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शब्दों के चाक पर -जीवन चक्र के अभिमन्यु

जीवन चक्र के अभिमन्यु  दोस्तों, ये जीवन भी तो किसी रण से कम नहीं है. यहाँ कोई अर्जुन है तो कोई दुशासन, कोई धोखे से छला गया करण है तो कोई चक्रव्यूह में फंसा अकेला लड़ता अभिमन्यु. जीवन चक्र के इसी महाभारत को दिन प्रतिदिन भोग रहे अभिमन्युओं की कहानियाँ बयां कर रहे हैं आज हमारे कवि मित्र. पोडकास्ट को आवाज़ दी है अभिषेक ओझा ओर शैफाली गुप्ता ने. स्क्रिप्ट रची है विश्व दीपक ने ओर संयोजन सहयोग है वंदना गुप्ता, अनुराग शर्मा ओर सजीव सारथी का, तो सुनिए सुनाईये ओर छा जाईये. (नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)   या फिर  यहाँ   से डाउनलोड करें  "शब्दों के चाक पर" हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने  के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि  हम पिछले हफ

स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल -14

मैंने देखी पहली फिल्म भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का दूसरा गुरुवार है और आज बारी है- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ की। इस द्विसाप्ताहिक स्तम्भ के पिछले अंक में आप श्री शिशिर कृष्ण शर्मा की देखी पहली फिल्म ‘ बीस साल बाद ’ के संस्मरण के साझीदार रहे। आज मनीष कुमार अपने परिवार वालों से अलग अपनी देखी पहली फिल्म ‘परिन्दा’ का संस्मरण प्रस्तुत कर रहे हैं। यह प्रतियोगी वर्ग की प्रविष्टि है।   दोस्तों के साथ ‘ब्ल्यू लैगून’ देखने का साहस नहीं हुआ : मनीष कुमार सि नेमा देखना मेरे लिए कभी लत नहीं बना। शायद ही कभी ऍसा हुआ है कि मैंने कोई फिल्म शो के पहले ही दिन जा कर धक्का-मुक्की करते हुए देख ली हो। पर इसका मतलब ये भी नहीं कि हॉल में जाकर फिल्म देखना अच्छा नहीं लगता था। बस दिक्कत मेरे साथ यही है कि मन लायक फिल्म नहीं रहने पर मुझे तीन घण्टे पिक्चर झेल पाना असह्य कार्य लगता है। इसीलिए आजकल काफी तहकीकात करके ही फिल्म देखने जाता हूँ।

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट -वर्षाकालीन राग (भाग २)

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट (१२) कृष्ण मोहन जी के लिखे वर्षाकालीन रागों को चित्रित करते आलेख को अपनी आवाज़ और गीतों से सजा कर पेश कर रहीं हैं संज्ञा टंडन. इस प्रस्तुति का पहला भाग आपने सुना पिछले सप्ताह. आज सुनिए इस प्रस्तुति का दूसरा और अंतिम भाग.