Skip to main content

राग भीमपलासी : SWARGOSHTHI – 461 : RAG BHIMPALASI






स्वरगोष्ठी – 461 में आज


काफी थाट के राग – 5 : राग भीमपलासी


विदुषी गंगूबाई हंगल से भीमपलासी की एक रचना और लता मंगेशकर से फिल्मी गीत सुनिए




विदुषी गंगूबाई हंगल
लता मंगेशकर
“रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला “काफी थाट के राग” की पाँचवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र अर्थात कुल बारह स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए इन बारह स्वरों में से कम से कम पाँच का होना आवश्यक होता है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के बारह में से मुख्य सात स्वरों के क्रमानुसार उस समुदाय को थाट कहते हैं, जिससे राग उत्पन्न होते हों। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था। वर्तमान समय में रागों के वर्गीकरण के लिए यही पद्धति प्रचलित है। भातखण्डे जी द्वारा प्रचलित ये दस थाट हैं; कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव, पूर्वी, मारवा, काफी, आसावरी, तोड़ी और भैरवी। इन सभी प्रचलित और अप्रचलित रागों को इन्हीं दस थाट के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है। भारतीय संगीत में थाट स्वरों के उस समूह को कहते हैं जिससे रागों का वर्गीकरण किया जा सकता है। पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में 'राग तरंगिणी’ ग्रन्थ के लेखक लोचन कवि ने रागों के वर्गीकरण की परम्परागत 'ग्राम और मूर्छना प्रणाली’ का परिमार्जन कर मेल अथवा थाट प्रणाली की स्थापना की। लोचन कवि के अनुसार उस समय सोलह हज़ार राग प्रचलित थे। इनमें 36 मुख्य राग थे। सत्रहवीं शताब्दी में थाट के अन्तर्गत रागों का वर्गीकरण प्रचलित हो चुका था। थाट प्रणाली का उल्लेख सत्रहवीं शताब्दी के ‘संगीत पारिजात’ और ‘राग विबोध’ नामक ग्रन्थों में भी किया गया है। लोचन कवि द्वारा प्रतिपादित थाट प्रणाली का प्रयोग लगभग तीन सौ वर्षों तक होता रहा। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम और बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों में पण्डित भातखण्डे ने भारतीय संगीत के बिखरे सूत्रों को न केवल संकलित किया बल्कि संगीत के कई सिद्धान्तों का परिमार्जन भी किया। भातखण्डे जी द्वारा निर्धारित दस थाट में से सातवाँ थाट काफी है। इस श्रृंखला में हम काफी थाट के रागों पर क्रमशः चर्चा कर रहे हैं। प्रत्येक थाट एक आश्रय अथवा जनक राग होता है और शेष जन्य राग कहलाते हैं। आपके लिए इस श्रृंखला में हम काफी थाट के जनक और जन्य रागों पर चर्चा कर रहे हैं। आज के अंक में काफी थाट के जन्य राग भीमपलासी पर चर्चा करेंगे। आज श्रृंखला की पाँचवीं कड़ी में पहले हम आपको सुप्रसिद्ध विदुषी गंगूबाई हंगल से राग भीमपलासी में निबद्ध एक रचना का रसास्वादन करा रहे हैं और फिर इसी राग पर आधारित 1952 में प्रदर्शित एक फिल्म “नौबहार” से भक्ति और विरह भाव को उकेरता एक गीत लता मंगेशकर के स्वर में प्रस्तुत करेंगे। इस फिल्म के संगीतकार रोशन हैं।


राग भीमपलासी में भक्ति और श्रृंगार रस की रचनाएँ खूब मुखर होती हैं। यह औड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात आरोह में पाँच स्वर; सा, ग(कोमल), म, प, नि(कोमल), सां और अवरोह में सात स्वर; सां, नि(कोमल), ध, प, म, ग(कोमल), रे, सा प्रयोग किये जाते हैं। इस राग में गान्धार और निषाद स्वर कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। यह काफी थाट का राग है और इसका वादी और संवादी स्वर क्रमशः मध्यम और तार सप्तक का षडज होता है। इस राग में चूँकि वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है, इस दृष्टि से इसे उत्तरांग प्रधान राग होना चाहिए और दिन के उत्तर अंग में अर्थात रात्रि 12 से दिन के 12 बजे के बीच गाना या बजाना चाहिए परन्तु व्यवहार में ऐसा होता नहीं। अपवाद रूप में यह पूर्वांग प्रधान राग मान लिया जाता है और दिन के पूर्व अंग में ही गाया या बजाया जाता है। राग भीमपलासी के गायन और वादन का समय दिन का चौथा प्रहर होता है।

