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मौसिकी अर्श के आफताब : उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ

सुर संगम- 42 – उन्हे मैसूर दरबार से “आफताब-ए-मौसिकी” (संगीत के सूर्य) की उपाधि से नवाजा गया भारतीय संगीत के प्रचलित घरानों में जब भी आगरा घराने की चर्चा होगी तत्काल एक नाम जो हमारे सामने आता है, वह है- आफताब-ए-मौसिकी उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ। ‘सुर संगम’ के आज के अंक में हम इन्हीं महान गायक कलासाधक को श्रद्धा-सुमन अर्पित करेंगे। पिछली शताब्दी के पूर्वार्द्ध के जिन संगीतज्ञों की गणना हम शिखर-पुरुष के रूप में करते हैं उस्ताद फ़ैयाज़ खान उन्ही में से एक थे। ध्रुवपद-धमार, खयाल-तराना, ठुमरी-दादरा, सभी शैलियों की गायकी पर उन्हें कुशलता प्राप्त थी। प्रकृति ने उन्हें घन, मन्द्र और गम्भीर कण्ठ का उपहार तो दिया ही था, उनके शहद से मधुर स्वर श्रोताओं पर रस-वर्षा कर देते थे। फ़ैयाज़ खाँ का जन्म ‘आगरा रँगीले घराना’ के नाम से विख्यात ध्रुवपद गायकों के परिवार में हुआ था। दुर्भाग्य से फ़ैयाज़ खाँ के जन्म से लगभग तीन मास पूर्व ही उनके पिता सफदर हुसैन खाँ का इन्तकाल हो गया। जन्म से ही पितृ-विहीन बालक को उनके नाना ग़ुलाम अब्बास खाँ ने अपना दत्तक पुत्र बनाया और पालन-पोषण के साथ-साथ संगीत-शिक्षा की व्यवस्था भी की।

कुछ एल पी गीतों की क्वालिटी तो आजकल के डिजिटल रेकॉर्डिंग् से भी उत्तम थी -विजय अकेला

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 66 गीतकार विजय अकेला से बातचीत उन्हीं के द्वारा संकलित गीतकार जाँनिसार अख़्तर के गीतों की किताब 'निगाहों के साये' पर (भाग-२) भाग ०१ यहाँ पढ़ें 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! 'शनिवार विशेषांक' मे पिछले सप्ताह हम आपकी मुलाकात करवा रहे थे गीतकार विजय अकेला से जिनसे हम उनके द्वारा सम्पादित जाँनिसार अख़्तर साहब के गीतों के संकलन की किताब 'निगाहों के साये' पर चर्चा कर रहे थे। आइए आज बातचीत को आगे बढ़ाते हुए आनन्द लेते हैं इस शृंखला की दूसरी और अन्तिम कड़ी। सुजॉय - विजय जी, नमस्कार और एक बार फिर आपका स्वागत है 'आवाज़' के मंच पर। विजय अकेला - धन्यवाद! नमस्कार! सुजॉय - विजय जी, पिछले हफ़्ते आप से बातचीत करने के साथ साथ जाँनिसार साहब के लिखे आपकी पसन्द के तीन गीत भी हमनें सुने। क्यों न आज का यह अंक अख़्तर साहब के लिखे एक और बेमिसाल नग़मे से शुरु की जाये? विजय अकेला - जी ज़रूर! सुजॉय - तो फिर बताइए, आपकी पसन्द का ही कोई और गीत। विजय अकेला - फ़िल्म 'नूरी' का शीर्षक गीत स

गिरिजेश राव की कहानी "श्राप"

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने प्रेमचंद की संस्मरणात्मक कहानी " निर्वासन " का पॉडकास्ट अर्चना चावजी और अनुराग शर्मा की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं गिरिजेश राव की कहानी " श्राप ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी "श्राप" का कुल प्रसारण समय 8 मिनट 2 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट एक आलसी का चिठ्ठा पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। "पास बैठो कि मेरी बकबक में नायाब बातें होती हैं। तफसील पूछोगे तो कह दूँगा,मुझे कुछ नहीं पता " ~ गिरिजेश राव हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "आज की रात चाँद कौन सी कला में था? था भी या रोते भांजे को बहलाने किसी और लोक की वासी बहन के घर गया था?" ( गिरि

कहाँ तुम चले गए ...बस यही दोहराते रह गए जगजीत के दीवाने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 780/2011/220 ज गजीत सिंह को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'जहाँ तुम चले गए' की अंतिम कड़ी में आप सभी का स्वागत है। दोस्तों, जगजीत सिंह का पंजाबी भाषा और पंजाबी काव्य को लोकप्रिय बनाने और दूर दूर तक फैलाने में भी उल्लेखनीय योगदान रहा है। शिव कुमार बटालवी की कविताओं को जनसाधारण तक पहुँचाने में उनका ऐल्बम 'बिरहा दा सुल्तान' उल्लेखनीय है। "माय नी माय मैं इक शिकरा यार बनाइया", "रोग बन के रह गिया है पियार तेरे शहर दा", "यारियां राब करके मैनुं पाएं बिरहन दे पीड़े वे", "एह मेरा गीत किसी नी गाना" इसी ऐल्बम के कुछ लोकप्रिय गीत हैं। १० मई २००७ को संसद के युग्म अधिवेषन में ऐतिहासिक केन्द्रीय हॉल में जगजीत सिंह नें बहादुर शाह ज़फ़र की ग़ज़ल "लगता नहीं है दिल मेरा" गा कर भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (१८५७) के १५० वर्ष पूर्ति पर आयोजित कार्यक्रम को चार चाँद लगाया। राष्ट्रपति अब्दुल कलाम, प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह, उप-राष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत, लोक-सभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी, और कांग्रेस अध्

