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नफ़रत की एक ही ठोकर ने यह क्या से क्या कर डाला...बालकवि बैरागी का रचा, जयदेव का स्वरबद्ध ये अमर गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 524/2010/224 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस महफ़िल में। इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' महक रहा है हिंदी साहित्यकारों की फ़िल्मी रचनाओं से। लघु शृंखला 'दिल की कलम से' की चौथी कड़ी में आज बातें बालकवि बैरागी की। कविता पाठ के रसिक बैरागी जी को अपने ओजपूर्ण स्वरों मे मंच पर कविता पाठ करते सुना होगा। उनके साहित्य में भारतीय ग्राम्य संस्कृति की सोंधी सोंधी महक मिलती है। और यही महक फ़िल्म 'रेशमा और शेरा' के लिए उनके लिखे इस गीत में मिलती है - " तू चंदा मैं चांदनी, तू तरुवर मैं शाख रे "। इसी फ़िल्म में उद्धव कुमार का लिखा " एक मीठी सी चुभन " गीत भी उल्लेखनीय है। दोस्तों, ये दोनों ही गानें हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर बजा चुके हैं क्रम से २२८ और ३१३ वीं कड़ियों में। तो फिर कौन सा गाना आपको सुनवाएँ? 'रेशमा और शेरा' में ही बालकवि बैरागी जी ने एक और गीत लिखा था, जिसे मन्ना डे ने गाया था। इस गीत को बहुत कम सुना गया। याद है आपको इस गीत के बोल? यह गीत है "नफ़रत की एक ही ठोक

दूर पपीहा बोला रात आधी रह गई...सुर्रैया की आवाज़ और कवि गीतकार गोपाल सिंह नेपाली के शब्द

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 523/2010/223 पं डित नरेन्द्र शर्मा और वीरेन्द्र मिश्र के बाद 'दिल की कलम से' शृंखला की तीसरी कड़ी में आज जिस हिंदी साहित्यकार व कवि की चर्चा हम करने जा रहे हैं वो प्रकृति के चितेरे तो थे ही, देश भक्ति का जज्बा भी उनमें कूट कूट कर समाया हुआ था। जी हाँ, हम आज बात कर रहे हैं गोपाल सिंह नेपाली की, जिन्हें हम गीतकार जी. एस. नेपाली के नाम से भी जानते हैं। उनका जन्म बिहार के चम्पारन ज़िले में बेदिया नामक स्थान पर ११ अगस्त १९११ को हुआ था। बालावस्था से ही वे घण्टों एकान्त में बैठकर प्रकृति की सुषमा का आनंद लेते और बाद में इसी प्रकृति से जुड़े कविताएँ लिखने लगे। १९३१ में कलकत्ता में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में शामिल होने को वे प्रेरीत हुए, जहाँ पे जाकर साहित्य के कई महान विभुतियों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। १९३२ में काशी में आचार्य महावीर प्रसाद द्वारा आयोजित एक बहुत बड़े कवि सम्मेलन में कुल ११५ कवि शामिल हुए जिनमें से केवल १५ कवियों को कविता पाठ करने का मौका मिला। और इनमें से एक गोपाल सिंह नेपाली भी थे। उस सम्मेलन में उनकी लिखी कविताओं के रंग ख़ूब जम

"दस तोला" सोना लेकर आये गुलज़ार, सन्देश के साथ तो प्रीतम ने धमाल किया "गोलमाल" के साथ

ताज़ा सुर ताल ४३/२०१० सुजॊय - 'ताज़ा सुर ताल' के सभी चाहनेवालों को हमारा नमस्कार! सजीव जी, विश्व दीपक जी तो दीपावली की छुट्टियों में घर गए हुए हैं, और आशा है उन्होंने यह त्योहार बहुत अच्छी तरह से मनाया होगा। सजीव - सभी को मेरा भी नमस्कार, दीवाली अच्छी रही। और बॊलीवूड की यह रवायत रही है कि दीवाली में कोई ना कोई बड़ी बजट की फ़िल्म रिलीज़ होती आई है। इस परम्परा को बरकरार रखते हुए इस बार दीवाली की शान बनी है दो फ़िल्में - 'ऐक्शन रिप्ले' और 'गोलमाल-३'। सुजॊय - 'ऐक्शन रिप्ले' के गानें हमने पिछले हफ़्ते सुने थे, आज बारी 'गोलमाल-३' की। और साथ ही हम 'दस तोला' फ़िल्म के गीत भी सुनेंगे। शुरु करते हैं 'गोलमाल-३-' से। रोहित शेट्टी निर्देशित इस मल्टि-स्टारर फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं मिथुन चक्रवर्ती, अजय देवगन, करीना कपूर, अरशद वारसी, तुषार कपूर, श्रेयास तलपडे, कुणाल खेमू, रत्ना पाठक, जॊनी लीवर, संजय मिश्रा, व्रजेश हिरजी, अशिनी कल्सेकर, मुरली शर्मा और मुकेश तिवारी। फ़िल्म में गीत संगीत का ज़िम्मा उठाया है कुमार और प्रीतम ने। इस ऐल्बम के पह

जूडे में गजरा मत बाँधो मेरा गीत महक जायेगा....जब पंडित वीरेंद्र मिश्रा की सुन्दर कल्पना को सुर मिले