अब हम आपको राग भीमपलासी की ही एक आकर्षक बन्दिश सुनवाते हैं। यह किराना घराने की गायकी में शीर्षस्थ विदुषी गंगूबाई हंगल की एक रिकार्डिंग है। 5 मार्च, 1913 को धारवाड़, कर्नाटक में उनका जन्म हुआ था। बाल्यावस्था में उन्हें अपनी माँ से दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति की शिक्षा मिली। 1928 में उनका परिवार हुबली स्थानान्तरित हो गया। इससे पूर्व उन्होने सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ सवाई गन्धर्व से संगीत में दक्षता प्राप्त की और दत्तोपन्त देसाई से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। पण्डित भीमसेन जोशी इनके गुरूभाई थे। गंगूबाई हंगल ने संगीत को आत्मसात करने के लिए कठिन साधना की थी। उन्हें भारत के उच्च नागरिक सम्मान ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मविभूषण’ से अलंकृत किया गया था। 21 जुलाई, 2002 को इस महान गायिका का हुबली में निधन हो गया था। अब आप विदुषी गंगूबाई हंगल के स्वर में राग भीमपलासी की यह खयाल रचना सुनिए। इस प्रस्तुति में उनके गायन में उनकी सुपुत्री कृष्णा हंगल ने सहयोग दिया है।

राग भीमपलासी : “गरवा हरवा डारो री...” : तीनताल : विदुषी गंगूबाई हंगल


राग ‘भीमपलासी’ भारतीय संगीत का एक ऐसा राग है, जिसमें भक्ति और श्रृंगार रस की रचनाएँ खिल उठती है। यह औड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है। आज के अंक के लिए हमने 1952 में प्रदर्शित फिल्म “नौबहार” का एक गीत चुना है। फिल्म का कथानक एक अमीर, किन्तु नेत्रहीन युवक (अशोक कुमार) और एक गरीब मालिन (नलिनी जयवन्त) की प्रेमकथा पर केन्द्रित है। फिल्म का जो गीत हमने चुना है, वह राग भीमपलासी पर आधारित है। दरअसल यह गीत मीरा का एक भक्तिपद है, जिसके बोल हैं; “ए री मैं तो प्रेम दीवानी मेरा दर्द न जाने कोय...”। फिल्म के प्रसंग के अनुसार गीतकार शैलेन्द्र ने इस भक्तिपद के अन्तरों में परिवर्तन किये हैं। यह गीत लता मंगेशकर की आवाज़ में है। लता मंगेशकर के अलावा फिल्म में तलत महमूद और राजकुमारी की आवाज़ में कई मनभावन गीत हैं। वर्ष 1967 में इस गीत; “ए री मैं तो प्रेम दीवानी...” को अपने दस सर्वश्रेष्ठ गीतों में चुना था। यह एक सदाबहार गीत सिद्ध हुआ। इस गीत के लिए राग भीमपलासी के स्वर इतने सटीक सिद्ध हुए कि वर्षों बाद जब गुलज़ार ने 1979 में अपनी फिल्म “मीरा” के संगीत निर्देशन का दायित्व पण्डित रविशंकर को दिया था और इसी मीरापद का चुनाव अपनी फिल्म के लिए भी किया था। पण्डित रविशंकर ने इस पद को राग तोड़ी में बाँधा था और वाणी जयराम से गवाया था। गीत के लिए स्वर चुनते समय पण्डित जी की ही टिप्पणी थी; ‘रोशन ने इस पद को राग भीमपलासी का ऐसा आवरण दे दिया है कि वह धुन दिमाग से निकलती ही नहीं’। लता मंगेशकर के स्वर में फिल्म “नौबहार” के इस गीत को सुनिए, साथ ही रोशन के अविस्मरणीय संगीत की सराहना कीजिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।

