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देखी ज़माने की यारी, बिछड़े सभी बारी बारी.....शब्द कैफी के और और दर्द गुरु दत्त का

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 548/2010/248 गु रु दत्त के जीवन की कहानी इन दिनों आप पढ़ रहे हैं और उनकी कुछ महत्वपूर्ण फ़िल्मों के गानें भी सुन रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ' के चौथे खण्ड के अंतर्गत। कल हमने जाना कि गुरु दत्त साहब ने फ़िल्म 'प्यासा' की स्क्रिप्ट फ़िल्म के बनने से बहुत पहले, ४० के दशक में ही लिख ली थी। १० महीनों तक बेरोज़गार रहने के बाद गुरु दत्त को अमीय चक्रवर्ती की फ़िल्म 'गर्ल्स स्कूल' में बतौर सहायक निर्देशक काम करने का मौका मिला, और फिर १९५० में ज्ञान मुखर्जी के सहायक के रूप में फ़िल्म 'संग्राम' में। और आख़िरकार वह दिन आ ही गया जिसका उन्हें इंतज़ार था। १९५१ में उनके मित्र देव आनंद ने अपनी फ़िल्म 'बाज़ी' को निर्देशित करने के लिए गुरु दत्त को निमंत्रण दिया। फ़िल्म ने बेशुमार शोहरत हासिल की और गुरु दत्त का नाम रातों रात मशहूर हो गया। फ़िल्म 'बाज़ी' के ही मशहूर गीत "तदबीर से बिगड़ी हुई तक़दीर बना ले" की रेकॊर्डिंग् पर ही गुरु दत्त की मुलाक़ात गायिका गीता रॊय से हुई, और दोनों

मिर्च, ब्रेक के बाद, तेरा क्या होगा जॉनी, नो प्रोब्लम और इसी लाईफ़ में के गानों के साथ हाज़िर है इस साल की आखिरी समीक्षा

हम हरबार किसी एक या किन्ही दो फिल्मों के गानों की समीक्षा करते थे और इस कारण से कई सारी फिल्में हमसे छूटती चली गईं। अब चूँकि अगले मंगलवार से हम दो हफ़्तों के लिए अपने "ताजा सुर ताल" का रंग कुछ अलग-सा रखने वाले हैं, इसलिए आज हीं हमें बची हुई फिल्मों को निपटाना होगा। हमने निर्णय लिया है कि हम चार-फिल्मों के चुनिंदा एक या दो गाने आपको सुनवाएँगे और उस फिल्म के गाने मिला-जुलाकर कैसे बन पड़े हैं (और किन लोगों ने बनाया है), वह आपको बताएँगे। तो चलिए इस बदले हुए हुलिये में आज की समीक्षा की शुरूआत करते हैं। आज की पहली फिल्म है "ब्रेक के बाद"। इस फिल्म में संगीत दिया है विशाल-शेखर ने और बोल लिखे हैं प्रसून जोशी ने। बहुत दिनों के बाद प्रसून जोशी की वापसी हुई है हिन्दी फिल्मों में... और मैं यही कहूँगा कि अपने बोल से वे इस बार भी निराश नहीं करते। अलग तरह के शब्द लिखने में इनकी महारत है और कुछ गानों में इसकी झलक भी नज़र आती है, हाँ लेकिन वह कमाल जो उन्होंने "लंदन ड्रीम्स" में किया था, उसकी थोड़ी कमी दिखी। बस एक गाना "धूप के मकान-सा" में उनका सिक्का पूरी तरह से

जाने क्या तुने कही, जाने क्या मैंने कही....और बनी बात बिगड गयी गीता और गुरु दत्त की

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 547/2010/247 'हिं दी सिनेमा के लौह स्तंभ' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला के चौथे व अंतिम खण्ड में कल से हमने शुरु की है गुरु दत्त के जीवन सफ़र की कहानी। कल हम उनके जन्म और पारिवार के बारे में जाना। आइए अब बात आगे बढ़ाते हैं। गुरु दत्त की बहन ललिता ने अपने भाई को याद करते हुए कहा था कि १४ वर्ष की आयु में ही गुरु दत्त अपनी उंगलियों के सहारे दीवार पर दीये की रोशनी से छवियाँ बनाते थे। बचपन में उन्हें नृत्य करने का भी शौक था। सर्पनृत्य (स्नेक डांस) करके एक बार उन्हें ५ रुपय का पुरस्कार भी जीता था। आर्थिक अवस्था ठीक ना होने की वजह से गुरु दत्त ने कॊलेज की पढ़ाई नहीं की। लेकिन वो उदयशंकर के नृत्य मंडली से जुड़ गए। तब उनकी आयु १६ वर्ष थी। १९४१ से १९४४ तक नृत्य सीखने के बाद वो बम्बई आ गए और पुणे में 'प्रभात फ़िल्म कंपनी' में तीन साल के लिए अनुबंधित हो गए। और यहीं पर गुरु दत्त की मुलाक़ात हुई दो ऐसे प्रतिभाओं से जिनका उनके फ़िल्मों में बहुत बड़ा योगदान रहा है - देव आनंद और रहमान। १९४४ की फ़िल्म 'चाँद' में गुरु दत्त ने श्री कृष्ण का एक

कभी आर कभी पार लागा तीरे नज़र.....आज भी इस गीत की रिदम को सुनकर मन थिरकने नहीं लगता क्या आपका ?