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 522/2010/222 'दि ल की कलम से', 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में कल से हमने शुरु की है यह लघु शृंखला जिसके अन्तर्गत हम कुछ ऐसी फ़िल्मी रचनाएँ सुनवा रहे हैं जिनके रचनाकार हैं हिंदी साहित्य और काव्य जगत के कुछ नामचीन साहित्यकार व कवि। ये वो प्रतिभाएँ हैं जिन्होंने हिंदी साहित्य और काव्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर उन्हें समृद्ध किया है, और जब फ़िल्मी गीत लेखन की बात आई तो यहाँ भी, कम ही सही, लेकिन कुछ ऐसे स्तरीय और अर्थपूर्ण गीत लिखे कि फ़िल्म संगीत जगत धन्य हो गया। पंडित नरेन्द्र शर्मा के बाद आज हम जिस साहित्यकार की बात कर रहे हैं वो हैं वीरेन्द्र मिश्र। कवि वीरेन्द्र मिश्र और पंडित नरेन्द्र शर्मा को जो एक बात आपस में जोड़े रखती है, वह यह कि ये दोनों ही भारत के सब से लोकप्रिय रेडियो चैनल विविध भारती से जुड़े रहे। अगर शर्मा जी विविध भारती के जन्मदाता थे तो मिश्र जी भी इसके एक मानक प्रस्तुतकर्ता, यानी कि 'प्रोड्युसर एमेरिटस' रहे हैं। वीरेन्द्र मिश्र का जन्म मध्यप्रदेश के मोरैना में हुआ था। साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें देव पुरस्कार और निराला

तुम्हे बांधने के लिए मेरे पास और क्या है मेरा प्रेम है....पंडित नरेद्र शर्मा की साहित्यिक उपलब्धियों से कुछ कम नहीं उनका फ़िल्मी योगदान भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 521/2010/221 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस नये सप्ताह में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। हिंदी साहित्य की अगर हम बात करें तो हमारे देश ने एक से एक महान साहित्यकारों को जन्म दिया है। ये वो साहित्यकार हैं जिनकी कलम ने समूचे जगत को बेशकीमती साहित्य प्रदान किया हैं। इन साहित्यकारों में से कई साहित्यकार ऐसे हैं जिन्होंने ना केवल अपने कलम से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है, बल्कि अपने कलम के जादू से हिंदी फ़िल्म संगीत जगत को कुछ ऐसे नायाब गीत भी दिए हैं कि जिन्हें पा कर यह फ़िल्मी जगत धन्य हो गया है। ऐसे स्तरीय प्रतिभावान साहित्यकारों के लिखे गीतों ने फ़िल्म संगीत को कम ही सही, लेकिन एक बहुत ऊँचे स्तर तक पहुँचाया है। आज से हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर शुरु कर रहे हैं कुछ ऐसे ही हिंदी भाषा के साहित्यकारों के फ़िल्मों के लिए लिखे हुए गीतों से सजी हमारी नई लघु शृंखला 'दिल की कलम से'। इस शृंखला में हम ना केवल इन साहित्यकारों के लिखे गीत आपको सुनवाएँगे, बल्कि इन महान प्रतिभाओं के जीवन से जुड़ी कुछ बातें भी बताएँगे जिन्हें फ़िल्मी गीतकार के रूप में पाना

ई मेल के बहाने यादों के खजाने - जब एक और भारी गडबडी वाले गीत की तरफ़ ध्यान आकर्षित कराया शरद जी ने

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, स्वागत है इस साप्ताहिक विशेषांक 'ईमेल के बहाने, यादों के ख़ज़ाने' में। पिछले दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर हमनें लघु शृंखला 'गीत गड़बड़ी वाले' पेश की थी। इसी संदर्भ में शरद तैलंग जी ने हमें एक ईमेल भेजा। तो आइए आज शरद जी के उसी ईमेल को यहाँ प्रस्तुत करते हैं.... ******************************************* सुजॊय जी, पिछले दिनों मैनें जयपुर के संस्कृत के विद्वान देवर्षि कलानाथ शास्त्री जी का एक लेख पढा था, जिसमें उन्होंने लिखा था कि सहगल साहब का प्रसिद्ध गीत "बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए" में मूल पंक्ति थी "चार कहार मिल मोरी डोलिया उठावै", लेकिन उन्होंने गा दिया "डोलिया सजावै", जबकि डोली सजाने का काम दुल्हन की सखियां करती हैं, कहार तो उठाते हैं। इसी तरह आगे की पंक्तियों में भी मूल गीत है "देहरी तो पर्वत हुई और अंगना भया बिदेस", जब कि उन्होंने गाया "अंगना तो परबत भया और देहरी भयी बिदेस", क्यों कि देहरी तो पर्बत समान हो सकती है जिसे लांघना मुश्किल हो जाएगा और पीहर का आंगन इतना

सुनो कहानी - एक कवि पत्नी का संलाप: सत्ता संवाद

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में विष्णु प्रभाकर की कहानी "पानी की जाति" का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध लेखिका सुधा अरोड़ा की कहानी " एक कवि पत्नी का संलाप: सत्ता संवाद ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 10 मिनट 24 सेकंड। सुधा अरोड़ा की कथा अन्नपूर्णा मंडल की आखिरी चिट्ठी को आप पहले ही प्रीति सागर की आवाज़ में सुन चुके हैं। उन्हीं की लिखित "रहोगी तुम वही" को आपने सुना था रंगमंच, दूरदर्शन और सार्थक सिनेमा के प्रसिद्ध कलाकार राजेन्द्र गुप्ता की आवाज़ में। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। आत्माएं कभी नहीं मरतीं। इस विराट व्योम में, शून्य में, वे तैरती रहती हैं - परम शान्त होकर। ~ सुधा