ये तेरा घर ये मेरा घर....आम आदमी की संकल्पनाओं को शब्द दिए जावेद अख्तर ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 779/2011/219 ज गजीत सिंह को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'जहाँ तुम चले गए' में एक बार फिर से मैं, सुजॉय चटर्जी, आपका स्वागत करता हूँ। कल की कड़ी में हमनें आपको जगजीत और चित्रा सिंह के कुछ ऐल्बमों के बारे में बताया। उनके बाद जगजीत जी के कई एकल ऐल्बम आये जिनमें शामिल थे Hope, In Search, Insight, Mirage, Visions, कहकशाँ, Love Is Blind, चिराग, और सजदा। मिर्ज़ा ग़ालिब, फ़िराक़ गोरखपुरी, कतील शिफ़ई, शाहीद कबीर, अमीर मीनाई, कफ़ील आज़ेर, सुदर्शन फ़ाकिर, निदा फ़ाज़ली, ज़का सिद्दीक़ी, नाज़िर बकरी, फ़ैज़ रतलामी और राजेश रेड्डी जैसे शायरों के ग़ज़लों को उन्होंने अपनी आवाज़ दी। जगजीत जी के शुरुआती ग़ज़लें जहाँ हल्के-फुल्के और ख़ुशमिज़ाजी हुआ करते थे, बाद के सालों में उन्होंने संजीदे ग़ज़लें ज़्यादा गाई, शायद अपनी ज़िन्दगी के अनुभवों का यह असर था। ऐसे ऐल्बमों में शामिल थे Face To Face, आईना, Cry For Cry. जगजीत जी के ज़्यादातर ऐल्बमों के नाम अंग्रेज़ी होते रहे, और कईयों में उर्दू शब्दों का प्रयोग हुआ जैसे कि 'सजदा', 'सहर', 'मुन्तज़िर', 'मारासिम' और &

बाबुल मोरा नैहर छूटो जाए...पारंपरिक बोलों पर जगजीत चित्रा के स्वरों की महक

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 778/2011/218 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों का स्वागत है इस स्तंभ में जारी शृंखला 'जहाँ तुम चले गए' की आठवीं कड़ी में। आपको याद दिला दें कि यह शृंखला समर्पित है ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह को जिनका हाल में निधन हो गया। ७० के दशक में ग़ज़ल गायकी पर जिन कलाकारों का दबदबा था वो थे नूरजहाँ, मल्लिका पुखराज, बेगम अख़्तर, तलत महमूद, और महदी हसन। इन महारथियों के होने के बावजूद जगजीत सिंह नें अपनी पहचान बना ही ली। १९७६ में उनका पहला एल.पी रेकॉर्ड बाज़ार में आया 'The Unforgetables' के शीर्षक से। इस ऐल्बम की ख़ास बात यह थी कि उन दिनों ग़ज़ल गायकी शास्त्रीय संगीत आधारित हुआ करता था, पर जगजीत सिंह नें हल्के-फुल्के अंदाज़ में ग़ज़लों को गाया और बहुत लोकप्रिय हुईं ये ग़ज़लें। ग़ज़ल के रेकॉर्डों की बिक्री के सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए उनकी गाई ग़ज़लों नें। १९६७ में जगजीत सिंह की मुलाक़ात चित्रा से हुई थी जो ख़ुद भी एक गायिका थीं। दो साल बाद दोनों नें शादी कर ली और उनकी यह जोड़ी पहली पति-पत्नी की जोड़ी थी जो गायक-गायिका के रूप में साथ में पर्फ़ॉर्म किया करते। ग़ज़ल जगत को समृद्ध करने

इश्क़ से गहरा कोई न दरिया....सुदर्शन फाकिर और जगजीत का मेल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 777/2011/217 'ज हाँ तुम चले गए' - इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है जगजीत सिंह को श्रद्धांजली स्वरूप यह लघु शृंखला। कल हमारी बात आकर रुकी थी जगजीत जी के नामकरण पर। आइए आज उनके संगीत की कुछ बातें बताई जाएं। बचपन से ही जगजीत का संगीत से नाता रहा है। श्रीगंगानगर में उन्होंने पण्डित शगनलाल शर्मा से दो साल संगीत सीखा, और उसके बाद छह साल शास्त्रीय संगीत के तीन विधा - ख़याल, ठुमरी और ध्रुपद की शिक्षा ग्रहण की। इसमें उनके गुरु थे उस्ताद जमाल ख़ाँ जो सैनिआ घराने से ताल्लुख़ रखते थे। ख़ाँ साहब महदी हसन के दूर के रिश्तेदार भी थे। पंजाब यूनिवर्सिटी और कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के वाइस चान्सलर स्व: प्रोफ़ सूरज भान नें जगजीत सिंह को संगीत की तरफ़ प्रोत्साहित किया। १९६१ में जगजीत बम्बई आए एक संगीतकार और गायक के रूप में क़िस्मत आज़माने। उस समय एक से एक बड़े संगीतकार और गायक फ़िल्म इंडस्ट्री पर राज कर रहे थे। ऐसे में किसी भी नए गायक को अपनी जगह बनाना आसान काम नहीं था। जगजीत सिंह को भी इन्तज़ार करना पड़ा। वो एक पेयिंग् गेस्ट बन कर रहा करते थे और शुरुआती दिनों में