तुम गगन के चन्द्रमा हो.....प्रेम और समर्पण की अद्भुत शब्दावली को स्वरबद्ध किया एल पी ने उसी पवित्रता के साथ
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 503/2010/203 'ए क प्यार का नग़मा है' - फ़िल्म संगीत जगत की सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के स्वरबद्ध गीतों से सजी इस लघु शृंखला की तीसरी कड़ी में हम आप सब का स्वागत करते हैं। आनंद बक्शी और राजेन्द्र कृष्ण के बाद आज जिस गीतकार के शब्दों को एल.पी अपने धुनों से सजाने वाले हैं, उस महान गीतकार का नाम है भरत व्यास, जो एक गीतकार ही नहीं एक बेहतरीन हिंदी के कवि भी हैं और उनका काव्य फ़िल्मी गीतों में भी साफ़ दिखाई देता है। व्यास जी ने शुद्ध हिंदी का बहुत अच्छा इस्तेमाल फ़िल्मी गीतों में भी किया और इस तरह से बहुत सारे स्तरीय गीत फ़िल्म जगत को दिए। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ जब उनकी बात चलती है तो एक दम से हमारे दिमाग़ में जिस फ़िल्म का नाम आता है, वह है 'सती सावित्री'। इस फ़िल्म के गानें तो भरत व्यास जी के गीतों की कड़ियों में बहुत बाद में दर्ज हुआ; सन् १९४९ में वे मिले संगीतकार खेमचंद प्रकाश से और इन दोनों ने लुभाना शुरु कर दिया अपने श्रोताओं को। 'ज़िद्दी', 'सावन आया रे', 'तमाशा' आदि फ़िल्मों में इन दोनों ने साथ