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दिग दिग दिगंत - नया ओरिजिनल

Manoj Agarwal प्लेबैक ओरिजिनलस् एक कोशिश है दुनिया भर में सक्रिय उभरते हुए गायक/संगीतकार और गीतकारों की कला को इस मंच के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने की. इसी कड़ी में हम आज लाये हैं दो नए उभरते हुए फनकार, और उनके समागम से बना एक सूफी रौक् गीत. ये युवा कलाकार हैं गीतकार राज सिल्स्वल (कांस निवासी) और संगीतकार गायक मनोज अग्रवाल, तो दोस्तों आनंद लें इस नए ओरिजिनल गीत का, और हमें बताएं की इन प्रतिभाशाली फनकारों का प्रयास आपको कैसा लगा गीत के बोल - दिग दिग दिगंत  तू भी अनंत, में भी अनंत  चल छोड़ घोंसला, कर जमा होंसला  ये जीवन है, बस एक बुदबुदा  फड पंख हिला और कूद लगा   थोडा जोश में आ, ज़ज्बात जगा  पींग बड़ा आकाश में जा  ले ले आनंद, दे दे आनंद दिग दिग दिगंत दिग दिग दिगंत    तारा टूटा, सारा टूटा  जो हारा , हारा टूटा  क्यों हार मना, दिल जोर लगा  सोतान का सगा है कोन यहाँ  तेरे रंग में रंगा है कौन यहाँ  तू खुद का खुदा है, और खुद में खुदा है  ढोंगी है संत झूठे महंत  दिग दिग दिगंत दिग दिग दिगंत   

५ मई- आज का गाना

गाना:  जा रे, जा रे उड़ जा रे पंछी, बहारों के देस जा रे चित्रपट:  माया संगीतकार: सलिल चोधरी गीतकार: मजरूह सुलतान पुरी स्वर:  लता जा रे, जा रे उड़ जा रे पंछी बहारों के देस जा रे यहाँ क्या है मेरे प्यारे क्यूँ उजड़ गई बगिया मेरे मन की जा रे ... ना डाली रही ना कली अजब ग़म की आँधी चली उड़ी दुख की धूल राहों में जा रे ... मैं वीणा उठा ना सकी तेरे संग गा ना सकी ढले मेरे गीत आहों में जा रे ...

रचना बजाज की कहानी "अपनापन"

इस साप्ताहिक स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर शुक्रवार को आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं रचना बजाज जी की कहानी अपनापन जिसे स्वर दिया है अर्चना चावजी ने। कहानी "अपनापन" का कुल प्रसारण समय 2 मिनट 32 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। जो धनी बनुँ तो दान करुँ, शिक्षित हूँ तो बाटुँ शिक्षा; इस जीवन मे पाई है, बस इतनी ही मैने दीक्षा।  ~ रचना बजाज हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी फ़ातिमा चाची भी झट उनके पास आकर कहती , आरती दीदी मुझे भी अपने लिये बनाना है, मुझे भी सिखाओ ना!  ( रचना बजाज की "अपनापन" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।)  यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंक से डाऊनलोड कर लें: अपनापन MP3 #15th Story, Apanapan: Rachana Bajaj/Hindi Audio Book/2012/15. Voice: Archana Chaoji

४ मई- आज का गाना

गाना:  अचरा में फुलवा लई के चित्रपट:  दुल्हन वही जो पिया मन भाये संगीतकार: रवीन्द्र जेन गीतकार: रवीन्द्र जेन स्वर:  रवीन्द्र जेन अचरा में फुलवा लई के आये रे हम तोहरे द्वार अरे हो हमरी अरजी न सुन ले अरजी पे कर ले ना बिचार हमसे रूठ ले बिधाता हमार काहे रूठ ले बिधाता हमार बड़े ही जतन से हम ने पूजा का थाल सजाया प्रीत की बाती जोड़ी मनवा का दियरा जलाया हमरे मन मोहन को पर नहीं भाया अरे हो रह गैइ पूजा अधूरी मन्दिर से दिया रे निकाल हमसे रूठ ले बिधाता हमार ... सोने की कलम से हमरी क़िसमत लिखी जो होती मोल लगा के लेते हम भी मन चाहा मोती एक प्रेम दीवानी हाय ऐसे तो न रोती अरे हो इतना दुःख तो न होता पानी में जो देते हमें डार हमसे रूठ ले बिधाता हमार ...

