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चित्रकथा - 3: महेन्द्र कपूर के गाए देश-भक्ति गीत

अंक - 3 महेन्द्र कपूर के गाए देश-भक्ति गीत “ भारत की बात सुनाता हूँ... ” 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं है। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। हमारी दिलचस्पी का आलम ऐसा है कि हम केवल फ़िल्में देख कर या गाने सुनने तक ही अपने आप को सीमित नहीं रखते, बल्कि फ़िल्म संबंधित हर तरह की जानकारियाँ बटोरने का प्रयत्न करते रहते हैं। इसी दिशा में आपके हमसफ़र बन कर हम आते हैं हर शनिवार ’चित्रकथा’ लेकर। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ के तीसरे अंक में आपका हार्द

आता है तेरा नाम मेरे नाम से पहले..."निकाह" और "तलाक" के बीच उलझी एक फ़नकारा

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #२१ वै से देखें तो पहेलियाँ महफ़िल-ए-गज़ल की पहचान बन गई हैं, और इन पहेलियों के कारण हीं हम और आप एक दूसरे से इस तरह जुड़ पाते हैं। लेकिन आज मैं "गज़ल से गुमशुदा शब्द पहचानो" वाली पहेली की बात नहीं कर रहा,बल्कि मैं उस पहेली की बात कर रहा हूँ, जो "फ़नकार" की शिनाख्त करने के लिए अमूमन पहले पैराग्राफ़ में पूछी जाती है|उसी पहेली को एक नए अंदाज में मैं अभी पेश करने जा रहा हूँ। पहेली पूछने से पहले यह बता दूँ कि हम आज जिनकी बात कर रहे हैं, वो एक "फ़नकारा" हैं,एक गज़ल गायिका और हिंदी फ़िल्मों से उनका गहरा ताल्लुक है। पहेली यह है कि नीचे दिए गए दो कथनों (उन्हीं के क़ोट्स) से उन फ़नकारा की शिनाख्त करें: १.मैं जब नई-नई गायिका हुई थी तो बहुत सारे लोग मुझे मोहतरमा नूरजहाँ की बेटी समझते थे।हम दोनों ने हीं क्लासिकल म्युज़िक में तालीम ली हैं और ऐसी आवाज़ें बाकी की आवाज़ों से ज्यादा खुली हुई होती हैं। मेरी आवाज़ की पिच और क्वालिटी उनकी आवाज़ से बहुत ज्यादा मिलती है। शायद यही कारण है कि लोगों द्वारा हमारे बीच यह रिश्ता करार दिया गया था। २. मेरी बेटी "ज़ा

आप आये तो ख़्याल-ए-दिले नाशाद आया....साहिर के टूटे दिल का दर्द-ए-बयां बन कर रह गया ये गीत.

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 75 नि र्माता-निर्देशक बी. आर. चोपड़ा अपनी फ़िल्मों के लिए हमेशा ऐसे विषयों को चुनते थे जो उस समय के समाज की दृष्टि से काफ़ी 'बोल्ड' हुआ करते थे। और यही वजह है कि उनकी फ़िल्में आज के समाज में उस समय की तुलना में ज़्यादा सार्थक हैं। हमारी पुरानी फ़िल्मों में नायिका का चरित्र बिल्कुल निष्पाप दिखाया जाता था। तुलसी के पत्ते की तरह पावन और गंगाजल से धुला होता था नायिका का चरित्र। शादी से बाहर किसी ग़ैर पुरुष से संबंध रखने वाली नायिका की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। लेकिन ऐसा ही कुछ कर दिखाया चोपड़ा साहब ने सन १९६३ की फ़िल्म 'गुमराह' में। एक शादी-शुदा औरत (माला सिन्हा) किस तरह से अपने पति (अशोक कुमार) से छुपाकर अपने पहले प्रेमी (सुनिल दत्त) से संबंध रखती है, लेकिन बाद में उसे पता चलता है कि जिस आदमी से वो छुप छुप कर मिल रही है उसकी असल में शादी हो चुकी है (शशीकला से)। इस कहानी को बड़े ही नाटकीय और भावुक अंदाज़ में पेश किया गया है इस फ़िल्म में। अशोक कुमार, सुनिल दत्त, माला सिन्हा और शशीकला के जानदार अभिनय, बी. आर. चोपड़ा के सशक्त निर्देशन, और साहिर-रव

आपके पीछे चलेंगी आपकी परछाईयाँ....

