगों के मन में आत्मविश्वास भरना था, जी हाँ, आपने सही पहचाना, ये गीत था " खुद पे यकीं ", जिसे आप सब ने बेहद सराहा है, इस गीत के सन्देश को और अधिक लोगों तक पहुँचाने के उद्देश्य से इस गीत के गायक बिस्वजीत नंदा ने खोज निकला एक ऐसा शख्स जो इस गीत से सम्बंधित तस्वीरों और कथनों को जोड़ कर एक वीडियो बना सके, पोलैंड का ये शख्स हिंदी नहीं समझता है पर बिस्वजीत ने उनका साथ दिया और बन गया ये वीडियो. जिसको आज हम आवाज़ पर खोल रहे हैं. जिस शख्स की हम बात कर रहे हैं उनके बारे में आप अधिक जानकारी अवश्य लें यहाँ अब देखिये ये वीडियो और अगर पसंद आये तो अपने मित्रों को भी अवश्य दिखाएँ, ताकि ये सन्देश अधिक से अधिक जरूरतमंदों तक पहुँच सकें

बस करना है खुद पे यकीं....शारीरिक विकलांगता से जूझते लोगों के लिए बिस्वजीत, ऋषि और सजीव ने दिया एक नया मन्त्र

Season 3 of new Music, Song # 14 विकलांगता कोई अभिशाप नहीं है, न ये आपके पूर्वजन्मों के पापों की सजा है न आपके परिवार को मिला कोई श्राप. वास्तविकता यह है कि इस दुनिया में कोई भी परिपूर्ण नहीं है, कोई न कोई कमी हर इंसान में मौजूद होती है, कुछ नज़र आ जाती है तो कुछ छुपी रहती है. इसी तरह हर इंसान में कुछ न कुछ अलग काबिलियत भी होती है. अपनी कमियों को समझकर उस पर विजय पाना ही हर जिंदगी का लक्ष्य है. इंसान वही है जो अपनी खूबियों का पलड़ा भारी कर अपनी कमियों को पछाड़ देता है, और दिए हुए संदर्भों में खुद को मुक्कम्मल साबित करता है. पर ये भी सच है कि सामजिक धारणाओं और संकुचित सोच के चलते शारीरिक विकलांगता के शिकार लोगों को समाज में अपनी खुद की समस्याओं के आलावा भी बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. आवाज़ महोस्त्सव के चौदहवें गीत में आज हम इन्हीं हालातों से झूझ रहे लोगों के लिए ये सन्देश लेकर आये हैं हिम्मत और खुद पे विश्वास कर अगर वो चलें तो कुछ भी मुश्किल नहीं है. सजीव सारथी के झुझारू बोलों को सुरों में पिरोया है ऋषि एस ने और आपनी आवाज़ से इस गीत में एक नया जोश भरा है बिश्वजीत नंदा ने.

एक नया अंदाज़ फिज़ा में बिखेरा "उड़न छूं" ने, जिसके माध्यम से वापसी कर रहे हैं बिश्वजीत और सुभोजित

Season 3 of new Music, Song # 11 दोस्तों, आवाज़ संगीत महोत्सव २०१० में आज का ताज़ा गीत है एक बेहद शोख, और चुलबुले अंदाज़ का, इसकी धुन कुछ ऐसी है कि हमारा दावा है कि आप एक बार सुन लेंगें तो पूरे दिन गुनगुनाते रहेंगें. इस गीत के साथ इस सत्र में लौट रहे हैं पुराने दिग्गज यानी हमारे नन्हें सुभोजित और गायक बिस्वजीत एक बार फिर, और साथ हैं हमारे चिर परिचित गीतकार विश्व दीपक तन्हा भी. जहाँ पिछले वर्ष परीक्षाओं के चलते सुभोजित संगीत में बहुत अधिक सक्रिय नहीं रह पाए वहीं बिस्वजीत ने करीब एक वर्ष तक गायन से दूर रह कर रियाज़ पर ध्यान देने का विचार बनाया था. मगर देखिये जैसे ही आवाज़ का ये नया सत्र शुरू हुआ और नए गानों की मधुरता ने उन्हें अपने फैसले पर फिर से मनन करने पर मजबूर कर दिया, अब कोई मछली को पानी से कब तक दूर रख सकता है भला. तो लीजिए, एक बार फिर सुनिए बिस्वजीत को, एक ऐसे अंदाज़ में जो अब तक उनकी तरफ़ से कभी सामने नहीं आया, और सुभो ने भी वी डी के चुलबुले शब्दों में पंजाबी बीट्स और वेस्टर्न अंदाज़ का खूब तडका लगाया है इस गीत में गीत के बोल - आते जाते काटे रास्ता क्यूँ, बड़ी जिद्दी है री तू हो

