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जवां रिदम पर पुरानी तान छेड़ता स्टूडेंट ऑफ द ईअर का संगीत

प्लेबैक वाणी   एक अरसे के बाद निर्देशन में उतरे हैं करण जौहर, और उनकी नयी फिल्म में न शाहरुख, न हृतिक, न काजोल, न रानी मुखर्जी. यानी बड़े सितारों से अलग उन्होंने चुने हैं एकदम नए नौजवान सितारे, अब देखना है कि इन नए घोड़ों के कन्धों पर करण एक और बड़ी हिट दे पायेंगें या नहीं. उनकी फिल्मों की सफलता का एक बड़ा श्रेय संगीत का रहा है. अब तक की उनकी हर फिल्म संगीत के लिहाज से जबरदस्त रही है. आईये देखें  “ स्टूडेंट ऑफ द ईयर ”  के संगीत का हाल, हमारी आज की चर्चा में. अल्बम में संगीत है विशाल शेखर का और गीत लिखें हैं अन्विता दस गुप्तन ने. अल्बम की शुरुआत होती है ८० के दशक के यादगार हिट  “ डिस्को दीवाने ”  के रीमिक्स से. जैसे कि हमारे श्रोता वाकिफ होंगें कि किस तरह नाजिया हसन का ये लाजवाब डिस्को गीत एक दौर में हर जवां दिल की धडकन हुआ करता था. नाज़िया हसन के सफर का जिक्र हम अपनी सिरीस  “ अधूरी रही जिनकी कहानियाँ ”  में कर चुके हैं. किसी पुराने गीत को नए दौर के लिए कैसे फिर से जिंदा किया जा सकता है ये कोई विशाल शेखर से सीखे. डिस्को दीवाने का ये संस्करण बेहद ऊर्जात्मक है मगर फिर भी इसमें

फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – ४

       स्वरगोष्ठी – ९३ में आज रसूलन बाई, जद्दन बाई और मन्ना डे के स्वरों में एक ठुमरी ‘फूलगेंदवा न मारो लगत करेजवा में चोट...’ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ जारी है। इस श्रृंखला की चौथी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज के अंक में हम आपसे पूरब अंग की एक विख्यात ठुमरी गायिका रसूलन बाई और जद्दन बाई के व्यक्तित्व पर और उन्हीं की गायी एक अत्यन्त प्रसिद्ध ठुमरी- ‘फूलगेंदवा न मारो, लगत करेजवा में चोट...’ पर चर्चा करेंगे। इसके साथ ही इस ठुमरी के फिल्मी प्रयोग पर भी आपसे चर्चा करेंगे। बी सवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में पूरब अंग की ठुमरी गायिकाओं में विदुषी रसूलन बाई का नाम शीर्ष पर था। पूरब अंग की उप-शास्त्रीय गायकी- ठुमरी, दादरा, होरी, चैती, कजरी आदि शैलियों की अविस्मरणीय गायिका रसूलन बाई बनारस के निकट स्थित कछवा बाज़ार (वर्तमान मीरजापुर ज़िला) की रहने वाली थीं और उनकी संगीत शिक्षा बनारस (अब वाराणसी) में हुई थी। संगीत का संस्कार इन्हें अपनी

त्योहारों की खुशियों में पहचानें कुछ छुपे चेहरे

20 अक्तूबर, 2012 सिने-पहेली # 42  'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार और हार्दिक स्वागत है आप सभी का, आपके मनपसन्द स्तम्भ 'सिने पहेली' में। सबसे पहले आप सबको नवरात्रि, दुर्गापूजा और दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएँ देते हैं। उत्सव के ये 10 दिन आपके जीवन में ढेर सारी ख़ुशियाँ लेकर आये, और आने वाला वर्ष आपके लिए शुभ हो, मंगलमय हो, यही हम कामना करते हैं।  दो स्तों, पिछले कुछ दिनों से 'सिने पहेली' प्रतियोगिता में भाग लेने वाले प्रतियोगियों की संख्या में कटौती हुई है और न ही कोई नया खिलाड़ी इस खेल में शामिल हो रहा है। जब मैंने और कृष्णमोहन जी ने अपने-अपने मण्डलो में लोगों से इसका कारण पूछा तो अधिकतर ने यही बताया कि 'सिने पहेली' की पहेलियाँ बहुत कठिन होती हैं, जिनका उनके पास जवाब नहीं होता, वरना उन्हें इसमें भाग लेने में कोई परेशानी नहीं है। इसके जवाब में हम यही कहना चाहेंगे कि 'सिने पहेली' के प्रश्न इतने कठिन होने पर भी कई खिलाड़ी पूरे के पूरे अंक हासिल कर रहे हैं। ऐसे में अगर पहेली क