Skip to main content

Posts

सरहदों की दूरियां संगीत से पाटते अली ज़फर और अमित त्रिवेदी

ताज़ा सुर ताल - 09 -2014 ताज़ा सुर ताल के एक और नए एपिसोड में आप सब का स्वागत है. आज हम आपको मिलवा रहे हैं सरहद पार से आये एक जबरदस्त फनकार से जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. पाकिस्तान के पॉप संशेशन अली ज़फर न सिर्फ एक बहतरीन गायक हैं बल्कि एक अच्छे अभिनेता, संगीतकार, और गीतकार भी हैं. आने वाली फिल्म टोटल सयापा  में अली इन सभी भूमिकाओं में नज़र आयेगें. बतौर गीतकार इस फिल्म में उन्होंने आशा  नाम का गीत लिखा है, फिल्म का काम पूरी तरह खत्म होने के बाद फिल्म के अपने साथी किरदार को जेहन में रख कर लिखा गया ये गीत, फिल्म का हिस्सा नहीं है पर एल्बम में अवश्य शामिल है. वैसे इस एल्बम में जिसे पूरी तरह से अली का ही एल्बम कहा जायेगा, मात्र एक ही युगल गीत है, जिसे आज हमने चुना है आपके लिए. अकील रूबी का लिखा ये गीत सदा लुभावन अरेबिक मिजाज़ का है, जिसमें रुबाब का सुन्दर इस्तेमाल हुआ है. फरिहा परवेज हैं अली के साथ इस गीत में. नहीं मालूम  निश्चित ही एक ऐसा गीत है जिसे आप बार बार सुनना चाहेगें.  आज के एपिसोड का दूसरा गीत है, मेरे बेहद पसंदीदा संगीतकार अमित त्रिवेदी का. दोस्तों अक्सर हम लोगों

सेंस्बल दुनिया के कुछ अन्सेंसेबल किरदार - हाईवे

फिल्म चर्चा - हाईवे   सालों पहले निर्देशक इम्तियाज़ अली ने छोटे परदे के लिए एक टेलीफिल्म बनायीं थी, जिसकी कहानी उनके दिलो दिमाग को रह रह कर झकझोरती रही, और अततः जब वी मेट, लव आजकल  जैसी सफल व्यावसायिक फ़िल्में बनाने के बाद आखिरकार वो साहस जुटा पाए अपनी उस कहानी को बिना लाग लपेट के परदे पर साकार करने का. फिल्म में इम्तियाज़ के साथ जुड़े देश के सबसे अव्वल छायाकार अशोक मेहता, ओस्कर विजेता ध्वनि संयोजक रसूल पुकुट्टी, संगीत गुरु ए आर रहमान, और संवेदनशील गीतकार इरशाद कामिल. यकीन मानिये हाइवे इम्तियाज़ की एक बहतरीन पेशकश है.  धुर्विया फासलों और एकदम विपरीत परिस्थियों से निकले दो किरदारों को हालात एक सफर में बाँध देता हैं, अपने अतीत के आघातों से मुहँ छुपाते, रूह के जख्मों को कहीं गहरे तहखानों में छुपाये ये किरदार इसी सफर के दौरान एक दूसरे को समझने की कोशिश में कहीं न कहीं खुद से ही आँख मिलाने के काबिल हो जाते हैं. वीरा के किरदार में अलिया अपनी पहली फिल्म ( स्टूडेंट ऑफ द ईयर ) की सामान्य भूमिका और 'प्लास्टिक फेस इमेज' से कहीं अधिक परिपक्व और बेहतर नज़र आई है, तो वहीँ महाबीर की भ

सभी शादी शुदा जोड़ों को अवश्य देखनी चाहिए 'शादी के साईड एफ्फेक्ट्स'

फिल्म चर्चा - शादी के साईड एफ्फेक्ट्स  साकेत चौधरी के निर्देशन में बनी इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत है फिल्म की कास्टिंग. राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित फरहान अख्तर और विध्या बालन की केमिस्ट्री ही इस फिल्म की जान है. प्यार के साईड एफ्फेक्ट्स  के सिक्युअल के तौर पर बनी इस फिल्म की कहानी बेहद दिलचस्प अंदाज़ में एक के दौर के दाम्पत्य जीवन की मिठास और कड़वाहट को दर्शाती है. सिद्धार्थ रॉय के किरदार में फरहान का अभिनय कबीले तारीफ है. वास्तव में वो परदे पर इतने सहज लगते हैं कि दर्शक खुद बा खुद उनके किरदार से जुड जाते हैं, तो वहीँ त्रिशा के किरदार में विध्या बेहद सराहनीय उपस्तिथि दर्ज कराने में कामियाब रही है. पूरी फिल्म यूँ तो इन्हीं दोनों किरदारों के इर्द गिर्द ही घूमती है, पर राम कपूर और इला अरुण भी अपनी अपनी भूमिकाओं में खासे जचे हैं.  त्रिशा और सिद्धार्थ की शादी शुदा जिंदगी में सब कुछ बढ़िया चल रहा होता है कि अचानक एक नए मेहमान के आने की दस्तक से उथल पुथल मच जाती है. जहाँ त्रिचा अपनी प्रेगनेंसी और उसके बाद अपनी नन्हीं बच्ची के लिए नौकरी छोड़ देती है वहीँ सिद्धार्थ इस नई जिम्मेदार