गुदगुदाने वाले गीतों से श्रोताओं को झूमने वाले झुमरू किशोर दा का था एक संजीदा चेहरा भी

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # १६ आ ज 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' पर पेश है फ़िल्म 'मिली' का एक गीत। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की २३२ वीं कड़ी में, १३ अक्तुबर के दिन (जो किशोर दा की पुण्य तिथि और दादामुनि अशोक कुमार की जयंती है), हमने इस फ़िल्म से "आए तुम याद मुझे" गीत सुनवाया था। आज उसी फ़िल्म से किशोर दा का गाया दूसरा गीत "बड़ी सूनी सूनी है ज़िंदगी" हम सुनवा रहे हैं। तो उसी आलेख से हम आज आपको फिर एक बार बता रहे हैं फ़िल्म 'मिली' के बारे में। फ़िल्म 'मिली' की कहानी कुछ इस तरह की थी कि मिली (जया बच्चन) एक बहुत ही हँसमुख और ज़िंदादिल लड़की है, जो अपने पिता (अशोक कुमार) के साथ एक हाउसिंग्‍ कॊम्प्लेक्स में रहती है। उसे उस कॊम्प्लेक्स के बच्चों से बहुत लगाव है और वो उन्ही के दल में भिड़ कर दिन भर सारी शैतानियाँ करती रहती हैं। याद है ना लता जी का गाया "मैने कहा फूलों से" गीत? तो साहब, ऐसे में उस बिल्डिंग में आ बसते हैं हमारे अमिताभ बच्चन साहब (किरदार का नाम मुझे याद नहीं), जो एक निहायती गम्भीर, बद-मिज़ाज नौजवान है जिसके चेहरे पर शायद ही

स्नेह निर्झर बह गया है कुछ यूँ संगीतबद्ध हुआ

गीतकास्ट प्रतियोगिता- परिणाम-3: स्नेह-निर्झर बह गया है देखते-देखते आज वह समय भी आ गया, जब हम गीतकास्ट प्रतियोगिता के तीसरे अंक के परिणाम प्रकाशीत व प्रसारित कर रहे हैं। मई महीने में शुरू हुई इस प्रतियोगिता का एक मात्र उद्देश्य यही था कि हिन्दी कविता के प्रतिमानों या यूँ कह लें आधार-स्तम्भों को संगीत से जोड़ा जाये ताकि नई पीड़ी भी उन्हें गुनगुना सके और अपने मन के आँगन में एक स्थान दे सके। इस प्रतियोगिता की शुरूआती दो कड़ियाँ 'अरुण यह मधुमय देश हमारा' और 'प्रथम रश्मि ' बहुत सफल रहीं। श्रोताओं ने बहुत पसंद किया। प्रतिभागिता बढ़ी। उसी का फल है कि तीसरे अंक में जब हमने निराला की एक मुश्किल कविता ' स्नेह-निर्झर बह गया है' चुना तो भी इसमें 18 प्रविष्टियाँ प्राप्त हुईं। हमने तीसरे अंक के लिए प्रविष्टि जमा करने की आखिरी तिथि रखी थी 31 जुलाई 2009। 30 जुलाई तक हमें मात्र 1 प्रविष्टि मिली थी, लेकिन 31 तारीख को यह बढ़कर 18 हो गईं। कविता मुश्किल तो थी ही, लेकिन हम पिछले 3 अंकों से एक और परेशानी का सामना कर रहे हैं, वह यह कि अलग-अलग प्रकाशन की पुस्तक में कविता की पंक्तियों