राग भीमपलासी : “ए री मैं तो प्रेम दीवानी...” : लता मंगेशकर : फिल्म - नौबहार



संगीत पहेली

‘स्वरगोष्ठी’ के 461वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1953 में प्रदर्शित एक फिल्म के गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर देना आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। श्रृंखला के दूसरे सत्र अर्थात 470वें अंक की पहेली का उत्तर प्राप्त होने के बाद तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे उन्हें वर्ष के द्वितीय सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।





1 - इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का आधार है?

2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।

3 – इस गीत में किस पार्श्वगायक के स्वर है?

आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia9@gmail.com पर ही शनिवार 28 मार्च, 2020 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। फेसबुक पर पहेली का उत्तर स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेताओं के नाम हम उनके शहर/ग्राम, प्रदेश और देश के नाम के साथ “स्वरगोष्ठी” के अंक संख्या 463 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत, संगीत या कलाकार के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।


पिछली पहेली के सही उत्तर और विजेता

“स्वरगोष्ठी” के 459वें अंक में हमने आपको 1971 में प्रदर्शित फिल्म “पराया धन” से एक राग आधारित होली गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से कम दो सही उत्तरों की अपेक्षा की थी। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – शिवरंजनी (राग काफी का भी स्पर्श) दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – कहरवा तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – मन्ना डे और आशा भोसले

‘स्वरगोष्ठी’ की इस पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, खण्डवा, मध्यप्रदेश से रविचन्द्र जोशी, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों में से किसी भी प्रतिभागी के तीनों उत्तर सही नहीं मिले। डॉ. किरीट छाया के तीन में से केवल एक उत्तर ही सही है, अतः उन्हें केवल एक अंक ही मिलते हैं। शेष प्रतिभागियों को दो उत्तर सही होने पर प्रत्येक को दो अंक मिलते हैं। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से आप सभी को हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर ईमेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नए प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं।

अपनी बात

मित्रों, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी नई श्रृंखला “काफी थाट के राग” की पाँचवीं कड़ी में आज आपने काफी थाट के जन्य राग भीमपलासी का परिचय प्राप्त किया। साथ ही इस राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए आपने आज श्रृंखला की पाँचवीं कड़ी में पहले हमने आपको सुप्रसिद्ध गायिका विदुषी गंगूबाई हंगल से राग भीमपलासी में निबद्ध एक रचना का रसास्वादन कराया और फिर इसी राग पर आधारित 1952 में प्रदर्शित एक फिल्म “नौबहार” से भक्ति और विरह भाव को उकेरता एक गीत लता मंगेशकर के स्वर में प्रस्तुत किया। भक्त कवयित्री मीराबाई के इस पद का आंशिक परिवर्तन सत्येन्द्र अथईया ने किया है। फिल्म के संगीतकार रोशन हैं। कुछ तकनीकी समस्या के कारण हम अपने फेसबुक के मित्र समूह पर “स्वरगोष्ठी” का लिंक साझा नहीं कर पा रहे हैं। सभी संगीत अनुरागियों से अनुरोध है कि हमारी वेबसाइट http://radioplaybackindia.com अथवा http://radioplaybackindia.blogspot.com पर क्लिक करके हमारे सभी साप्ताहिक स्तम्भों का अवलोकन करते रहें। “स्वरगोष्ठी” के वेब पेज के दाहिनी ओर निर्धारित स्थान पर अपना ई-मेल आईडी अंकित कर आप हमारे सभी पोस्ट को नियमित रूप से अपने ई-मेल पर प्राप्त कर सकते है। “स्वरगोष्ठी” की पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेंगे। आज के इस अंक अथवा श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः सात बजे “स्वरगोष्ठी” के इसी मंच पर एक बार फिर संगीत के सभी अनुरागियों का स्वागत करेंगे।

प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  
रेडियो प्लेबैक इण्डिया  
राग भीमपलासी : SWARGOSHTHI – 461 : RAG BHIMPALASI : 22 मार्च, 2020 


Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की