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एक था गुल और एक थी बुलबुल...एक मधुर प्रेम कहानी आनंद बक्षी की जुबानी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 381/2010/81 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी सुननेवालों व पाठकों का हम फिर एक बार इस महफ़िल में हार्दिक स्वागत करते हैं। दोस्तों, इन दिनों आप जम कर आनंद ले रहे होंगे IPL Cricket matches के सीज़न का। अपने अपने शहर के टीम को सपोर्ट भी कर रहे होंगे। क्रिकेट खिलाड़ियो की बात करें तो उनमें से कुछ बल्लेबाज़ हैं, कुछ गेंदबाज़, और कुछ हैं ऐसे जिन्हे हम 'ऒल राउंडर' कहते हैं। यानी कि जो क्रिकेट के मैदान पर दोनों विधाओं में पारंगत है, गेंदबाज़ी मे भी और बल्लेबाज़ी में भी। कुछ इसी तरह से फ़िल्म संगीत के मैदान में भी कई खिलाड़ी ऐसे हुए हैं, जो अपने अपने क्षेत्र के 'ऒल-राउंडर' रहे हैं। ये वो खिलाड़ी हैं जो ज़रूरत के मुताबिक़, बदलते वक़्त के मुताबिक़, तथा व्यावसायिक्ता के साथ साथ अपने स्तर को गिराए बिना एक लम्बी पारी खेली हैं। ऐसे 'ऒलराउंडर' खिलाड़ियों में एक नाम आता है गीतकार आनंद बक्शी का। जी हाँ, आनंद बक्शी साहब, जिन्होने फ़िल्मी गीत लेखन में एक नई क्रांति ही ला दी थी। बक्शी साहब को फ़िल्मी गीतों का 'ऒल-राउंडर' कहना किसी भी तरह की अतिशयोक्ति

तू गन्दी अच्छी लगती है....दिबाकर, स्नेह खनवलकर और कैलाश खेर का त्रिकोणीय समीकरण

ताज़ा सुर ताल १२/२०१० सजीव - 'ताज़ा सुर ताल' में आज हम एक ऐसी फ़िल्म के संगीत की चर्चा करने जा रहे हैं, जिसके शीर्षक को सुन कर शायद आप लोगों के दिल में इस फ़िल्म के बारे में ग़लत धारणा पैदा हो जाए। अगर फ़िल्म के शीर्षक से आप यह समझ बैठे कि यह एक सी-ग्रेड अश्लील फ़िल्म है, तो आपकी धारणा ग़लत होगी। जिस फ़िल्म की हम आज बात कर रहे हैं, वह है 'लव, सेक्स और धोखा', जिसे 'एल.एस.डी' भी कहा जा रहा है। सुजॊय - सजीव, मुझे याद है जब मैं स्कूल में पढ़ता था, उस वक़्त भी एक फ़िल्म आई थी 'एल.एस.डी', जिसका पूरा नाम था 'लव, सेक्स ऐण्ड ड्रग्स', लेकिन वह एक सी-ग्रेड फ़िल्म ही थी। लेकिन क्योंकि 'लव, सेक्स ऐण्ड धोखा' उस निर्देशक की फ़िल्म है जिन्होने 'खोसला का घोंसला' और 'ओए लकी लकी ओए' जैसी अवार्ड विनिंग् फ़िल्में बनाई हैं, तो ज़ाहिर सी बात है कि हमें इस फ़िल्म से बहुत कुछ उम्मीदें लगानी ही चाहिए। सजीव - सच कहा, दिबाकर बनर्जी हैं इस फ़िल्म के निर्देशक। क्योंकि मुख्य धारा से हट कर यह एक ऒफ़बीट फ़िल्म है, तो फ़िल्म के कलाकार भी ऒफ़बीट हैं, जैसे

इतनी शक्ति हमें देना दाता....एक प्रार्थना जो हर दिल को सकून देती है

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 380/2010/80 '१० गीत समानांतर सिनेमा के' शृंखला में ये सुमधुर गानें इन दिनों आप सुन रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर। आज इस शृंखला की अंतिम कड़ी में प्रस्तुत है एक प्रार्थना गीत। १९८६ में एक फ़िल्म आई थी 'अंकुष' और इस फ़िल्म के लिए एक ऐसा प्रार्थना गीत रचा गया कि जिसे सुन कर लगता है कि किसी स्कूल का ऐंथेम है। "इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना, हम चले नेक रस्ते पे हमसे भूल कर भी कोई भूल हो ना"। फ़िल्म 'गुड्डी' में "हम को मन की शक्ति देना" गीत की तरह इस गीत ने भी अपना अमिट छाप छोड़ा है। फ़िल्म तो थी ही असाधारण, लेकिन आज इसफ़िल्म के ज़िक्र से सब से पहले इस गीत की ही याद आती है। सुष्मा श्रेष्ठ और पुष्पा पगधरे की आवाज़ों में यह गीत है जिसे लिखा है अभिलाश ने और स्वरबद्ध किया है कुलदीप सिंह ने। जी हाँ, कल और आज मिलाकर हमने लगातार दो गीत सुनवाए कुलदीप सिंह के संगीत में। कल के गीत की तरह आज का यह गीत भी कुलदीप सिंह के गिने चुने फ़िल्मी गीतों में एक बेहद ख़ास मुकाम रखता है। 'अंकुष' का निर्माण एन.