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सिमटी हुई ये घड़ियाँ फिर से न बिखर जाएँ - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के महफ़िल की शमा बुझाने आया हूँ मैं, आपका दोस्त, सुजॉय चटर्जी

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए जब मैं संगीतकार तुषार भाटिया का इंटरव्यू कर रहा था अनिल बिस्वास जी से संबंधित, तो तुषार जी नें मुझसे कहा कि उनके पास एक एल.पी है अनिल दा के गीतों का, जिसे अनिल दा नें उन्हें भेंट किया था, और जिसके कवर पर अनिल दा नें बांगला में उनके लिए कुछ लिखा था, पर वो उसे पढ़ नहीं पाये; तो क्या मैं उसमें उनकी कुछ मदद कर सकता हूँ? मैंने हाँ में जवाब दिया। उस एल.पी कवर पर लिखा हुआ था "तुषार के सस्नेह आशीर्बादाने अनिल दा" (तुषार को सनेह आशीर्वाद के साथ, अनिल दा)। इस अनुवाद को भेजते हुए मैंने तुषार जी को लिखा था "Wowwww, what a privilege you have given me Tushar ji to translate something Anil da has written for you!!! cant ask for more."

बोलती कहानियाँ - टार्च बेचने वाले - हरिशंकर परसाई

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में गिरिजेश राव की कहानी " राजू के नाम एक पत्र "  का पॉडकास्ट सुना था। रेडियो प्लेबैक इंडिया  की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई की कहानी " टार्च बेचने वाले  ", जिसको स्वर दिया है अमित तिवारी  ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 12 मिनट 04 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।

फिर मिलेंगे यार दसविदानिया.... मगर दोस्तों याद रहे कभी अलविदा न कहना

इस दुनिया का एक बहुत बड़ा सत्य यह है कि जो शुरु होता है, वह एक न एक दिन ख़त्म भी होता है। यह दुनिया भी शायद कभी ख़त्म हो जाए, क्या पता! अंग्रेज़ी में एक कहावत भी है कि "the only thing that is constant is change" (बदलाव ही एकमात्र ऐसी चीज़ है जो स्थायी है)। कैसा घोर विरोधाभास है इस कहावत में ध्यान दीजिए ज़रा। तो दोस्तों, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का सफ़र भी अब ख़्तम हुआ चाहता है। जी हाँ, पिछले करीब तीन सालों से लगातार, बिना किसी रुकावट के चलने के बाद हम यह सुरीला कारवाँ अपनी मंज़िल पर आ पहुँचा है।