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बातों बातों में - INTERVIEW OF ACTOR, MODEL & FORMER CRICKETER SAJIL KHANDELWAL

  बातों बातों में - 03 फिल्म अभिनेता व पूर्व-क्रिकेटर सजिल खण्डेलवाल से सुजॉय चटर्जी की बातचीत " मेहनत ज़रूर रंग लाती है..."  नमस्कार दोस्तों। हम रोज़ फ़िल्म के परदे पर नायक-नायिकाओं को देखते हैं, रेडियो-टेलीविज़न पर गीतकारों के लिखे गीत गायक-गायिकाओं की आवाज़ों में सुनते हैं, संगीतकारों की रचनाओं का आनन्द उठाते हैं। इनमें से कुछ कलाकारों के हम फ़ैन बन जाते हैं और मन में इच्छा जागृत होती है कि काश, इन चहेते कलाकारों को थोड़ा क़रीब से जान पाते। काश, परदे से इतर इनके जीवन के बारे में कुछ मालूमात हो जाती, काश, इनके फ़िल्मी सफ़र की दास्ताँ के हम भी हमसफ़र हो जाते। ऐसी ही इच्छाओं को पूरा करने के लिए 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' ने बीड़ा उठाया है फ़िल्मी कलाकारों से साक्षात्कार करने का। फ़िल्मी अभिनेताओं, गीतकारों, संगीतकारों और गायकों के साक्षात्कारों पर आधारित यह श्रृंखला है 'बातों बातों में', जो प्रस्तुत होता है हर महीने के चौथे शनिवार के दिन। आज दिसम्बर, 2014 के चौथे शनिवार के दिन प्रस्तुत है अभिनेता, मॉडल और पूर्व-क्रिकेटर सजिल खण्डेलवाल से सु

‘आयो प्रभात सब मिल गाओ...’ : SWARGOSHTHI – 199 : RAG BHATIYAR

स्वरगोष्ठी – 199 में आज शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत – 8 : राग भटियार पण्डित राजन मिश्र ने एस. जानकी के साथ भटियार के स्वरों में गाया- 'आयो प्रभात सब मिल गाओ...' ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है, हमारी लघु श्रृंखला, ‘शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत’। अब हम इस लघु श्रृंखला के समापन की ओर बढ़ रहे हैं। इस श्रृंखला में अभी तक आपने 1943 से 1960 के बीच में बनी कुछ फिल्मों के ऐसे गीत सुने जो रागों पर आधारित थे और इन्हें किसी फिल्मी पार्श्वगायक या गायिका ने नहीं बल्कि समर्थ शास्त्रीय गायक या गायिका ने गाया था। छठे दशक के बाद अब हम आपको सीधे नौवें दशक में ले चलते है। इस दशक में भी फिल्मी गीतों में रागदारी संगीत का हल्का-फुल्का प्रयास किया गया था। ऐसा ही एक प्रयास संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल ने 1985 की फिल्म ‘सुर संगम’ में किया था। इस फिल्म के मुख्य चरित्र के लिए उन्होने सुविख्यात गायक पण्डित राजन मिश्र (युगल गायक पण्डित राजन और साजन मिश्र में से एक) से पार्श्वगायन कराया था। आज के अंक में हम

"नन्हे जिस्मों के टुकड़े लिए खड़ी है एक माँ..." - 15 साल बाद भी उतना ही सार्थक है यह गीत

एक गीत सौ कहानियाँ - 48  "बारूद के धुएँ में तू ही बोल जाएँ कहाँ..." "आज पेशावर पाक़िस्तान में इंसानियत को शर्मिन्दा करने वाला जो हत्याकाण्ड हुआ, जिसमें कई मासूम लोगों और बच्चों को बेरहमी से मारा गया, वह सुन के मेरी रूह काँप गई। उन सभी के परिवारों के दुख में मैं शामिल हूँ"   - लता मंगेशकर, 16 दिसम्बर 2014 "हमसे ना देखा जाए बरबादियों का समा,  उजड़ी हुई बस्ती में ये तड़प रहे इंसान,  नन्हे जिस्मों के टुकड़े लिए खड़ी है एक माँ,  बारूद के धुएँ में तू ही बोल जाएँ कहाँ..."।  क रीब 15 साल पहले फ़िल्म ’पुकार’ के लिए लिखा गया यह गीत उस समय के परिदृश्य में जितना सार्थक था, आज 15 साल बाद भी उतना ही यथार्थ है। हालात अब भी वही हैं। आतंकवाद का ज़हर समूचे विश्व के रगों में इस क़दर फैल चुका है कि करीबी समय में इससे छुटकारा पाने का कोई भी आसार नज़र नहीं आ रहा है। आतंकवाद का रूप विकराल से विकरालतम होता जा रहा है। इससे पहले सार्वजनिक स्थानों पर हमला कर नागरिकों या फिर फ़ौजी जवानों पर हमला करने से बाज़ ना आते हुए अब ला