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गुनगुनाते लम्हें में सरस्वती प्रसाद की कहानी

गुनगुनाते लम्हे- 5 जैसा कि आप जानते हैं आज महीने का तीसरा मंगलवार है। तीसरा मंगलवार मतलब गुनगुनाते लम्हे का दिन। तो चलिए आज के दिन को गीतों भरी कहानी से रुमानी बनाते हैं। अपराजिता की दिकलश आवाज़ में गुनते हैं सरस्वती प्रसाद की कहानी। 'गुनगुनाते लम्हे' टीम आवाज़/एंकरिंग कहानी तकनीक अपराजिता कल्याणी सरस्वती प्रसाद खुश्बू आप भी चाहें तो भेज सकते हैं कहानी लिखकर गीतों के साथ, जिसे दूंगी मैं अपनी आवाज़! जिस कहानी पर मिलेगी शाबाशी (टिप्पणी) सबसे ज्यादा उनको मिलेगा पुरस्कार हर माह के अंत में 500 / नगद राशि। हाँ यदि आप चाहें खुद अपनी आवाज़ में कहानी सुनाना तो आपका स्वागत है.... 1) कहानी मौलिक हो। 2) कहानी के साथ अपना फोटो भी ईमेल करें। 3) कहानी के शब्द और गीत जोड़कर समय 35-40 मिनट से अधिक न हो, गीतों की संख्या 7 से अधिक न हो।। 4) आप गीतों की सूची और साथ में उनका mp3 भी भेजें। 5) ऊपर्युक्त सामग्री podcast.hindyugm@gmail.com पर ईमेल करें।

सो जा राजकुमारी सो जा...हिंदी फिल्म संगीत के पहले सुपर सिंगर को नमन

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 318/2010/18 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों हम अपको सुनवा रहे हैं लघु शृंखला 'स्वरांजली', जिसके अन्तर्गत हम याद कर रहे हैं फ़िल्म संगीत के उन लाजवाब कलाकारों को जो या तो हमसे बिछड़े थे जनवरी के महीने में, या फिर वो मना रहे हैं अपना जन्मदिन इस महीने। यशुदास और जावेद अख़तर को हम जनमदिन की शुभकामनाएँ दे चुके हैं, और श्रद्धांजली अर्पित की है सी. रामचन्द्र, जयदेव, चित्रगुप्त, कैफ़ी आज़मी, और ओ. पी. नय्यर को। आज १८ जनवरी जिस महान कलाकार का स्मृति दिवस है, उनके बारे में यही कह सकते हैं कि वो हिंदी सिनेमा के पहले सिंगिंग् सुपरस्टार हैं, जिन्होने फ़िल्म संगीत को एक दिशा दिखाई। जब फ़िल्म संगीत का जन्म हुआ था, उस समय प्रचलित नाट्य और शास्त्रीय संगीत ही सीधे सीधे फ़िल्मी गीतों के रूप में प्रस्तुत कर दिए जाते थे। लेकिन इस अज़ीम गायक अभिनेता फ़िल्मों में लेकर आए सुगम संगीत और जिनकी उंगली थाम फ़िल्म संगीत ने चलना सीखा, आगे बढ़ना सीखा, अपना एक अलग पहचान बनाया। आप हैं फ़िल्म जगत के पहले सिंगिंग् सुपरस्टार कुंदन लाल सहगल। सहगल साहब ने फ़िल्म संगीत में जो योगदान दिय