निर्देशक बी आर चोपडा पर विशेष व्यावसायिक दृष्टि से कहानियाँ चुनकर फिल्में बनाने वाले निर्देशकों से अलग सामाजिक सरोकारों को संबोधित करती हुई फिल्मों के माध्यम से समाज को एक संदेश मनोरंजनात्मक तरीके से कहने की कला बहुत कम निर्देशकों में देखने को मिली है. वी शांताराम ने अपनी फिल्मों से सामाजिक आंदोलनों की शुरुआत की थी, आज के दौर में मधुर भंडारकर को हम इस श्रेणी में रख सकते हैं, पर एक नाम ऐसा भी है जिन्होंने जितनी भी फिल्में बनाई, उनकी हर फ़िल्म समाज में व्याप्त किसी समस्या पर न सिर्फ़ एक प्रश्न उठाती है, बल्कि उस समस्या का कोई न कोई समाधान भी पेश करती है. निर्देशक बी आर चोपडा ने अपनी हर फ़िल्म को भरपूर रिसर्च के बाद बनाया और कहानी को इतने दिलचस्प अंदाज़ में बयां किया हर बार, कि एक पल के लिए देखने वालों के लिए फ़िल्म का कसाव नही टूटता. चाहे बात हो अवैध रिश्तों की (गुमराह), या बलात्कार की शिकार हुई औरत की (इन्साफ का तराजू), मुस्लिम वैवाहिक नियमों पर टिपण्णी हो (निकाह), या वैश्यावृति में फंसी औरतों का मानसिक चित्रण (साधना), या हो एक विधवा के पुनर्विवाह जैसा संवेदनशील विषय (एक ही रास्ता),अपन

रॉक ऑन के सितारे जुटे बाढ़ राहत कार्य में

आवाज़ ने संगीतप्रेमियों से इस फ़िल्म की सिफारिश की थी, और आज यह फ़िल्म साल की श्रेष्ट फिल्मों में एक मानी जा रही है. फ़िल्म के संगीत का नयापन युवाओं को बेहद भाया. फरहान अख्तर ने बतौर अभिनेता और गायक अपनी पहचान बनाई. बिहार में कोसी नदी में आई बाढ़ के पीडितों के लिए मुंबई में अभी हाल ही में इस फ़िल्म के सितारों और संगीत टीम के सदस्यों ने जबरदस्त शो किया और इस नेक काम के लिए धन अर्जित किया. "मेरी लौंड्री का एक बिल..." गीत जब ऋतिक रोशन थिरके तो दर्शक समूह झूम उठा. "रॉक ऑन" का संगीत वास्तव में रोक्किंग है. रविन्द्र जैन की वापसी लंबे समय के बाद सुप्रसिद्ध गीतकार संगीतकार रविन्द्र जैन फ़िल्म संगीत में वापसी कर रहे हैं. ७ नवम्बर को राजश्री प्रोडक्शन के साथ उनकी नई फ़िल्म "एक विवाह ऐसा भी" प्रर्दशित हो रही है. रविन्द्र जी ने राजश्री फ़िल्म्स के साथ लगभग १७ फिल्मों में काम किया है. "अबोध" की असफलता के लगभग २० वर्षों के बाद फ़िल्म "विवाह" से रविन्द्र जी ने बड़जात्या परिवार के साथ अपनी वापसी की थी. अब "एक विवाह ऐसा भी" से भी इसी तरह