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पार्श्वगायक मुकेश के जन्मदिवस पर विशेष प्रस्तुति

सावन का महीना और मुकेश का अवतरण हिन्दी फिल्मों में १९४१ से १९७६ तक सक्रिय रहने वाले मशहूर पार्श्वगायक स्वर्गीय मुकेश फिल्म-संगीत-क्षेत्र में अपनी उत्कृष्ठ स्तर की गायकी के लिए हमेशा याद किये जाते रहे हैं। हिन्दी फिल्मों में उन्हें सर्वाधिक ख्याति उनके गाये दर्द भरे नगमों से मिली। इसके अलावा उन्होने कई ऐसे गीत भी गाये हैं, जो राग आधारित गीतों की श्रेणी में आते हैं। २२ जुलाई, २०१२ को मुकेश जी का ८८-वां सालगिरह है। आज उनके जन्मदिवस की पूर्वसंध्या पर रेडियो प्लेबैक इंडिया के नियमित पाठक और मुकेश के अनन्य भक्त पंकज मुकेश, इस विशेष आलेख के माध्यम से मुकेश के गाये गीतों की चर्चा कर रहे हैं। साथ ही आपको सुनवा रहे हैं उनके गाये कुछ सुमधुर गीत। मि त्रों, मानसून के आने से ऋतुओं की रानी वर्षा, अपने पूरे चरम पर विराजमान है। दरअसल सावन के महीने और पार्श्वगायक मुकेश के बीच सम्बन्ध बहुत ही गहरा है। मुकेश जी की बहन चाँद रानी के अनुसार २२जुलाई, १९२३ को रविवार का दिन था, धूप खिली थी और मुकेश के जन्म के साथ ही अचानक सावन की रिमझिम बूँदें बरस पड़ीं और पूरा माहौल खुशनुमा हो गया। आइये शुर

कहानी पॉडकास्ट - बिखरते रिश्ते - सुधा ओम ढींगरा - शेफाली गुप्ता

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अर्चना चावजी की आवाज़ में प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई की कथा " चौबे जी " का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं सुधा ओम ढींगरा द्वारा लिखित हृदयस्पर्शी कहानी " बिखरते रिश्ते ", जिसको स्वर दिया है शेफाली गुप्ता ने। बिखरते रिश्ते का पाठ्य रचनाकार ब्लॉग पर उपलब्ध है। इस कहानी का कुल प्रसारण समय 19 मिनट 38 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। यहाँ तो बच्चे तीन-चार भाषाएँ सीखते हैं, पर बोलते अपनी मातृभाषा हैं। इसके लिए माँ-बाप को कोशिश करने की बहुत जरूरत है। हिंदी को लेकर कुंठित न हों। ~ सुधा ओम ढींगरा सुधा ओम ढींगरा अमेरिका में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए जुटीं हैं। वे नार्थ कैरोलाईना

स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल – 6

भूली-बिसरी यादें भारतीय सिनेमा-निर्माण के शताब्दी वर्ष में आयोजित हमारे इस विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ के एक नए अंक में आपका स्वागत है। विगत एक सौ वर्षों में भारतीय जनमानस को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला और सर्वसुलभ कोई माध्यम रहा है तो वह है, सिनेमा। 3मई, 1913 को मूक सिनेमा से आरम्भ इस यात्रा का पहला पड़ाव 1931 में आया, जब हमारा सिनेमा सवाक हुआ। इस स्तम्भ में हम आपसे मूक और सवाक युग के कुछ विस्मृत ऐतिहासिक क्षणों को साझा कर रहे हैं। ‘राजा हरिश्चन्द्र’ से पहले पि छले अंकों में हम आपसे यह चर्चा कर चुके हैं कि 3मई, 1913 को विदेशी उपकरणों की सहायता से किन्तु भारतीय कथानक पर भारतीय कलाकारों द्वारा पहले कथा-चलचित्र ‘राजा हरिश्चन्द्र’ का निर्माण और प्रदर्शन हुआ था। इस पहली मूक फिल्म का प्रदर्शन 1913 में हुआ था, किन्तु इस सुअवसर के लिए भारतीयों ने 1896 से ही प्रयास करना शुरू कर दिया था। पिछले अंक में हमने ऐसे ही कुछ प्रयासों की चर्चा की थी। आज ऐसे कुछ और प्रयासों की हम चर्चा करेंगे। वर्ष 1900 में मुम्बई के एक विद्युत इंजीनियर एफ.बी. थानावाला ने एक वृत्तचित्र ‘स