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तीर्थयात्रा - पंडित सुदर्शन

सुनो कहानी: पंडित सुदर्शन की "तीर्थयात्रा" 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई का व्यंग्य "अपील का जादू" का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं हिंदी और उर्दू के अमर साहित्यकार पंडित सुदर्शन की प्रसिद्ध कहानी " तीर्थयात्रा ", जिसको स्वर दिया है अर्चना चावजी ने। यथार्थ से आदर्श का सन्देश देने वाले सुदर्शन जी की कहानियों का लक्ष्य समाज व राष्ट्र को सुन्दर व मजबूत बनाना है। कहानी "तीर्थयात्रा" का कुल प्रसारण समय 18 मिनट 47 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। “अब कोई दीन-दुखियों से मुँह न मोड़ेगा।” ~ सुदर्शन (मूल नाम: पंडित बद्रीनाथ भट्ट) (1895-1967) प्रेमचन्द, कौशिक और सुदर्शन, इन ती

अपने हाथों करें 'अनुगूँज' का विमोचन

साहित्यप्रेमियो, हिन्द-युग्म विगत 20 महीनों से प्रकाशन में सक्रिय है। हम अपने यहाँ से प्रकाशित पुस्तकों के ऑनलाइन विमोचन का अनूठा कार्यक्रम संयोजित करते हैं, जिससे हर पाठक लोकार्पण करने का सुख प्राप्त कर लेता है। आज हम हिन्द-युग्म प्रकाशन की नवीनतम पुस्तक 'अनुगूँज' का ऑनलाइन विमोचन कर रहे हैं। इस पुस्तक में 28 कवियों की प्रतिनिधि कविताएँ संकलित हैं। संग्रह के लिए कविताओं का संकलन और संपादन रश्मि प्रभा ने किया है। रश्मि प्रभा संग्रह पर टिप्पणी करते हुए कहती हैं- एक कदम के साथ मिलते क़दमों की गूँज अनुगूँज हिंदी साहित्य की साँसों को प्रकृति से जोड़ता है.... वैसे सच तो ये है कि हिंदी के बीज हम क्या लगायेंगे, हिंदी तो हमारा गौरव है- हिंदी साहित्य की जड़ें इतनी पुख्ता रही हैं कि इसे कितना भी काटो, पर इसके पनपने की क्षमता अक्षुण है .... हिन्दुस्तान की मिट्टी हमेशा उर्वरक रही है, बस बीज डालना है और उस पर उग आए अनचाहे विचारों को हटाना है- यही इन्कलाब अनुगूँज है और इसमें शामिल क़दमों को देखकर- साहित्य से जुड़े स्वर कह उठते हैं - 'नहीं है नाउम्मीद इकबाल अपनी किश्ते वीरां से ज़रा नम हो

अब कोई गुलशन न उजड़े....एक आशावादी गीत आज के इस बदलते भारत की उथल पुथल में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 730/2011/170 शृं खला ‘वतन के तराने’ की समापन कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ। दोस्तों, स्वतन्त्रता की 64वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में यह श्रृंखला हमने उन बलिदानियों को समर्पित किया है, जिन्होने देश को विदेशी सत्ता से मुक्त कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इनके बलिदानों के कारण ही 15अगस्त, 1947 को विदेशी शासकों को भारत छोड़ कर जाना पड़ा। आज़ादी के 64वर्षों में हम किसी विदेशी सत्ता के गुलाम तो नहीं रहे, किन्तु स्वयं द्वारा रची गई अनेक विसंगतियों के गुलाम अवश्य हो गए हैं। इस गुलामी से मुक्त होने के लिए हमे अपने पूर्वजों के त्याग और बलिदान का स्मरण करते हुए राष्ट्र-निर्माण के लिए नए संकल्प लेने पड़ेंगे। श्रृंखला की इस समापन कड़ी में हम एक ऐसे बलिदानी का परिचय आपके साथ बाँटना चाहेंगे जो महान पराक्रमी, अद्वितीय युद्धविशारद, कुशल वक्ता के साथ-साथ प्रबुद्ध शायर भी था। उस महान बलिदानी का नाम है रामप्रसाद ‘बिस्मिल’। प्रथम विश्वयुद्ध के समय देश को गुलामी से मुक्त कराने का एक प्रयास हुआ था, जिसे ‘मैनपुरी षड्यंत्र काण्ड’ के नाम से जाना गया थ