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आर्टिस्ट ऑफ द मंथ - संगीतकार ऋषि एस

ऋषि एस रेडियो प्लेबैक के सबसे पुराने और स्थायी संगीतकार हैं, जो इस पूरे महीने आपसे मुखातिब रहेंगें आर्टिस्ट ऑफ द मंथ बनकर. वर्ष २००७ से वो निरंतर संगीत निर्माण में सक्रिय हैं. अभी हाल ही में उन्होंने सोनोरे यूनिसन के नाम से खुद का एक संगीत लेबल भी बनाया है जिसके माध्यम से वो अपने गीतों को डिजिटल रूप में अंतरजाल पर रिलीस कर रहे हैं. तो मिलिए हैदराबाद के ऋषि एस से और जानिये क्या है उनकी संगीत ऊर्जा का राज़, Over to Rishi S....

१९ अप्रैल- आज का गाना

गाना:  दो दिल मिल रहे हैं मगर चुपके चुपके चित्रपट: परदेस संगीतकार: नदीम श्रवण गीतकार: आनंद बक्षी स्वर: कुमार सानू दो दिल मिल रहे हैं मगर चुपके चुपके सबको हो रही है, खबर चुपके चुपके साँसों में बड़ी बेक़रारी, आँखों में कई रत जगे कभी कहीं लग जये दिल तो, कहीं फिर दिल न लगे अपन दिल मैं ज़रा थम लूँ जादु का मैं इसे नाम दूँ जादु कर रहा है, असर चुपके चुपके दो दिल मिल रहे हैं ... ऐसे भोले बन कर हैं बैठे, जैसे कोई बात नहीं सब कुच नज़र आ रहा है, दिन है ये रात नहीं क्या है, कुछ भी नहीं है अगर होंठों पे है खामोशी मगर बातें कर रहीं हैं नज़र चुपके चुपके दो दिल मिल रहे हैं ... कहीं आग लगने से पहले, उठता है ऐसा धुआँ जैसा है इधर का नज़ारा, वैसा ही उधर का समाँ दिल में कैसी कसक सी जगी दोनों जानिब बराबर लगी देखो तो इधर से उधर चुपके चुपके दो दिल मिल रहे हैं ...

"छलिया मेरा नाम..." - इस गीत पर भी चली थी सेन्सर बोर्ड की कैंची

सेन्सर बोर्ड की कैंची की धार आज कम ज़रूर हो गई है पर एक ज़माना था जब केवल फ़िल्मी दृश्यों पर ही नहीं बल्कि फ़िल्मी गीतों पर भी कैंची चलती थी। किसी गीत के ज़रिये समाज को कोई ग़लत संदेश न चला जाए, इस तरफ़ पूरा ध्यान रखा जाता था। चोरी, छल-कपट जैसे अनैतिक कार्यों को बढ़ावा देने वाले बोलों पर प्रतिबंध लगता था। फ़िल्म 'छलिया' के शीर्षक गीत के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। गायक मुकेश के अनन्य भक्त पंकज मुकेश के सहयोग से आज 'एक गीत सौ कहानियाँ' की १६-वीं कड़ी में इसी गीत की चर्चा... एक गीत सौ कहानियाँ # 16 सम्प्रति "कैरेक्टर ढीला है", "भाग डी के बोस" और "बिट्टू सबकी लेगा" जैसे गीतों को सुन कर ऐसा लग रहा है जैसे सेन्सर बोर्ड ने अपनी आँखों के साथ-साथ अपने कानों पर भी ताला लगा लिया है। यह सच है कि समाज बदल चुका है, ५० साल पहले जिस बात को बुरा माना जाता था, आज वह ग्रहणयोग्य है, फिर भी सेन्सर बोर्ड के नरम रुख़ की वजह से आज न केवल हम अपने परिवार जनों के साथ बैठकर कोई फ़िल्म नहीं देख सकते, बल्कि अब तो आलम ऐसा है कि रेडियो पर फ़िल्मी गानें सुनने में भी शर्म महसू

१८ अप्रेल- आज का गाना

गाना:  तेरी बिंदिया रे आय हाय, तेरी बिंदिया रे चित्रपट: अभिमान संगीतकार: सचिन देव बर्मन गीतकार: मजरूह सुलतान पुरी स्वर: रफ़ी, लता रफ़ी: हूँ ..., ओ... तेरी बिंदिया रे रे आय हाय तेरी बिंदिया रे \- २ रे आय हाय लता: सजन बिंदिया ले लेगी तेरी निंदिया रफ़ी: रे आय हाय तेरी बिंदिया रे रफ़ी: तेरे माथे लगे हैं यूँ, जैसे चंदा तारा जिया में चमके कभी कभी तो, जैसे कोई अन्गारा तेरे माथे लगे हैं यूँ लता: सजन निंदिया... सजन निंदिया ले लेगी ले लेगी ले लेगी मेरी बिंदिया रफ़ी: रे आय हाय तेरा झुमका रे रे आय हाय तेरा झुमका रे लता: चैन लेने ना देगा सजन तुमका रे आय हाय मेरा झुमका रे लता: मेरा गहना बलम तू, तोसे सजके डोलूं भटकते हैं तेरे ही नैना, मैं तो कुछ ना बोलूं मेरा गहना बलम तू रफ़ी: तो फिर ये क्या बोले है बोले है बोले है तेरा कंगना लता: रे आय हाय मेरा कंगना रे बोले रे अब तो छूटे न तेरा अंगना रफ़ी: रे आय हाय तेरा कंगना रे रफ़ी: तू आयी है सजनिया, जब से मेरी बनके ठुमक ठुमक चले है जब तू, मेरी नस नस खनके तू आयी है सजनिया लता: सजन अब तो सजन अब तो छ

