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कुछ शर्माते हुए और कुछ सहम सहम....सुनिए लता की आवाज़ में ये मासूमियत से भरी अभिव्यक्ति

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 483/2010/183 'ल ता के दुर्लभ दस' शृंखला की तीसरी कड़ी में आप सभी का स्वागत है। १९४८ की दो फ़िल्मों - 'हीर रांझा' और 'मेरी कहानी' - के गानें सुनने के बाद आइए अब हम क़दम रखते हैं १९४९ के साल में। १९४९ का साल भी क्या साल था साहब! 'अंदाज़', 'बड़ी बहन', 'बरसात', 'बाज़ार', 'एक थी लड़की', 'दुलारी', 'लाहोर', 'महल', 'पतंगा', और 'सिपहिया' जैसी फ़िल्मों में गीत गा कर लता मंगेशकर यकायक फ़िल्म संगीत के आकाश का एक चमकता हुआ सितारा बन गईं। इन नामचीन फ़िल्मों की चमक धमक के पीछे कुछ ऐसी फ़िल्में भी बनीं इस साल जिसमें भी लता जी ने गीत गाए, लेकिन अफ़सोस कि उन फ़िल्मों के गानें ज़्यादा लोकप्रिय नहीं हुए और वो आज भूले बिसरे और दुर्लभ गीतों में शुमार होता है। ऐसी ही एक फ़िल्म थी 'गर्ल्स स्कूल'। लोकमान्य प्रिडक्शन्स के बैनर तले बनी इस फ़िल्म के निर्देशक थे अमीय चक्रबर्ती। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे सोहन, गीता बाली, शशिकला, मंगला, सज्जन, राम सिंह और वशिष्ठ प्रमुख। फ़िल्म का सं

ज़िंदगी का फलसफा समझा कर माधोलाल कीप वाकिंग की जोरदार एवं असरदार अपील की है नायब राजा ने

ताज़ा सुर ताल ३५/२०१० सुजॊय - सभी दोस्तों को हमारा नमस्कार! दोस्तों, आज हम एक ऐसी फ़िल्म के गीतों की चर्चा करने जा रहे हैं जो पैरलेल सिनेमा की श्रेणी में आता है। कुछ फ़िल्में ऐसी होती हैं जो व्यावसायिक लाभों से परे होती हैं, जिनका उद्देश्य होता है क्रीएटिव सैटिस्फ़ैक्शन। ये फ़िल्में भले ही सिनेमाघरों में ज़्यादा देखने को ना मिले, लेकिन अच्छे फ़िल्मों के दर्शक इन्हें अपने दिलों में जगह देते हैं और एक लम्बे समय तक इन्हें याद रखते हैं। विश्व दीपक - लेकिन यह अफ़सोस की भी बात है कि आज फ़िल्मों का हिट होना उसकी मारकेटिंग पर बहुत ज़्यादा निर्भर हो गया है। पैसे वाले प्रोड्युसर हर टीवी चैनल पर अपनी नई फ़िल्म का प्रोमो बार बार लगातार दिखा दिखा कर लोगों के दिमाग़ पर उसे बिठा देते हैं और एक समय के बाद लोगों को भी लगने लगता है कि वह हिट है। गीतों को भी इसी तरह से आजकल हिट करार दिया जाता है। लेकिन जिन प्रोड्युसरों के पास पैसे कम है, वो इस तरह के प्रोमोशन नहीं कर पाते, जिस वजह से उनकी फ़िल्म सही तरीक़े से लोगों तक नहीं पहुँच पाती। जब लोगों को मालूम ही नहीं चल पाता कि ऐसी भी कोई फ़िल्म बनी है, तो उन

नन्ही नन्ही बुंदिया जिया लहराए बादल घिर आए...बरसात के मौसम में आनंद लीजिए लता के इस बेहद दुर्लभ गीत का भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 482/2010/182 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर कल से हमने शुरु की है इस सदी की आवाज़ लता मंगेशकर के गाए कुछ बेहद दुर्लभ और भूले बिसरे गीतों से सजी लघु शृंखला 'लता के दुर्लभ दस'। कल की कड़ी में आपने १९४८ की फ़िल्म 'हीर रांझा' का एक पारम्परिक विदाई गीत सुना था, आइए आज १९४८ की ही एक और फ़िल्म का गीत सुना जाए। यह फ़िल्म है 'मेरी कहानी'। इस फ़िल्म का निर्माण किया था एस. टी. पी प्रोडक्शन्स के बैनर ने, फ़िल्म के निर्देशक थे केकी मिस्त्री। सुरेन्द्र, मुनव्वर सुल्ताना, प्रतिमा देवी, मुराद और लीला कुमारी अभिनीत इस फ़िल्म के संगीतकार थे दत्ता कोरेगाँवकर, जिन्हें हम के. दत्ता के नाम से भी जानते हैं। फ़िल्म में दो गीतकारों ने गीत लिखे - नक्शब जराचवी, यानी कि जे. नक्शब, और अंजुम पीलीभीती। इस फ़िल्म के मुख्य गायक गायिका के रूप में सुरेन्द्र और गीता रॊय को ही लिया गया था। लेकिन उपलब्ध जानकारी के अनुसार लता मंगेशकर से इस फ़िल्म में दो गीत गवाए गए थे, जिनमें से एक तो आज का प्रस्तुत गीत है "नन्ही नन्ही बुंदिया जिया लहराए बादल घिर आए", और दूसरे गीत के ब

