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सुरीला है ये आग का दरिया - 'इस्सक' तेरा

प्रे म कहानियां और वो भी कालजयी प्रेम कथाएं फिल्मकारों को सदा से ही प्रेरित करती आईं है. हीर राँझा हो सोहनी महिवाल या फिर रोमियो जूलियट, इन अमर प्रेम कहानियों में कुछ तो ऐसा है जो दर्शक बार बार इन्हें देखने के लिए लालायित रहते हैं. रोमियो जूलियट शेक्सपियर की अमर कृति है, जिस पर अब तक ढेरों फ़िल्मी कहानियां आधारित रहीं है. एक बार फिर इस रचना का भारतीयकरण हुआ है मनीष तिवारी निर्देशित इस्सक  में जहाँ राँझना  के बाद एक बार फिर दर्शकों के देखने को मिलेगी बनारस की पृष्ठभूमि. खैर देखने की बात होगी बाद में फिलहाल जान लें कि इस इस्सक  में सुनने लायक क्या क्या है... मोहित  चौहान की सुरीली आवाज़ ऐसे लगती है जैसे पहाड़ों में गूंजती हवा हो, और अगर गीत रोमानी हो तो कहना ही क्या, एल्बम की शुरुआत इसी रेशमी आवाज़ से होती है इस्सक तेरा  एक खूबसूरत प्रेम गीत है. जितने सुन्दर शब्द है मयूर पूरी के, सचिन जिगर की जोड़ी ने इसे उतने ही नर्मो नाज़ुक अंदाज़ में स्वरबद्ध किया है. एल्बम को एक दिलकश शुरुआत देता है ये गीत.  अगले  गीत में रशीद खान की आवाज़ है, गहरी और मर्म को भेदती, झीनी रे झीनी  गीत के शब्दकार ह

छला जिस लूटेरे ने उसी का है इंतज़ार...

गोल्ड सीरीस, खरा सोना गीत 04 रुला के गया सपना मेरा लता मंगेशकर शैलेन्द्र एस डी बर्मन शो स्क्रिप्ट : सुजॉय चट्टर्जी स्वर : अन्तरा चक्रवर्ती प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

राग किरवाणी पर आधारित बेहद सुरीले फ़िल्मी गीत

राग किरवाणी पर आधारित फ़िल्मी गीत  स्क्रिप्ट : कृष्णमोहन मिश्र  स्वर एवं प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

बरसते बादल और झूमता छलिया

गोल्ड सीरीस : खरा सोना गीत 03 स्क्रिप्ट : सुजॉय चट्टर्जी स्वर : सुनील प्रस्तुति : संज्ञा टंडन डम डम डिगा डिगा ... फिल्म : छलिया गायक : मुकेश गीतकार : कमर जलालाबादी संगीतकार : कल्याणजी आनंदजी

‘बलमा मोरे तोरे संग लागली प्रीत...’ : राग बागेश्री का सौन्दर्य

स्वरगोष्ठी – 127 में आज भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति – 7 मन्ना डे ने बागेश्री के सुरों में गाया- ‘जा रे बेईमान तुझे जान गए...’ इन दिनों ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी है, लघु श्रृंखला ‘भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति’। इस श्रृंखला की सातवीं कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों की इस महफिल में उपस्थित हूँ और आपका अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपको राग-आधारित कुछ ऐसे फिल्मी गीत सुनवा रहे हैं, जो छः दशक से भी पूर्व के हैं। रागों के आधार के कारण ये गीत आज भी सदाबहार गीत के रूप में हमारे बीच प्रतिष्ठित हैं। परन्तु इनके संगीतकार हमारी स्मृतियों में धूमिल हो गए हैं। इस श्रृंखला को प्रस्तुत करने का उद्देश्य ही यही है कि इन कालजयी, राग आधारित गीतों के माध्यम से हम उन भूले-बिसरे संगीतकारों को स्मरण करें। आज के अंक में हम 1962 में प्रदर्शित फिल्म ‘प्राइवेट सेक्रेटरी’ का राग बागेश्री पर आधारित एक मधुर फिल्मी गीत सुनेगे और इस गीत के संगीतकार डी. दिलीप का स्मरण करेंगे। इसके साथ ही सुप्

