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शाम ढले, खिडकी तले तुम सीटी बजाना छोड़ दो....हिंदी फिल्म संगीत जगत के एक क्रान्तिकारी संगीतकार को समर्पित एक नयी शृंखला

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 561/2010/261 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और आप सभी को एक बार फिर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ! साल २०११ आपके जीवन में अपार सफलता, यश, सुख और शांति लेकर आये, यही हमारी ईश्वर से कामना है। और एक कामना यह भी है कि हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के माध्यम से फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के अनमोल मोतियों को इसी तरह आप सब की ख़िदमत में पेश करते रहें। तो आइए नये साल में नये जोश के साथ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के कारवाँ को आगे बढ़ाया जाये। दोस्तों, फ़िल्म संगीत के इतिहास में कुछ संगीतकार ऐसे हुए हैं जिनके संगीत ने उस समय की प्रचलित धारा को मोड़ कर रख दिया था, यानी दूसरे शब्दों में जिन्होंने फ़िल्म संगीत में क्रांति ला दी थी। जिन पाँच संगीतकारों को क्रांतिकारी संगीतकारों के रूप में चिन्हित किया गया है, उनके नाम हैं मास्टर ग़ुलाम हैदर, सी. रामचन्द्र, ओ. पी. नय्यर, राहुल देव बर्मन और ए. आर. रहमान। इनमें से एक क्रांतिकारी संगीतकार को समर्पित है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की आज से शुरु होने वाली लघु शृंखला। ये वो संगीतकार हैं, जो फ़िल्म जगत में आये तो थे नायक ब

सुर संगम में आज - गायन -उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ान, राग - गुनकली

सुर संगम - 01 अगर हर घर में एक बच्चे को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सिखाया गया होता तो इस देश का कभी भी बंटवारा नहीं होता सु प्रभात! दोस्तों, नये साल के इस पहले रविवार की इस सुहानी सुबह में मैं, सुजॊय चटर्जी, आप सभी का 'आवाज़' पर स्वागत करता हूँ। युं तो हमारी मुलाक़ात नियमित रूप से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर होती रहती है, लेकिन अब से मैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के अलावा भी हर रविवार की सुबह आपसे मुख़ातिब हो‍ऊँगा इस नये स्तंभ में जिसकी हम आज से शुरुआत कर रहे हैं। दोस्तों, प्राचीनतम संगीत की अगर हम बात करें तो वो है हमारा शास्त्रीय संगीत, जिसका उल्लेख हमें वेदों में मिलता है। चार वेदों में सामवेद में संगीत का व्यापक वर्णन मिलता है। सामवेद ऋगवेद से निकला है और उसके जो श्लोक हैं उन्हे सामगान के रूप में गाया जाता था। फिर उससे 'जाती' बनी और फिर आगे चलकर 'राग' बनें। ऐसी मान्यता है कि ये अलग अलग राग हमारे अलग अलग 'चक्र' (उर्जाबिंदू) को प्रभावित करते हैं। ये अलग अलग राग आधार बनें शास्त्रीय संगीत का और युगों युगों से इस देश के सुरसाधक इस परम्परा को निरंतर आगे बढ

ई मेल के बहाने यादों के खजाने (23), फिर एक बार साल की शुरूआत हो रही है मन्ना दा की स्वर साधना से

