Skip to main content

Posts

सिने-पहेली # 11 (पहला सेगमेंट परिणाम विशेष)

जाँचिए अपना फिल्म-संगीत ज्ञान रे डियो प्लेबैक इण्डिया के सभी श्रोता-पाठकों का ‘ सिने-पहेली ’ के एक नए अंक में कृष्णमोहन मिश्र की ओर से हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन है। विश्वास है कि आपने रंगों का पर्व धूम-धाम से मनाया होगा। इससे पहले कि हम ' सिने-पहेली ' की 11 वीं कड़ी के प्रश्नों का सिलसिया आरम्भ करें , पहले आपकी उत्सुकता का समाधान करते हुए ‘ सिने-पहेली ’ की पहली दस कड़ियों की श्रृंखला (पहले सेगमेण्ट) के विजेता के नाम की घोषणा आवश्यक है। दोस्तों , हमारी पहली श्रृंखला के पहले विजेता हैं , लखनऊ के श्री प्रकाश गोविन्द , जिन्होने 39 अंक अर्जित कर प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। प्रकाश जी की भागीदारी पहेली की सभी दस कड़ियों में रही और आरम्भ से ही उन्होने अपनी बढ़त को कायम रखा। प्रतियोगिता के उपविजेता , बैगलुरु के श्री पंकज मुकेश रहे , जिन्होने 35 अंक अर्जित किए और प्रकाश जी को कड़ी टक्कर दी। 30 अंक पाकर इन्दौर की श्रीमती क्षिति तिवारी ने तीसरा और 29 अंक अर्जित कर मुम्बई के श्री रीतेश खरे ने प्रतियोगिता में चौथा स्थान प्राप्त किया। इनके अलावा श्री

१२ मार्च- आज का गाना

गाना: ये आँखें, उफ़ युम्मा! चित्रपट: जब प्यार किसी से होता है संगीतकार: शंकर - जयकिशन गीतकार: हसरत स्वर: रफ़ी, लता रफ़ी: ये आँखें, उफ़ युम्मा! ये सूरत, उफ़ युम्मा! प्यार क्यूँ ना होगा, ये अदायें, उफ़ युम्मा! लता: ये मौसम, उफ़ युम्मा! ये धड़कन, उफ़ युम्मा! कैसे दिल को रोकूँ, कोइ थामें, उफ़ युम्मा! रफ़ी: ये आँखें, उफ़ युम्मा! तुम दिल हो दिलरुबा हो, तुम पर जहाँ फ़िदा हो \- २ हम तो हैं क्या, कुछ भी नहीं तुम सा हसीन कोई नहीं, तुम तो चांद का टुकड़ा हो ये शोखी, उफ़ युम्मा! ये शरारत, उफ़ युम्मा! प्यार क्यूँ ना होगा, ये अदायें, उफ़ युम्मा! ये आँखें, उफ़ युम्मा! लता: कब तक रहूँ छुपाये, सीने में आग, हाय \- २ जलने लगा ये सारा बदन समझो ज़रा ये दिल की अगन तुम जो मिलो चैन आ जाये ये उमंगें, उफ़ युम्मा! ये तरंगें, उफ़ युम्मा! कैसे दिल को रोकूँ, कोई थामें, उफ़ युम्मा!

स्वरगोष्ठी – 61 विविध संगीत शैलियो में होली के इन्द्रधनुषी रंग

स्वरगोष्ठी – ६१ में आज ‘चोरी चोरी मारत हो कुमकुम.....’ भारतीय पर्वों में होली एक ऐसा पर्व है, जिसमें संगीत-नृत्य की प्रमुख भूमिका होती है। जनसामान्य अपने उल्लास को व्यक्त करने के लिए मुख्य रूप से देशज संगीत का सहारा लेता है। इस अवसर पर प्रस्तुत की जाने वाली रचनाओं में लोक-संगीत की प्रधानता के बावजूद सभी भारतीय संगीत शैलियों में होली की रचनाएँ प्रमुख रूप से उपलब्ध हैं। आज के अंक में हम आपके लिए कुछ संगीत शैलियों में रंगोत्सव के चुनिन्दा गीतों पर चर्चा करेंगे।     इ न्द्रधनुषी रंगों में भींगे तन-मन लिये ‘स्वरगोष्ठी’ के अपने समस्त पाठकों-श्रोताओं का, मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः अबीर-गुलाल के साथ स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। रंगोत्सव के उल्लासपूर्ण परिवेश में ‘स्वरगोष्ठी’ के पिछले अंक में हमने आपके लिए राग काफी में निबद्ध कुछ संगीत-रचनाओं को प्रस्तुत किया था। आज के अंक में हम यह सिलसिला जारी रखते हुए कुछ अन्य संगीत शैलियों की फाल्गुनी रचनाएँ लेकर उपस्थित हुए हैं। आज प्रस्तुत की जाने वाली होली रचनाएँ हमने राग काफी से इतर रागों में चुनी है। आज की इस सतरंगी गोष्ठी का आरम्भ हम एक