सिने पहेली - 71

सिने पहेली – 71 आठवें सेगमेंट की पहली पहेली     सि ने पहेली के 71वें अंक में  मैं आपका साथी अमित तिवारी आप सबका स्वागत करता हूँ.  सिने पहेली का सातवाँ सेगमेंट खत्म हुआ और हम आ पहुंचे हैं आठवें सेगमेंट पर. क्या गजब का रहा सातवाँ सेगमेंट. उतार चढ़ाव, सभी प्रतिभागी एक दूसरे को जमकर टक्कर देते हुए. कुछ नये खिलाड़ी हमसे जुड़े भी. सातवें सेगमेंट की अंतिम पहेली में सबसे पहले सभी जवाब सही देकर सरताज प्रतियोगी बने बेंगुलुरू के पंकज मुकेश जी. सातवें सेगमेंट में शुरू से अपनी बढ़त बनाये रखी लखनऊ से प्रकाश गोविन्द जी ने और सातवें सेगमेंट में निर्णायक रूप से प्रथम स्थान प्राप्त किया. दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमशः बीकानेर से विजय कुमार व्यास जी और लखनऊ से चंद्रकांत दीक्षित जी रहे.  पंकज मुकेश जी ने कड़ी टक्कर दी लेकिन उन्हें सिने पहेली के 62 वें और 64 वें अंक में भाग नहीं लेने की वजह से नुकसान उठाना पड़ा.  बहरहाल सभी विजेताओं को बधाईयाँ और अन्य सभी को आठवें सेगमेंट के लिए शुभकामनायें. इस अंक से प्रतियोगिता में जुड़ने वाले नये खिलाड़ियों का स्वागत करते हुए हम उन्हें यह भी बताना

प्रेरणात्मक स्वरों में मस्ती की झनकार और मासूम प्रेम की पुकार -'मिल्खा' का जीवन सार

कु छ एलबम्स ऐसी होती हैं जिनके बारे में लिखते हुए वाकई दिल से खुशी का अनुभव मिलता है, क्योंकि खुशियों की ही तरह अच्छे संगीत को बांटना भी बेहद सुखद सा एहसास होता है, आज हम एक ऐसे ही एल्बम का जिक्र आपसे साँझा करने वाले हैं. वैसे इन दिनों हिंदी फिल्म संगीत प्रेमियों की चांदी है. राँझना , और लूटेरा  का संगीत पहले ही संगीत प्रेमियों को खूब रास आ रहा है ऐसे में एक और दमदार एल्बम की आमद हो जाए तो और भला क्या चाहिए. दोस्तों बायोपिक यानी किसी व्यक्ति विशेष के जीवन पर हमारे यहाँ बहुत कम फ़िल्में बनी हैं, शायद इसकी वजह निर्माता निर्देशकों के विवादों और कानूनी झमेलों से बचने की प्रवर्ति है, खैर आज हम चर्चा करेंगें भाग मिल्खा भाग  के संगीत पक्ष की. भाग मिल्खा... धावक मिल्खा सिंह की जीवनी है जहाँ मिल्खा बने हैं फरहान अख्तर. फिल्म का संगीत पक्ष संभाला है शंकर एहसान लॉय की तिकड़ी ने और गीत लिखे हैं प्रसून जोशी ने.  एल्बम की शुरुआत दिलेर मेहदी के रूहानी स्वर में नानक नाम जहाज़ दा  से होती है. मात्र डेढ़ मिनट की इस गुरबानी से बेहतर शुरुआत भला क्या हो सकती थी. इसके तुरंत बाद शुरू होता है गीत जिंद