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"ब्लोग्गर्स चोईस" के पहले सत्र का समापन मेरी पसंद के गीतों के साथ -रश्मि प्रभा

गीतों से शुरू होता है जीवन - कभी माँ की लोरी से, कभी गुड़िया की कहानी से. एड़ी उचकाकर जब मैं खुद गाती थी तो सारी दुनिया अपनी लगती थी ... उसी एड़ी की मासूमियत से शुरू करती हूँ अपनी पसंद - नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए .. . मैं बहुत डरती थी, डरती भी हूँ (किसी को बताइयेगा मत, भूत सुन लेगा - हाहाहा ) . जब अपने पापा के स्कूल के एक गेट से दूसरे गेट तक अकेली पड़ जाती थी तो भूत को भ्रमित करने के लिए और खुद को हिम्मत देने के लिए गाती थी - मैं हूँ भारत की नार लड़ने मरने को तैयार ... एक ख़ास उम्र और वैसे ख्वाब .... गीत तो कई थे , पर यह गीत एक समर्पित सा एहसास देता है .... बच्चों के बीच मेरे पैरों में एक अदभुत शक्ति आ जाती, और मैं कहानियों की पिटारी बन जाती .... अपना वह पिटारा आज भी मेरी पसंद में है, जिसे अब मैं अपने सूद को दूंगी यानि ग्रैंड चिल्ड्रेन को .... मेरे बच्चे मेरी ज़िन्दगी और मैं उनकी वह दोस्त माँ , जो उनके चेहरे से मुश्किलों की झलकियाँ मिटा दे ..... यह गीत हमारी पसं

सिने-पहेली # 21 (जीतिये 5000 रुपये के इनाम)

सिने-पहेली # 21 (21 मई, 2012) न मस्कार, दोस्तों। आज है 'सिने पहेली' की 21वीं कड़ी, यानी आज इस प्रतियोगिता के तीसरे सेगमेण्ट की पहली कड़ी है और इसे हम सबके प्रिय सुजॉय चटर्जी की व्यस्तता के कारण मैं कृष्णमोहन मिश्र, प्रस्तुत करते हुए आप सभी का स्वागत कर रहा हूँ। इससे पहले कि आज की 'सिने पहेली' का सिलसिला शुरू हो, सेगमेण्ट के विजेता की घोषणा करना आवश्यक है। यूँ तो इस प्रतियोगिता के नियमित प्रतिभागियों ने तो विजेता का अनुमान लगा ही लिया होगा। दोस्तों, हमारे दूसरे सेगमेण्ट के विजेता हुए हैं- लखनऊ के प्रकाश गोविन्द , जिन्होने 49 अंक अर्जितकर सर्वोच्च स्थान पर रहे। बैंगलुरु के पंकज मुकेश ने प्रकाश जी को कड़ी टक्कर देते हुए दूसरा स्थान और मुम्बई के रीतेश खरे ने तीसरा स्थान प्राप्त किया है। इन दोनों प्रतिभागियों को क्रमशः 45 और 42 अंक मिले हैं। चौथे स्थान पर 34 अंक लेकर अमित चावला और पांचवें स्थान पर 32 अंक पाकर क्षिति तिवारी ने स्वयं को दर्ज़ कराया है। इन प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। इनके साथ-साथ दूसरे सेगमेण्ट की प्रतियोगिता मे

गीत उस्तादों के : चर्चा राग सोहनी की

स्वरगोष्ठी – ७१ में आज राग सोहनी के स्वरों का जादू : 'प्रेम जोगन बन के...' पटियाला कसूर घराने के सिरमौर, उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ पिछली शताब्दी के बेमिसाल गायक थे। अपनी बुलन्द गायकी के बल पर संगीत-मंचों पर लगभग आधी शताब्दी तक उन्होने अपनी बादशाहत को कायम रखा। पंजाब अंग की ठुमरियों के वे अप्रतिम गायक थे। संगीत-प्रेमियों को उन्होने संगीत की हर विधाओं से मुग्ध किया, किन्तु फिल्म संगीत से उन्हें परहेज रहा। एकमात्र फिल्म- ‘मुगल-ए-आजम’ में उनके गाये दो गीत हैं। आज की ‘स्वरगोष्ठी’ में हम इनमें से एक गीत पर चर्चा करेंगे। शा स्त्रीय, उपशास्त्रीय, लोक और फिल्म संगीत पर केन्द्रित साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नये अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने सभी पाठकों-श्रोताओं का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, हमारे कई संगीत-प्रेमियों ने फिल्म संगीत में पटियाला कसूर घराने के विख्यात गायक उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ के योगदान पर चर्चा करने का आग्रह किया था। आज का यह अंक हम उन्हीं की फरमाइश पर प्रस्तुत कर रहे हैं। भारतीय फिल्मों के इतिहास में १९५९ में बन कर तैयार फिल्म- ‘मुगल