"माँ तो माँ है...", माँ दिवस पर विश्व की समस्त माँओं को समर्पित एक नया गीत

यूँ तो यह माना जाता है कि कवि किसी भी विषय पर लिख सकता है, अपने भाव व्यक्त कर सकता है और अमूमन ऎसा होता भी है। लेकिन दुनिया में अकेली एक ऎसी चीज है जिसे आज तक कोई भी शब्दों में बाँध नहीं सका है। और उस शय का नाम है "माँ"। माँ....जो बच्चे के मुख से निकला पहला शब्द होता है और शायद अंतिम भी, माँ जो हर रोज सुबह को जगाती है और शाम को चादर दे सुला देती है, माँ जो हर कुछ में है लेकिन ऎसा व्यक्त करती है मानो कुछ में भी न हो। माँ.......जो पिता का संबल है, बेटे की जिद्द है और बेटी की रीढ है ... माँ जो निराशा में आशा की एक किरण है, चोट में मलहम है, धूप में गीली मिट्टी है और ठण्ड में हल्की सी धूप है, माँ .....जो और कुछ नहीं, बस माँ है... बस माँ!! मिट्टी पे दूब-सी, कुहे में धूप-सी, माँ की जाँ है, रातों में रोशनी, ख्वाबों में चाशनी, माँ तो माँ है, चढती संझा, चुल्हे की धाह है, उठती सुबह,फूर्त्ति की थाह है। माँ...खुद में हीं बेपनाह है । ....ऎसी मेरी , उनकी, आपकी, हम सबकी माँ है। ये शब्द हैं कवि और गीतकार, विश्व दीपक "तन्हा" के. पर क्या शब्दों में बांधा जा सकता है "माँ" क

इन्टरनेट पर बना पहला इंडो रशियन मैत्री गीत - द्रुज़्बा

"सर पे लाल टोपी रूसी, फ़िर भी दिल है हिन्दुस्तानी...." जब राज कपूर ने चैपलिन अंदाज़ में इस गीत पर कदम थिरकाए, तब वो रूस में इतने लोकप्रिय साबित हुए कि वो और उनकी पूरी टीम रूस में हिन्दुस्तानी भाषा, कला और संस्क्रति की पहचान ही बन गए. १९५० में राजनितिक आवश्यकताओं और व्यापार उद्देश्यों के चलते दोनों देशों के बीच जिस रिश्ते की बुनियाद पड़ी थी कालांतर में संगीत और कला के आदान प्रदान ने उसे एक आत्मीय दोस्ती में तब्दील कर दिया. रूस की झलक फिल्मों में भी खूब रही, राज कपूर की ही "मेरा नाम जोकर" और अभी हालिया प्रर्दशित "दसविदानिया" में भी रुसी कनक्शन देखने को मिला है. एक ऐसा ही मौका हिंद युग्म को भी मिला, जब दिल्ली स्थित रशियन कल्चरल सेंटर ने हिंद युग्म के गीत संगीत प्रभाग से भारत रूस दोस्ती पर एक गीत बनाने का आग्रह किया. हर बार की तरह युग्म की टीम एक बार फ़िर उम्मीदों पर खरी उतरी, और फरवरी के पहले सप्ताह में जो गीत हमने सेंटर को भेजा समीक्षा के लिए, उसे १९ तारिख को होने वाले एक भव्य समारोह के लिए चुन लिया गया. साथ ही यह भी कहा गया कि इस गीत की सी डी को उसी कार्यक्

एक गीत उन सब के नाम जो आतंक के ख़िलाफ़ खड़े होने की हिम्मत रखते हैं...