नमस्कार! पूरे 'आवाज़' और 'हिंद-युग्म' परिवार की तरफ़ से आप सभी को नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। २०११ का यह नया साल आप सब के जीवन में ढेरों ख़ुशियाँ व सफलताएँ लेकर आए, यह हमारी शुभेच्छा है आप सब के लिए। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' शनिवार की विशेष प्रस्तुति 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' में आप सभी का स्वागत है। इस साप्ताहिक स्तंभ के ज़रिए आप अपनी खट्टी मीठी यादों को पूरी दुनिया के साथ बाँट सकते हैं, या फिर कोई ख़ास गीत अगर आप सुनवाना चाहें, या 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए अपनी राय और सुझाव भेजना चाहें, उनकी भी व्यवस्था है इस साप्ताहिक पेशकश में। किसी दायरे में हमने इस विशेषांक को नहीं बांधा है, इसलिए आप अपने तरीके से कुछ भी इसमें भेज सकते हैं जो आपको लगे कि सब से साथ बांटा जा सकता है। आज हम हमारे जिन दोस्त का ईमेल शामिल कर रहे हैं, वो हैं कृष्णमोहन मिश्र, जिनके मनपसंद गायक हैं मन्ना डे। तो चलिए आज का यह अंक कृष्णमोहन जी और मन्ना दा के नाम करते हैं। ****************************** प्रिय सजीव सारथी एवं सुजॉय चटर्जी, आप दोनों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ; इसलि

आपने जिसे चुना उन गीतों को हमने सुना मशहूर फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज जी के साथ - वर्ष २०१० के टॉप गीत

दोस्तों पूरे साल "ताज़ा सुर ताल" के माध्यम से हम आपका परिचय नए फिल्म संगीत से करवाते रहे. आज साल का अंतिम दिन है. ये जानने के लिए कि इन नए गीतों में से कौन से हैं जिन्होंने हमारे श्रोताओं पर जादू चलाया, हमने आवाज़ पर एक पोल लगाया इस बार. जिसके परिणाम का खुलासा हम टी एस टी के इस वर्ष के इस सबसे अंतिम एपिसोड में आज करने जा रहे हैं. इस अवसर को खास बनाने के लिए आज हमारे बीच मौजूद हैं, हिंदी सिनेमा के जाने माने समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज जी, आईये उनसे करें कुछ बातचीत और हटाएँ इस वर्ष के आपके वोटों द्वारा चुने हुए श्रेष्ट गीतों के नामों से पर्दा. सजीव - अजय जी, हिंदी चिट्टाजगत के आप स्टार फ़िल्मी समीक्षक हैं, आज आवाज़ के इस मंच पर आपका स्वागत करते हुए हमें बेहद खुशी हो रही है. स्वागत है अजय ब्रह्मात्मज – मेरे लिए सौभाग्‍य की बात है कि इस बातचीत के जरिए मैं अधिकतम पाठकों तक पहुंच पाऊंगा। आपलोग बहुत अच्‍छा काम कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात है कि आप सभी नियमित और स्‍तरीय हैं। सजीव - आवाज़ पर हमने जो पोल लगाया था उसके परिणाम मेरे पास हैं, जिनका खुलासा हम अभी इसी बातचीत में करेंगें. पर इ

तू मेरा जानूँ है तू मेरा हीरो है.....८० के दशक का एक और सुमधुर युगल गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 560/2010/260 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! देखिए, गुज़रे ज़माने के सुमधुर गीतों को सुनते और गुनगुनाते हुए हम आ पहुँचे हैं इस साल २०१० के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की अंतिम कड़ी पर। आज ३० दिसंबर, यानी इस साल का आख़िरी 'ओल्ड इज़ गोल्ड'। जैसा कि इन दिनों आप इस स्तंभ में सुन और पढ़ रहे हैं फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की कुछ सदाबहार युगल गीतों से सजी लघु शृंखला 'एक मैं और एक तू', आज ८० के दशक के ही एक और लैण्डमार्क डुएट के साथ हम समापन कर रहे हैं इस शृंखला का। यह वह गीत है दोस्तों जिसने लता और आशा के बाद की पीढ़ी के पार्श्वगायिकाओं का द्वार खोल दिया था। इस नयी पीढ़ी से हमारा मतलब है अनुराधा पौड़वाल, अल्का याज्ञ्निक, साधना सरगम और कविता कृष्णमूर्ती। आज हम चुन लाये हैं अनुराधा और मनहर उधास की आवाज़ों में १९८३ की फ़िल्म 'हीरो' का गीत "तू मेरा जानू है... मेरी प्रेम कहानी का तू हीरो है"। युं तो इस गीत से पहले भी अनुराधा ने कुछ गीत गाये थे, लेकिन इस गीत ने उन्हें पहली बार अपार सफलता दी जिसके बाद उन्हें पीछे मुड़कर देखने की