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 546/2010/246 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक और नए सप्ताह में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों, पिछले तीन हफ़्तों से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सज रही है एक ऐसी महफ़िल जिसे रोशन कर रहे हैं हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ समान फ़िल्मकार। 'हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ' लघु शृंखला के पहले तीन खण्डों में वी. शांताराम, महबूब ख़ान और बिमल रॊय के फ़िल्मी सफ़र पर नज़र डालने के बाद आज से हम इस शृंखला का चौथा और अंतिम खण्ड शुरु कर रहे हैं। और इस खण्ड के लिए हमने जिस फ़िल्मकार को चुना है, वो एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार हैं। फ़िल्म निर्माण और निर्देशन के लिए तो वो मशहूर हैं ही, अभिनय के क्षेत्र में भी उन्होंने लोहा मनवाया है और साथ ही एक अच्छे नृत्य निर्देशक भी रहे हैं। इस बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न फ़िल्मकार को दुनिया जानती है गुरु दत्त के नाम से। आज से अगले चार अंकों में हम गुरु दत्त को और उनके फ़िल्मी सफ़र को थोड़ा नज़दीक से जानने और समझने की कोशिश करेंगे और साथ ही उनके द्वारा निर्मित और/या निर्देशित फ़िल्मों के कुछ बेहद लोकप्रिय व सदाबहार गानें भी सुनें

ई मेल के बहाने यादों के खजाने (२०) - जब के सुजॉय से सवालों का जवाब दिया महान लता जी ने

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है इस साप्ताहिक विशेषांक में। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का यह साताफिक स्तंभ पूरा कर रहा है अपना बीसवाँ हफ़्ता। इसी ख़ुशी में आज कुछ बेहद बेहद ख़ास पेश हो रहा है आपकी ख़िदमत में। दोस्तों, आपको मैं बता नहीं सकता कि आज का यह अंक प्रस्तुत करते हुए मैं किस रोमांच से गुज़र रहा हूँ। वो एक आवाज़, जो पिछले ६० सालों से दुनिया की फ़िज़ाओं में अमृत घोल रही है, जिसे इस सदी की आवाज़ होने का गौरव प्राप्त है, जिस आवाज़ में स्वयं माँ सरस्वती निवास करती है, जो आवाज़ इस देश की सुरीली धड़कन है, उस कोकिल-कंठी, स्वर साम्राज्ञी, भारत रत्न, लता मंगेशकर से बातचीत करना किस स्तर के सौभाग्य की बात है, उसका अंदाज़ा आप भली भाँति लगा सकते हैं। जी हाँ, मेरी यह परम ख़ुशनसीबी है कि ट्विटर के माध्यम से मुझे भी लता जी से चंद सवालात करने के मौके नसीब हुए, और उससे भी बड़ी बात यह कि लता जी ने किस सरलता से मेरे उन चंद सवालों के जवाब भी दिए। जितनी मेरी ख़ुशकिस्मती है, उससे कई गुना ज़्यादा बड़प्पन है लता जी का कि इतनी महान कलाकार होते हुए भी वो अपने चाहने वालो

गिरिजेश राव की कहानी गेट

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने मृणाल पाण्डेय की संस्मरणात्मक कहानी " लड़कियाँ" " का पॉडकास्ट प्रीति सागर की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं गिरिजेश राव की कहानी " गेट ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी "गेट" का कुल प्रसारण समय 5 मिनट 2 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट एक आलसी का चिठ्ठा पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। "पास बैठो कि मेरी बकबक में नायाब बातें होती हैं। तफसील पूछोगे तो कह दूँगा,मुझे कुछ नहीं पता " ~ गिरिजेश राव हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "...उसे अपने पर फिर गर्व हो आया था।" ( गिरिजेश राव की कहानी ' गेट ' से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर प

मत रो माता लाल तेरे बहुतेरे...कौन लिख सकता है ऐसा गीत कवि शैलेन्द्र के अलावा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 545/2010/245 हिं दी सिनेमा के लौह स्तंभों में एक स्तंभ बिमल रॊय पर केन्द्रित लघु शृंखला की पाँचवी और अंतिम कड़ी लेकर हम हाज़िर हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में। ६० के दशक की शुरुआत भी बिमल दा ने ज़रबरदस्त तरीक़े से की १९६० में बनी फ़िल्म 'परख' के ज़रिए। एक बार फिर सलिल चौधरी के संगीत ने रसवर्षा की। इस फ़िल्म का सब से लोकप्रिय गीत " ओ सजना बरखा बहार आई " हम सुनवा चुके हैं। इस फ़िल्म की विशेषता यह है कि इसके गीतकार और संगीतकार ने गीत लेखन और संगीत निर्देशन के अलावा भी एक एक और महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। जी हाँ, गीतकार शैलेन्द्र ने इस फ़िल्म में गानें लिखने के साथ साथ संवाद भी लिखे, तथा सलिल चौधरी ने संगीत देने के साथ साथ फ़िल्म की कहानी भी लिखी। बिमल दा ने ५० और ६० के दशकों में बारी बारी से सलिल दा और बर्मन दादा के धुनों का सहारा लिया। बिमल दा पर आधारित इस शृंखला का पहला गीत हमने सलिल दा का सुनवाया था, दूसरा गीत अरुण कुमार के संगीत में, और बाक़ी के तीन गीत सचिन दा के संगीत में। 'परख' के बाद १९६२ में आई फ़िल्म 'प्रेमपत्र'।