मोहब्बत में खुद को तलाशती वंदना लायी हैं अपनी पसंद के गीत, रश्मि जी की महफ़िल में

" एक प्रयास " और वंदना जी . ब्लॉग तो उनके और भी हैं, पर यह ब्लॉग उनके कृष्णमय जीवन का आईना है. तो आज के गीतों संग वंदना जी - अपने लफ़्ज़ों में - रश्मि जी, अपनी पसंद के गीत भेज रही हूँ.बहुत मुश्किल काम था मगर किसी तरह पूरा कर दिया है.......ये गीत मुझे इसलिए पसंद हैं क्यूँकि इनमे प्रेम हैं, कसक है, वेदना है, विरह है, मोहब्बत की पराकाष्ठा है जहाँ मोहब्बत लफ़्ज़ों से परे अहसास में जीवंत होती है जहाँ मोहब्बत को किसी नाम की जरूरत नहीं है तो दूसरी तरफ मोहब्बत करने वाला हो तो ऐसा कि सब कुछ भुलाकर चाहे सिर्फ रूह को चाहे जिस्म से परे होकर उसकी आँखों के आँसू भी खुद पी ले मगर उसे दो पल की मुस्कान दे दे. एक तरफ इंतज़ार हो तो ऐसा कि जहाँ मोहब्बत यकीन करती हो हाँ वो आज भी जहाँ होगा मेरे इंतज़ार में ही होगा और मोहब्बत में कशिश होगी या मोहब्बत इतनी बुलंद होगी कि वो जहाँ भी होगा वहीँ से खींचा चला आएगा ...इंतज़ार हो तो ऐसा जिसमे यकीन की चाशनी मिली हो और दूसरी तरफ समर्पण हो तो ऐसा कि खुद से ज्यादा खुशनसीब इन्सान किसी को ना समझे मोहब्बत समर्पण भी तो चाहती है ना...मोहब्बत के हर पहलू को छू

१७ अप्रेल- आज का गाना

गाना: रात भी है कुछ भीगी-भीगी चित्रपट: मुझे जीने दो संगीतकार: जयदेव गीतकार: साहिर स्वर: लता मंगेशकर रात भी है कुछ भीगी-भीगी चाँद भी है कुछ मद्धम-मद्धम तुम आओ तो आँखें खोलें सोई हुई पायल की छम छम किसको बताएं कैसे बताएं आज अजब है दिल का आलम चैन भी है कुछ हल्का हल्का दर्द भी है कुछ मद्धम मद्धम छम-छम, छम-छम, छम-छम, छम-छम तपते दिल पर यूं गिरती है तेरी नज़र से प्यार की शबनम जलते हुए जंगल पर जैसे बरखा बरसे रुक-रुक थम-थम छम-छम, छम-छम, छम-छम, छम-छम होश में थोड़ी बेहोशी है बेहोशी में होश है कम कम तुझको पाने की कोशिश में दोनों जहाँ से खो गए हम छम-छम, छम-छम, छम-छम, छम-छम रात ...

सिने-पहेली # 16 (जीतिये 5000 रुपये के इनाम)

सिने-पहेली # 16 (16 अप्रैल, 2012) 'सिने पहेली' की १६-वीं कड़ी में मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का फिर एक बार स्वागत करता हूँ। दोस्तों, 'सिने पहेली' के दूसरे सेगमेण्ट के बीचों बीच हम आ पहुँचे हैं। पिछले सेगमेण्ट ही की तरह इस सेगमेण्ट में भी प्रकाश गोविंद, पंकज मुकेश, क्षिति तिवारी, रीतेश खरे और अमित चावला ने नियमित रूप से हिस्सेदारी दिखाई है, और इस प्रतियोगिता को रोचक बनाए रखा है। समय-समय पर शरद तैलंग और इंदु जी के भी जवाब आए हैं पर नियमित रूप से नहीं। आप सब के अलावा जिन जिन दोस्तों ने अब तक इस प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया है, उन सभी से यह गुज़ारिश है कि इस अंक से ही इसमें भाग लेना शुरु करें क्योंकि अभी भी कुछ देर नहीं हुई है। महाविजेता की लड़ाई में अभी बहुत दूर तक जाना है, प्रश्नों के स्वरूप में कई महत्वपूर्ण फेर-बदल अभी होने हैं, आख़िर सवाल 5000 रुपये का जो है! हमारे नए पाठकों के लिए हम यह दोहरा दें कि 'सिने पहेली' के महाविजेता किस तरह से बन सकते हैं? हमने इस प्रतियोगिता को दस-दस कड़ियों के सेगमेण्ट्स में विभाजित किया है (वर्तमान में दूसरा सेगमेण्ट चल रहा