हम बने तुम बनें एक दूजे के लिए....और एक दूजे के लिए ही तो हैं आवाज़ और उसके संगीत प्रेमी श्रोता

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 559/2010/259 फ़ि ल्म संगीत के सुनहरे दौर के चुने हुए युगल गीतों को सुनते हुए आज हम क़दम रख रहे हैं ८० के दशक में। कल के गीत से ही आप ने अंदाज़ा लगाया होगा कि ७० के दशक के मध्य भाग के आते आते युगल गीतों का मिज़ाज किस तरह से बदलने लगा था। उससे पहले फ़िल्म के नायक नायिका की उम्र थोड़ी ज़्यादा दिखाई जाती थी, लेकिन धीरे धीरे फ़िल्मी कहानियाँ स्कूल-कालेजों में भी समाने लगी और इस तरह से कॊलेज स्टुडेण्ट्स के चरित्रों के लिए गीत लिखना ज़रूरी हो गया। नतीजा, वज़नदार शायराना अंदाज़ को छोड़ कर फ़िल्मी गीतकार ज़्यादा से ज़्यादा हल्के फुल्के और आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करने लगे। कुछ लोगों ने इस पर फ़िल्मी गीतों के स्तर के गिरने का आरोप भी लगाया, लेकिन क्या किया जाए, जैसा समाज, जैसा दौर, फ़िल्म और फ़िल्म संगीत भी उसी मिज़ाज के बनेंगे। ख़ैर, आज हम बात करते हैं ८० के दशक की। इस दशक के शुरुआती दो तीन सालों तक तो अच्छे गानें बनते रहे और लता और आशा सक्रीय रहीं। ८० के इस शुरुआती दौर में जो सब से चर्चित प्रेम कहानी पर बनी फ़िल्म आई, वह थी 'एक दूजे के लिए'। यह फ़िल्म तो जैसे

एक मैं और एक तू, दोनों मिले इस तरह....ये था प्यार का नटखट अंदाज़ सत्तर के दशक का

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 558/2010/258 'ए क मैं और एक तू' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला की आठवीं कड़ी में आज एक और ७० के दशक का गीत पेश-ए-ख़िदमत है। दोस्तों, फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की गायक-गायिका जोड़ियों में जिन चार जोड़ियों का नाम लोकप्रियता के पयमाने पर सब से उपर आते हैं, वो हैं लता-किशोर, लता-रफ़ी, आशा-किशोर और आशा-रफ़ी। ७० के दशक में इन चार जोड़ियों ने एक से एक हिट डुएट हमें दिए हैं। कल के लता-रफ़ी के गाये गीत के बाद आज आइए आशा-किशोर की जोड़ी के नाम किया जाये यह अंक। और ऐसे में फ़िल्म 'खेल खेल में' के उस गीत से बेहतर गीत और कौन सा हो सकता है, जिसके मुखड़े के बोलों से ही इस शृंखला का नाम है! "एक मैं और एक तू, दोनों मिले इस तरह, और जो तन मन में हो रहा है, ये तो होना ही था"। नये अंदाज़ में बने इस गीत ने इस क़दर लोकप्रियता हासिल की कि जवाँ दिलों की धड़कन बन गया था यह गीत और आज भी बना हुआ है। उस समय ऋषी कपूर और नीतू सिंह की कामयाब जोड़ी बनी थी और एक के बाद एक कई फ़िल्में इस जोड़ी के बने। 'खेल खेल में' १९७५ में बनी थी जिसका निर्देशन किया