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जिंदगी हर कदम एक नयी जंग है....जबरदस्त सकारात्मक ऊर्जा है इस गीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 599/2010/299 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और फिर एक बार स्वागत है इस महफ़िल में जिसमें हम इन दिनों पियानो की बातें कर रहे हैं। आइए आज पियानो का वैज्ञानिक पक्ष आज़माया जाए। सीधे सरल शब्दों में जब भी किसी 'की' पर वार होता है, एक चेन रीऐक्शन होता है जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है। पहले 'की' 'विपेन' को उपर उठाता है, जो 'जैक' को 'हैमर रोलर' पर वार करवाता है। उसके बाद हैमर रोलर लीवर को उपर उठाता है। 'की' 'डैम्पर' को भी उपर की तरफ़ उठाता है, और जैसे ही 'हैमर' 'वायर' को स्ट्राइक करके ही वापस अपनी जगह चला जाता है और वायर में वाइब्रेशन होने लगती है, रेज़ोनेट होने लगता है। जब 'की' को छोड़ दिया जाता है, तो डैम्पर वापस स्ट्रिंग्स पर आ जाता है जिससे कि वायर का वाइब्रेशन बंद हो जाता है। वाइब्रेटिंग पियानो स्ट्रिंग्स से उत्पन्न ध्वनियाँ इतनी ज़ोरदार नहीं होती कि सुनाई दे, इसलिए इस वाइब्रेशन को एक बड़े साउण्ड-बोर्ड में पहुँचा दिया जाता है जो हवा को हिलाती है, और इस तरह से उर्जा ध्वनि त

जीवन के दिन छोटे सही, हम भी बड़े दिलवाले....किशोर दा समझा रहे हैं जीने का ढंग...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 598/2010/298 'पि यानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप इस लघु शृंखला का आनंद ले रहे हैं। विश्व के जाने माने पियानिस्ट्स में से दस पियानिस्ट्स के बारे में हम इस शृंखला में जानकारी दे रहे हैं। पाँच नाम शामिल हो चुके हैं, आइए आज की कड़ी में बाकी के पाँच नामों का ज़िक्र करें। शुरुआत कर रहे हैं महान संगीत-शिल्पी मोज़ार्ट से। वूल्फ़गैंग मोज़ार्ट भी एक आश्चर्य बालक थे, जिसे अंग्रेज़ी में हम child prodigy कहते हैं। केवल तीन वर्ष की उम्र में उनके हाथों की नाज़ुक उंगलियाँ पियानो के की-बोर्ड पर फिरती हुई देखी गई, और पाँच वर्ष के होते होते वो गानें कम्पोज़ करने लग गये, और पता है ये गानें किनके लिखे होते थे? उनके पिता के लिखे हुए। और बहुत ही छोटी उम्र से वो स्टेज-कॊण्सर्ट्स भी करने लगे, और आगे चलकर एक महान संगीतकार बन कर संगीताकाश में चमके। उन्हीं की सिम्फ़नी को आधार बना कर संगीतकार सलिल चौधरी ने फ़िल्म 'छाया' का वह गीत कम्पोज़ किया था, "इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा..."। ख़ैर, आगे बढ़ते हैं, और अब जो नाम मैं लेना चाहत

गीत गाता हूँ मैं, गुनगुनाता हूँ मैं....एक दर्द में डूबी शाम, किशोर दा की आवाज़ और पियानो का साथ

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 597/2010/297 'पि यानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' शृंखला की सातवीं कड़ी के साथ हम हाज़िर हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के महफ़िल की शमा जलाने को। कल की कड़ी में हमने दुनिया भर से पाँच बेहद नामचीन पियानिस्ट्स का ज़िक्र किया था और आप से यह वादा भी किया था कि आगे किसी अंक में और पाँच नामों को शामिल करेंगे। हम अपने वादे पे ज़रूर कायम हैं, लेकिन वह अंक आज का अंक नहीं है। आज के अंक में तो हम एक फ़िल्मी पियानिस्ट की बात करेंगे जिन्होंने संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन के लिए बेशुमार गीतों में पियानो बजाया है। हम जिस पियानिस्ट की बात कर रहे हैं, उनका नाम है रॊबर्ट कोर्रिया (Robert Correa)| दोस्तों, जैसे ही मुझे अपने किसी मित्र से यह पता चला कि रॊबर्ट कोर्रिया एस.जे. के लिए बजाते थे, तो मैं इस म्युज़िशियन के बारे में जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश में जुट गया। और इसी खोजबीन के दौरान मुझे रॊबर्ट कोरीया के बेटे युजीन कोर्रिया के बारे में पता चला किसी ब्लॊग में लिखे उनकी टिप्पणी के ज़रिए। दरअसल उस ब्लॊग में शंकर जयकिशन पर एक लेख पोस्ट हुआ था, और उसकी टिप्पणी में युजीन कोरीया ने