दूसरे सत्र के २३ वें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज पिछले ७-८ दिनों में हमने क्या क्या नही देखा. देश की व्यवसायिक राजधानी पर आतंकी हमला, बंधक बने देशी-विदेशी नागरिक, खौफ का नया चेहरा लेकर सर उठाता आतंकवाद, स्तब्ध और सहमा हुआ आम आदमी, एक तरफ़ बेसुराग अंधेरों में स्वार्थ की रोटियां सेकते हमारे कर्णधार तो दूसरी तरफ़ अपनी जान पर खेल कर आतंकियों से लोहा लेते हमारे जांबाज़ देशभक्तों की फौज. इन सब अव्यवस्थाओं के बीच भी कुछ ऐसा हुआ जिसने बुझती उम्मीदों को एक नई रोशनी दे दी. इस राष्ट्रीय आपदा में जैसे पूरा देश, जिसे चंद स्वार्थी राजनीतिज्ञों ने टुकड़े टुकड़े करने में कोई कसर नही छोडी थी, फ़िर से एक जुट हो गया. जातवाद, प्रांतवाद, धरम और भाषा के नाम पर देश को बांटने वाले देश के अंदरूनी दुश्मनों को पार्श्व में धकेलते हुए पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण, हिंदू मुस्लिम, अमीर गरीब, सब की संवेदनायें जैसे एक मत हो गई. एक बेहद अनचाही परिस्थिति से गुजरकर ही सही पर ये क्या कम है की एक सोये हुए देश की अवाम फ़िर से जागृत हो गई. ये हमला सिर्फ़ मुंबई या हिंदुस्तान पर नही है, समस्त इंसानियत के दामन पर है. मानवता

मेरी आगोश में आज है...कहकशां....

मैं देखता हूँ तुम्हारे हाथ चटख नीली नसों से भरे और उंगलियों में भरी हुई उड़ान मैं सोचता हूँ तुम्हारी अनवरत देह की सफ़ेद धूप और उसकी गर्म आंचश मैं जीत्ताता हूँ तुमको तुम्हारे व्याकरण और नारीत्व की शर्तो के साथ मैं हारता हूँ एक पूरी उम्र तुम्हारे एवज में! हिंद युग्म के इस माह के यूनिकवि डॉ मनीष मिश्रा की इन पक्तियों में छुपे कुछ भाव लिए है हमारे दूसरे सत्र का ये २२ वां गीत जहाँ "जीत के गीत" की तिकडी ऋषि एस , बिस्वजीत नंदा और सजीव सारथी लौटे हैं लेकर एक नया गीत "तू रूबरू" लेकर. सुनिए ये ताज़ा तरीन गीत और अपने विचार देकर हमारा मार्गदर्शन/ प्रोत्साहन करें. The composer singer and lyricist trio Rishi S , Biswajith Nanda , and Sajeev Sarathie of super successful "jeet ke geet" fame is back again with their new creation called "tu ru-ba-ru". This time the mood is much more romantic with a bit sufiayana feel in it. so enjoy this brand new offering from the awaaz team, and leave your valuable comments. Lyrics- गीत के बोल तू रूबरू.... चार सू....सिर्फ़ तू...

तूने ये क्या कर दिया ...ओ साहिबा...

दूसरे सत्र के १८ वें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज " जीत के गीत " और " मेरे सरकार " गीत गाकर अपनी आवाज़ का जादू बिखेरने वाले बिस्वजीत आज लौटे हैं एक नए गीत के साथ, और लौटे हैं कोलकत्ता के सुभोजित जिन्होंने छोटी सी उम्र में ही अपनी प्रतिभा से हर किसी को प्रभावित किया है. सजीव सारथी के लिखे इस नए गीत में प्रेम की पहली छुअन है जिसका बिस्वजीत अपने शब्दों में कुछ इस तरह बखान करते हैं - "कुछ गाने ऐसे होते है जिनमें खो जाने को मन करता है. "साहिबा" ऐसा एक गाना है. सच बताऊँ तो गाने के समय एक बार भी मुझे लगा नहीं कि मैं गा रहा हूँ. ऐसे लगा जैसे इस कहानी में मैं ही वो लड़का हूँ जिस पर कोई लड़की जादू कर गई है, कुछ पल की मुलाक़ात के बाद और चंद लम्हों में मेरी साहिबा बन चुकी है. तड़प रहा हूँ मैं दूरी से, जो दिल में बस गई है उसके ना होने से. सजीव जी के शब्दों ने मुझे मजबूर कर दिया उस तड़प की गहराइयों को महसूस करने के लिए. सुभोजित का म्यूजिक भी लाजवाब है. आशा कर रहा हूँ ये गाना भी सभी को पसंद आएगा" आप भी सुनें सुभोजित का स्वरबद्ध और बिस्वजीत का गाया ये नया गीत

