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‘मैं तो कब से तेरी शरण में हूँ...’ : राग अहीर भैरव में भक्तिरस

    स्वरगोष्ठी – 141 में आज रागों में भक्तिरस – 9 पण्डित भीमसेन जोशी के स्वर में सन्त नामदेव का पद ‘ रेडियो प्लेबैक इण्डिया ’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘ स्वरगोष्ठी ’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘ रागों में भक्तिरस ’ की नौवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र , एक बार पुनः आप सब संगीतानुरागियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आप के लिए भारतीय संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस राग पर आधारित फिल्म संगीत के उदाहरण भी आपको सुनवा रहे हैं। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम आपसे प्रातःकालीन राग अहीर भैरव की चर्चा करेंगे। आपके समक्ष इस राग के भक्तिरस-पक्ष को स्पष्ट करने के लिए हम दो भक्तिरस से अभिप्रेरित रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे। पहले आप सुनेंगे राग अहीर भैरव के स्वरों में पिरोया सन्त नामदेव का एक भक्तिपद , भारतरत्न पण्डित भीमसेन जोशी के स्वरों में। इसके उपरान्त हम प्रस्तुत करेंगे , 1982 में प्रदर्शित फिल्म ‘ राम नगरी ’ का समर्पण भाव से परिपूर्ण एक भक्तिगीत।   पं. भीमसेन जोशी  इ स श्रृंखला

मन्ना दा को समर्पित है आज की 'सिने पहेली'...

सिने पहेली – 85     "होगा मसीहा सामने तेरे, फिर भी न तू बच पायेगा, तेरा अपना ख़ून ही आख़िर तुझको आग लगायेगा, आसमान में उड़ने वाले मिट्टी में मिल जायेंगे....", कल टेलीविज़न पर मन्ना दा के अन्तिम सफ़र को देखते समय उन्ही के गाये फ़िल्म 'उपकार' के इस गीत के इन बोलों में इस नश्वर संसार के कटु सत्य को एक बार फिर से महसूस कर जैसे मन काँप सा उठा। मन्ना दा चले गये.... हमेशा के लिए.... बहुत बहुत दूर। और हमसे कह गये "जीवन कहीं भी ठहरता नहीं है, आँधी से तूफ़ाँ से डरता नहीं है, तू न चलेगा तो चल देंगी राहें, मइल को तरसेंगी तेरी निगाहें, तुझको चलना होगा, तुझको चलना होगा..."। मन्ना दा भी निरन्तर अपने जीवन पथ पर चलते रहे, बिना रुके, और करते रहे साधना, सुरों की।  संगीत की वादियों में गूंजती अनगिनत आवाज़ों में इस सुर-साधक की आवाज़ सबसे अलग है। इनके स्वर कभी नभ से विराटता रचते हैं, और कभी सागर की गहराई का अहसास कराते हैं। वो चाहे रुमानीयत हो, वीर रस के ओजपूर्ण गीत हो, हास्य की गुदगुदाहट हो, या फिर अपने आराध्य को अर्पित भक्ति की स्वरांजलि, इस

एक आवाज़ जिसने गज़ल को दिए नए मायने

म खमली आवाज़ की रूहानी महक और ग़ज़ल के बादशाह जगजीत सिंह को हमसे विदा हुए लगभग २ साल बीत चुके हैं, बीती १० तारिख को उनकी दूसरी बरसी के दिन, उनकी पत्नी चित्रा सिंह ने उनके करोड़ों मुरीदों को एक अनूठी संगीत सी डी का लाजवाब तोहफा दिया. "द वोईस बियोंड' के नाम से जारी इस नायब एल्बम में जगजीत के ७ अप्रकाशित ग़ज़लें सम्मिलित हैं, जी हाँ आपने सही पढ़ा -अप्रकाशित. शायद ये जगजीत की गाई ओरिजिनल ग़ज़लों का अंतिम संस्करण होगा, पर उनकी मृत्यु के पश्चात ऐसी कोई एल्बम नसीब होगी ऐसी उम्मीद भी आखिर किसे थी ?  खुद चित्रा सिंह ने जो खुद भी एक बेमिसाल गज़ल गायिका रहीं हैं, ने इस एल्बम को श्रोताओं के लिए जारी किया यूनिवर्सल मुय्सिक के साथ मिलकर. जगजीत खुद में गज़ल की एक परंपरा हैं और उनकी जगह खुद उनके अलावा और कोई नहीं भर सकता. जगजीत की इस एल्बम में आप क्या क्या सुन सकते हैं आईये देखें.  निदा फाजली के पारंपरिक अंदाज़ में लिखा गया एक भजन है. धडकन धडकन धड़क रहा है बस एक तेरो नाम ...  जगजीत के स्वरों में इसे सुनते हुए आप खुद को ईश्वर के बेहद करीब पायेंगें. नन्हों की भोली बातों में उजली उजल