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दुनिया ये दुनिया तूफ़ान मेल....दौड़ती भागती जिंदगी को तूफ़ान मेल से जोड़ती कानन देवी की आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 343/2010/43 'प्यो र गोल्ड' की तीसरी कड़ी मे आप सभी का स्वागत है। दोस्तों, १९४२ का साल सिर्फ़ भारत का ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के इतिहास का एक बेहद महत्वपूर्ण पन्ना रहा है। एक तरफ़ द्वितीय विश्व युद्ध पूरे शबाब पर थी, और दूसरी तरफ़ भारत का स्वाधीनता संग्राम पूरी तरह से ज़ोर पकड़ चुका था। 'अंग्रेज़ों भारत छोड़ो' के नारे गली गली में गूंज रहे थे। उस तरफ़ पर्ल हार्बर कांड को भी इसी साल अंजाम दिया गया था। इधर फ़िल्म इंडस्ट्री में ब्रिटिश सरकार ने फ़िल्मों की लंबाई पर ११,००० फ़ीट का मापदंड निर्धारित कर दिया ताकि 'वार प्रोपागंडा' फ़िल्मों के लिए फ़िल्मों की कोई कमी न हो। दूसरी तरफ़ फ़िल्म सेंसर बोर्ड ने सख़्ती दिखाते हुए फ़िल्मों में 'गांधी', 'नेहरु', 'आज़ादी' जैसे शब्दों का इस्तेमाल बंद करवा दिया। 'प्योर गोल्ड' में आज बारी है सन्‍ १९४२ के एक सुपरहिट गीत की। दोस्तों, पहली कड़ी में हमने आपको बताया था कि १९४० की फ़िल्म 'ज़िंदगी' निर्देशक प्रमथेश बरुआ की न्यु थिएटर्स में अंतिम फ़िल्म थी। उस ज़माने में कलाकार

एक कली नाजों की पली..आन्दोलनकारी संगीतकार मास्टर गुलाम हैदर की एक उत्कृष्ट रचना

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 342/2010/42 'प्यो र गोल्ड' की दूसरी कड़ी में आज बातें १९४१ की। इस साल की कुछ प्रमुख फ़िल्मी बातों से अवगत करवाएँ आपको? मुकेश ने इस साल क़दम रखा बतौर अभिनेता व गायक फ़िल्म 'निर्दोष' में, जिसमें अभिनय के साथ साथ संगीतकार अशोक घोष के निर्देशन में उन्होने अपना पहला गीत गाया। गायक तलत महमूद ने कमल दासगुप्ता के संगीत निर्देशन में फ़य्याज़ हाशमी का लिखा अपना पहला ग़ैर फ़िल्मी गीत गाया "सब दिन एक समान नहीं था"। सहगल साहब भी दूसरे कई कलाकारों की तरह कलकत्ता छोड़ बम्बई आ गए और रणजीत मूवीटोन से जुड़ गए। इससे न्यु थिएटर्स को एक ज़बरदस्त झटका लगा। वैसे इस साल न्यु थिएटर्स ने पंकज मल्लिक के संगीत और अभिनय से सजी फ़िल्म 'डॉक्टर' रिलीज़ की जो सुपरहिट रही। इस साल अंग्रेज़ फ़ौज ने नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को उनके घर में नज़रबन्द कर रखा था। लेकिन सब की आँखों में धूल झोंक कर पेशावर के रास्ते वो अफ़ग़ानिस्तान चले गए। मिनर्वा मूवीटोन के सोहराब मोदी ने द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर फ़िल्म बनाई 'सिकंदर', जिसमें सिकन्दर और पोरस की भूमिकाएँ न

मैं क्या जानूँ क्या जादू है- सहगल साहब की आवाज़ का जादू

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 341/2010/41 दो स्तों, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' ने देखते ही देखते लगभग एक साल का सफ़र पूरा कर लिया है। पिछले साल २० फ़रवरी की शाम से शुरु हुई थी यह शृंखला। गुज़रे ज़माने के सदाबहार नग़मों को सुनते हुए हम साथ साथ जो सुरीला सफ़र तय किया है, उसको हमने समय समय पर १० गीतों की विशेष लघु शृंखलाओं में बाँटा है, ताकि फ़िल्म संगीत के अलग अलग पहलुओं और कलाकारों को और भी ज़्यादा नज़दीक से और विस्तार से जानने और सुनने का मौका मिल सके। आज १० फ़रवरी है और आज से जो लघु शृंखला शुरु होगी वह जाकर समाप्त होगी १९ फ़रवरी को, यानी कि उस दिन जिस दिन 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पूरा करेगा अपना पहला साल। इसलिए यह लघु शृंखला बेहद ख़ास बन पड़ी है, और इसे और भी ज़्यादा ख़ास बनाने के लिए हम इसमें लेकर आए हैं ४० के दशक के १० सदाबहार सुपर डुपर हिट गीत, जो ४० के दशक के १० अलग अलग सालों में बने हैं। यानी कि १९४० से लेकर १९४९ तक, दस गीत दस अलग अलग सालों के। हम यह दावा तो नहीं करते कि ये गीत उन सालों के सर्वोत्तम गीत रहे, लेकिन इतना आपको विश्वास ज़रूर दिला सकते हैं कि इन गीतों को आप ज़रूर पसंद करेंगे