बिग ब्रेक सॉंग्स - पहला खण्ड

दोस्तों, गायन के क्षेत्र में हजारों प्रतिभाएँ मंच और मौके मिलने के बावजूद सिर्फ इसलिए अनसुनी अनगुनी रह जाती हैं क्योंकि उन्हें वो "बिग ब्रेक सोंग" नहीं मिल पाता जो उन्हें इंडस्ट्री में स्थापित कर दे. बिग ब्रेक सोंग्स यानी वो गीत, जिसके बाद किसी गायक को फिर अपनी क़ाबलियत साबित करने की आवश्यकता नहीं पड़े, बिग ब्रेक सोंग्स यानी वो गीत जो किसी गायक को घर घर का जाना माना नाम बना दें. बिग ब्रेक सोंग्स के इस पहले सेगमेंट हम चर्चा कर रहे हैं कुमार सानु, उदित नारायण, अलका याग्निक, कविता कृष्णमूर्ति, सोनू निगम, शान, अलीशा चिनॉय, शंकर महादेवन और हरिहरण के करियर में आये बिग ब्रेक सोंग्स की -

३ मई- आज का गाना

गाना:  नज़र लागे राजा तोरे बंगले पर चित्रपट:  काला पानी संगीतकार: सचिन देव बर्मन गीतकार: मजरूह सुलतान पुरी स्वर:  आशा भोसले नज़र लागे राजा तोरे बंगले पर जो मैं होती राजा बन की कोयलिया कुहुकु रहती राजा तोरे बंगले पर जो मैं होती राजा कारी बदरिया बरस रहती राजा तोरे बंगले पर जो मैं होती राजा बेला चमेलिआ लिपट रहती राजा तोरे बंगले पर जो मैं होती राजा तेरी दुल्हनिया मटक रहती राजा तोरे बंगले पर

"क़स्मे, वादे, प्यार, वफ़ा, सब बातें हैं..." - जितना यादगार यह गीत है, उतनी ही दिलचस्प है इसके बनने की कहानी

यह बिलकुल ज़रूरी नहीं कि एक अच्छा गीत लिखने के लिए गीतकार को किसी पहाड़ पर या समुंदर किनारे जा कर अकेले में बैठना पड़े। फ़िल्म-संगीत का इतिहास गवाह है कि बहुत से कालजयी गीत यूंही बातों बातों में बन गए हैं। एक ऐसी ही कालजयी रचना है "क़स्मे, वादे, प्यार, वफ़ा, सब बातें हैं बातों का क्या"। रोंगटे खड़े कर देने वाला है यह गीत कैसे बना था, आज उसी विषय पर चर्चा 'एक गीत सौ कहानियाँ' की 18-वीं कड़ी में सुजॉय चटर्जी के साथ... एक गीत सौ कहानियाँ # 18 1967 की मशहूर फ़िल्म 'उपकार' के गीतों की समीक्षा पंकज राग ने अपनी किताब 'धुनों की यात्रा' में कुछ इस तरह से की है - "'उपकार' का सबसे हिट गाना महेन्द्र कपूर की आवाज़ में सदाबहार देशभक्ति गीत "मेरे देश की धरती सोना उगले" बनकर गुलशन बावरा की कलम से निकला, पर गुलशन के इस गीत और "हर ख़ुशी हो वहाँ तू जहाँ भी रहे" तथा क़मर जलालाबादी के लिखे और विशेष तौर पर मुकेश के गले के लिए आसावरी थाट पर सृजित "दीवानों से ये मत पूछो दीवानों पे क्या गुज़री है" की अपार लोकप्रियता के ब