काहे को ब्याही बिदेस रे सुन बाबुल मोरे...क्या लता की आवाज़ में सुना है कभी आपने ये गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 481/2010/181 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! लता मंगेशकर एक ऐसा नाम है जो किसी तारीफ़ की मोहताज नहीं। ये वो नाम है जो हम सब की ज़िंदगियों में कुछ इस तरह से घुलमिल गया है कि इसे हम अपने जीवन से अलग नहीं कर सकते। और अगर अलग कर भी दें तो जीवन बड़ा ही नीरस हो जाएगा, कड़वाहट घुल जाएगी। लता जी की आवाज़ इस सदी की आवाज़ है और इस बात में ज़रा सी भी अतिशयोक्ति नहीं। फ़िल्म संगीत के लिए वरदान है उनकी आवाज़ क्योंकि उन जैसी आवाज़ हज़ारों सालों में एक ही बार जन्म लेती है। लता जी के गाए हुए लोकप्रिय गानों की फ़ेहरिस्त बनाने बैठें तो शायद जनवरी से दिसंबर का महीना आ जाएग। युं तो उनके असंख्य लोकप्रिय और हिट गीत हम रोज़ाना सुनते ही रहते हैं, लेकिन उनके गाए बहुत से ऐसे गानें भी हैं जो बेहद दुर्लभ हैं, जो कहीं से भी आज सुनाई नहीं देते, और शायद वक़्त ने भी उन अनमोल गीतों को भुला दिया है। लेकिन जो लता जी के सच्चे भक्त हैं, वो अपनी मेहनत से, अपनी लगन से, और लता जी के प्रति अपने प्यार की वजह से इन भूले बिसरे दुर्लभ गीतों को खोज निकालते रहते हैं। ऐसे ही एक लता भक्त हैं नाग

ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें - गणेश चतुर्थी से जुडी एक श्रोता की यादें और एक यादगार गीत

'ओल्ड इज़ गोल्ड' शनिवार विशेष की सातवीं कड़ी में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है, और आप सभी को एक बार फिर से ईद-उल-फ़ित्र की हार्दिक मुबारक़बाद। दोस्तों, कल गणेश चतुर्थी का पावन दिन है, जो महाराष्ट्र और मुंबई में दस दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव का पहला दिन भी होता है। बड़े ही धूम धाम से यह त्योहार पश्चिम भारत में मनाया जाता है। मुझे भी दो बार पुणे में इस त्योहार को देखने और मनाने का अवसर मिला था जब मेरी पोस्टिंग् वहाँ पर थी। इस बार के 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें 'के लिए हमने जिस ईमेल को चुना है उसे लिखा है पुणे के श्री योगेश पाटिल ने। आपको याद होगा कि योगेश जी के अनुरोध पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के 'पसंद अपनी अपनी' शृंखला में हमने "तस्वीर-ए-मोहब्बत थी जिसमें" गीत सुनवाया था। ये वोही योगेश पाटिल हैं जिन्होंने गणेश उत्सव से जुड़ी अपने बचपन का एक संस्मरण हमें लिख भेजा है। उनका ईमेल अंग्रेज़ी में आया है, जिसका हिंदी अनुवाद कुछ इस तरह का बनता है.... ******************************************************************************* नमस्ते! मैं योगेश पाटिल

सुनो कहानी: रामचन्द्र भावे की छिपकली आदमी

रामचन्द्र भावे की कन्नड कहानी "छिपकली आदमी" 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में भारतेंदु हरिश्चंद्र की कहानी ' सच्चा घोड़ा ' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं रामचन्द्र भावे की कन्नड कहानी " छिपकली आदमी ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी का हिन्दी अनुवाद डी.एन.श्रीनाथ ने किया है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 13 मिनट 57 सेकंड। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। कन्नड साहित्यकार रामचन्द्र भावे की सभी कहानियाँ अंत में सोचने पर विवश करती हैं। हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी तुंगक्का को उस बच्चे के जन्म लेने पर सन्तोष नहीं हुआ, क्योंकि वह पति के वंश को बढ़ाने योग्य नहीं था। ( रामचन्द्र भावे की "छिपकली आदम

गीली आँखों के धुंधले मंजर में भी दिखी उम्मीद की लहर - बॉलीवुड अंदाज़ के जख्मों को हॉलीवुड अंदाज़ का मरहम

Season 3 of new Music, Song # 19 आज आवाज़ महोत्सव में पहली बार एक ऐसा गीत पेश होने जा रहा है, जिसमें रैप गायन है, जो दो पुरुष गायकों की आवाजों में है और जिसमें दो भाषाओं में शब्द लिखे गए हैं. "प्रभु जी" गीत की आपार सफलता के बाद श्रीनिवास पंडा फिर लौटे हैं इस सत्र में और जैसा हर बार होता है वो अपने श्रोताओं के लिए कुछ नया लेकर ही आये हैं. गीत दृभाषीय है, तो यहाँ हिंदी के शब्द सजीव सारथी ने लिखे है अंग्रेजी शब्द रचे हैं खुद रैपर आसिफ ने जो खुद को "रेग्गड स्कल" कहते हैं. श्रीराम की आवाज़ आप इससे पहले सूफी गीत "हुस्न-ए-इलाही" में सुन चुके है, आज के गीत में उनका अंदाज़ एकदम अलग है. ये एक एक्सपेरिमेंटल गीत है जिसमें संगीत के दो अलग अलग आयामों का मिश्रण करने की कोशिश की गयी है, हम उम्मीद करेंगें कि हमारे श्रोताओं को ये प्रयोग अच्छा लगेगा. गीत के बोल - सांसे चुभे सीने में जैसे खंजर, गीली हैं ऑंखें धुंधला है सारा मंजर, (2) मेरे पैरों हैं जमीं न सर पे आसमाँ है, जब से वो खफा हुआ, कोई पूछे क्या गिला है, जाने क्या वज़ा है, जो वो बेवफा हुआ…… You should know nothin’ ev