११ मार्च- आज का गाना

गाना: हाल\-ए\-दिल हमा चित्रपट: श्रीमान सत्यवादी संगीतकार: दत्ताराम गीतकार: हसरत जयपुरी स्वर: मुकेश हाल\-ए\-दिल हमारा, जाने न बेवफ़ा ये ज़माना ज़माना \- २ सुनो दुनिया वालों आएगा लौट के दिन सुहाना सुहाना हाले\-ए\-दिल हमारा एक दिन दुनिया बदलकर रास्ते पे आएगी आज ठुकराती है हमको कल मगर शर्माएगी बात को तुम मान लो अरे जान लो भैया हाल\-ए\-दिल हमारा ... दाग हैं दिल पर हज़ारों हम तो फिर भी शाद हैं आस के दीपक जलाये देख लो आबाद हैं तीर दुनिया के सहे पर खुश रहे भैया हाल\-ए\-दिल हमारा ... झूठ की मंज़िल पे यारों हम ना हर्गिज़ जायेंगे हम ज़मीं की खाक सही आसमां पर छाएंगे क्यूं भला दबकर रहें डरते नहीं भैया हाल\-ए\-दिल हमारा, जाने न बेवफ़ा ये ज़माना ज़माना सुनो दुनिया वालों आयेगा लौट के दिन सुहाना सुहाना हाल\-ए\-दिल हमारा

१० मार्च- आज का गाना

गाना: जीना यहाँ मरना यहाँ चित्रपट: मेरा नाम जोकर संगीतकार: शंकर - जयकिशन गीतकार: शैलन्द्र स्वर: मुकेश जीना यहाँ मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ जी चाहे जब हमको आवाज़ दो हम हैं वहीं हम थे जहाँ जीना यहाँ मरना यहाँ ... कल खेल में हम हों न हों गर्दिश में तारे रहेंगे सदा भूलोगे तुम, भूलेंगे वो पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा होंगे यहीं अपने निशाँ इसके सिवा जाना कहाँ जीना यहाँ मरना यहाँ ... ये मेरा गीत जीवन संगीत कल भी कोई दोहरायेगा जग को हँसाने बहरूपिया रूप बदल फिर आयेगा स्वर्ग यहीं नर्क यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ जीना यहाँ मरना यहाँ ...

बोलती कहानियाँ - असमर्थ दाता - नागार्जुन

'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने प्राख्यात ब्लॉगर अर्चना चावजी की आवाज़ में उन्हीं की मार्मिक कहानी " मुनिया का बचपन का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अमर साहित्यकार बाबा नागार्जुन द्वारा 1935 में लिखी हृदयस्पर्शी कहानी " असमर्थ दाता , जिसको स्वर दिया है अर्चना चावजी ने।  कहानी का कुल प्रसारण समय 11 मिनट 26 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। एक पूत भारतमाता का, कन्धे पर है झन्डा पुलिस पकड कर जेल ले गई, बाकी बच गया अंडा। ~  वैद्यनाथ मिश्र "नागार्जुन" (३० जून १९११ - ५ नवंबर १९९८) हर शुक्रवार को यहीं पर सुनें एक नयी कहानी एक नौ-दस साल की मैली-कुचैली लड़की मेरे कुर्ते का पिछला पल्ला पकड़कर गिड़गिड़ा रही थी, "बाबू

९ मार्च- आज का गाना

गाना: लो आ गयी उनकी याद् चित्रपट: दो बदन संगीतकार: रवी गीतकार: शकिल बदायुनी स्वर: लता मंगेशकर लो आ गयी उनकी याद्, वो नहीं आए दिल उनको ढूंढता है, गम का सिंगार कर के आंखे भी रक गयी है, अब इंतजार कर के एक आस रह गयी है, वो भी ना टूट जाए रोती हैं आज हम पर, तनहाईयां हमारी वो भी ना पाए शायद्, परछाईयां हमारी बढते ही जा रहे है, मायूसीयों के साये लौ थरथरा रही है, अब शम-ए-जिंद्गी की उजडी हुयी मोहब्बत, मेहमां हैं दो घडी के मर कर ही अब मिलेंगे, जी कर तो मिल ना