Skip to main content

Posts

अनुराग शर्मा की लघुकथा खिलखिलाहट

रेडियो प्लेबैक इंडिया के साप्ताहिक स्तम्भ 'बोलती कहानियाँ' के अंतर्गत हम आपको सुनवाते हैं हिन्दी की नई, पुरानी, अनजान, प्रसिद्ध, मौलिक और अनूदित, यानि के हर प्रकार की कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक असगर वजाहत की लघुकथा " चार सूफी और एक कंबल " का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अनुराग शर्मा की एक लघुकथा " खिलखिलाहट ", उन्हीं के स्वर में। कहानी "खिलखिलाहट" एक दादा-दादी के वार्तालाप पर आधारित है। इसका कुल प्रसारण समय 1 मिनट 7 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा "खिलखिलाहट" का टेक्स्ट बर्ग वार्ता पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। मैं भारत से बाहर भारत मुझ में रहता है मेरी सब सीमाएं राष्ट्र असीमित सहता है ~ अनुराग शर्मा हर सप्त

अन्तिम प्रहर के राग : SWARGOSHTHI – 239 : RAGAS OF LAST QUARTER

स्वरगोष्ठी – 239 में आज रागों का समय प्रबन्धन – 8 : रात के चौथे प्रहर के राग पण्डित मल्लिकार्जुन मंसूर से सुनिए राग परज   “अँखियाँ मोरी लागि रही...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी श्रृंखला- ‘रागों का समय प्रबन्धन’ की आठवीं और समापन कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीतानुरागियों का स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यह भी है कि उत्तर भारतीय संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं अथवा प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। बसन्त ऋतु में राग बसन्त और बहार तथा वर्षा ऋतु में मल्हार अंग के रागों के गाने-बजाने की परम्परा है। इसी प्रकार अधिकतर रागों के प्रयोग का एक निर्धारित समय होता है। उस विशेष समय पर ही राग को सुनने पर आनन्द प्राप्त होता है। भारतीय कालगणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बाँटा है। सूर्योदय से लेकर सूर

‘मन की आँखें हज़ार होती हैं...!’ - रवीन्द्र जैन को श्रद्धांजलि

रवीन्द्र जैन को श्रद्धांजलि ’तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी’ विशेष "मन की आँखें हज़ार होती हैं " ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! दोस्तों, किसी ने सच ही कहा है कि यह ज़िन्दगी एक पहेली है जिसे समझ पाना नामुमकिन है। कब किसकी ज़िन्दगी में क्या घट जाए कोई नहीं कह सकता। लेकिन कभी-कभी कुछ लोगों के जीवन में ऐसी दुर्घटना घट जाती है या कोई ऐसी विपदा आन पड़ती है कि एक पल के लिए ऐसा लगता है कि जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया। पर निरन्तर चलते रहना ही जीवन-धर्म का निचोड़ है। और जिसने इस बात को समझ लिया, उसी ने ज़िन्दगी का सही अर्थ समझा, और उसी के लिए ज़िन्दगी ख़ुद कहती है कि तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी। आज का यह अंक समर्पित है गीतकार, संगीतकार, कवि और गायक रवीन्द्र जैन की स्मृति को जिनका कल 9 अक्टुबर को मुंबई के लीलावती अस्पताल में निधन हो गया। 28   फ़रवरी 1944 के दिन पंडित इन्द्रमणि ज्ञान प्रसाद जी के घर एक बच्चे का जन्म हुआ। परिवार में ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। पर जल्द ही यह पता चला कि उस बच्चे की आँखें बन्द