मैं अमर के शब्दचित्र में उतरी एक छोटी-सी कविता हूँ...

मैं अमर के शब्दचित्र में उतरी एक छोटी-सी कविता हूँ, है फख्र कि मैं भी उस जैसा कई लोकों का रचयिता हूँ। कहना है विश्व दीपक "तन्हा" का. विश्व दीपक "तन्हा",एक कवि के रूप में इन्टरनेट पर एक ऐसा नाम है जो किसी परिचय का मोहताज नही है,अपनी कविताओं और कहानियो से एक उभरते हुए साहित्यकर्मी के रूप में अपनी पहचान बनने वाले "तन्हा",का लिखा पहला स्वरबद्ध गीत " मेरे सरकार ",पिछले हफ्ते आवाज़ पर ओपन हुआ,और बेहद सराहा गया,आईये मिलते हैं,कवि कथाकार और गीतकार विश्व दीपक तन्हा से,जो हैं इस हफ्ते हिंद युग्म,आवाज़ के उभरते सितारे - अपने बारे में ज्यादा क्या बताऊँ? एक संक्षिप्त परिचय यानि कि intro दे देता हूँ बस । जन्म बिहार के सोनपुर में हुआ, दिनांक २२ फरवरी १९८६ को। अब मैं अपने सोनपुर से आप सब को अवगत करा देता हूँ। मेरा/हमारा सोनपुर हरिहरक्षेत्र के नाम से विख्यात है, जहाँ हरि और हर एक साथ एक हीं मूर्त्ति में विद्यमान है और जहाँ एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। पूरा क्षेत्र मंदिरों से भरा हुआ है। इसलिए बचपन से हीं धार्मिक माहौल में रहा। लेकिन मैं कभी भी पूर्णतया धार्म

इस बार, नज़रों के वार, आर या पार...

दूसरे सत्र के नवें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज. इन्टरनेट गठजोड़ का एक और ताज़ा उदाहरण है ये नया गीत, IIT खड़कपुर के छात्र ( आजकल पुणे में कार्यरत ), और हिंद युग्म के बेहद मशहूर कवि विश्व दीपक 'तनहा' ने अपना लिखा गीत भेजा, युग्म के सबसे युवा संगीतकार सुभोजित को, और जब गीत को आवाज़ दी दूर ब्रिस्टल (UK) में बैठे गायक बिस्वजीत ने, तो बना, सत्र का नवां गीत. " आवारा दिल ", सुभोजित के ये दूसरा गीत है, वहीँ " जीत के गीत " गाते, बिस्वजीत अब युग्म के चेहेते गायक बन चुके हैं, तनहा का ये पहला गीत है, इस आयोजन में, जिनका कहना है - "प्रेयसी सब को प्रिय होती है,परंतु जिसकी प्रेयसी हो हीं नहीं,उसके लिए तो प्रेयसी कुछ और हीं हो जाती है। यह गीत मुझ जैसे हीं एक अनजान प्रेमी की कहानी है,जो जानता नहीं कि उसकी प्रेयसी कहाँ है, लेकिन यह जानता है कि अगर उसकी प्रेयसी कहीं है तो वो उसका आग्रह अस्वीकार नहीं कर सकती। "सरकार" अपनी प्रजा का बुरा तो नहीं चाहेगी ना ;),वैसे भी वह दूर कैसे जा सकेगी, जबकि उस प्रेमी का हर कदम अपनी प्रेयसी की हीं ओर है।" तो दोस्तों, इस दु