"इश्किया" विशाल और गुलज़ार ने दिया नया संगीतमय तोहफा

ताज़ा सुर ताल ०३/ २०१० सुजॊय - सजीव, यह इस साल के पहले महीने जनवरी का तीसरा 'ताज़ा सुर ताल' है। हमने अब तक इस महीने 'दुल्हा मिल गया', और वीर फ़िल्मों के संगीत की चर्चा की है। इनमें से 'दुल्हा मिल गया' रिलीज़ हो चुकी है, लेकिन फ़िल्म अब तक रफ़्तार नहीं पकड़ पाई है शाहरुख़ ख़ान के होने के बावजूद। सजीव - और सुजॊय, इसी महीने 'प्यार इम्पॊसिबल' और 'चांस पे डांस' भी प्रदर्शित हो चुकी है, लेकिन बहुत ज़्यादा उम्मीदें इनमें भी नज़र नहीं आ रही। बता सकते हो क्या कारण हो सकता है? सुजॊय - मुझे तो यही लगता है कि 'अवतार' और '३ इडियट्स' का नशा अभी तक लोगों के ज़हन से उतरा नहीं है। क्या होता है न कि हब कोई फ़िल्म बहुत ज़्यादा हिट हो जाती है, तो उसके ठीक बाद रिलीज़ होने वाली फ़िल्में कुछ हद तक उसकी चपेट में आ ही जाते हैं। अच्छा सजीव, इससे पहले कि हम आज के फ़िल्म की बातें शुरु करें, क्यों न आप जल्दी जल्दी 'प्यार इम्पॊसिबल' और 'चांस पे डांस' के म्युज़िक के बारे में हमारे पाठकों को एक हल्का सा आभास करा दें! सजीव - ज़रूर! देखो सुजॊय,

ये कहाँ आ गए हम...यूँ हीं जावेद साहब के लिखे गीतों को सुनते सुनते

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 317/2010/17 स्व रांजली' की आज की कड़ी में हम जन्मदिन की मुबारक़बाद दे रहे हैं गीतकार, शायर और पटकथा व संवाद लेखक जावेद अख्तर साहब को। लेकिन अजीब बात यह कि जिन दिनों में जावेद साहब पटकथा और संवाद लिखा करते थे, उन दिनों मे वो गानें नहीं लिखते थे, और जब उन्होने बतौर गीतकर अपना सिक्का जमाया, तो पटकथा लिखना लगभग बंद सा कर दिया। जब यही सवाल उनसे पूछा गया तो उनका जवाब था - " यह सही है कि जब मैं फ़िल्में लिखता था, उस वक़्त मैं गानें नहीं लिखता था। लेकिन हाल ही में मैंने अपने बेटे फ़रहान के लिए फ़िल्म 'लक्ष्य' का स्क्रिप्ट लिखा है, एक और भी लिखा है, सोच रहा हूँ कि किसे दूँ (हँसते हुए)! कुछ फ़िल्में हैं जिनमें मैंने स्क्रिप्ट और गानें, दोनों लिखे हैं, जैसे कि 'सागर', जैसे कि 'मिस्टर इंडिया', जैसे कि 'अर्जुन'। मुझे स्क्रिप्ट लिखते हुए थकान सी महसूस हो रही थी, कुछ ख़ास अच्छा नहीं लग रहा था। और अब गानें लिखने में ज़्यादा मज़ा आ रहा है, और दिल से लिख रहा हूँ। इसलिए सोचा कि जब तक फ़िल्मे लिखने का जज़्बा फिर से ना जागे, तब तक गीत ही लिख

चैन से हमको कभी आपने जीने न दिया...यही शिकायत रही ओ पी को ताउम्र

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 316/2010/16 आ ज १६ जनवरी, संगीतकार ओ. पी. नय्यर साहब का जन्मदिवस है। जन्मदिन की मुबारक़बाद स्वीकार करने के लिए वो हमारे बीच आज मौजूद तो नहीं हैं, लेकिन हम उन्हे अपनी श्रद्धांजली ज़रूर अर्पित कर सकते हैं उन्ही के बनाए एक दिल को छू लेने वाले गीत के ज़रिए। नय्यर साहब के बहुत सारे गानें अब तक हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में सुनवाया है। आज हम जो गीत सुनेंगे वो उस दौर का है जब नय्यर साहब के गानों की लोकप्रियता कम होती जा रही थी। ७० के दशक के आते आते नए दौर के संगीतकारों, जैसे कि राहुल देव बर्मन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल आदि, ने धूम मचा दी थी। ऐसे में पिछले पीढ़ी के संगीतकार थोड़े पीछे ही रह गए। उनमें नय्यर साहब भी शामिल थे। लेकिन १९७२ की फ़िल्म 'प्राण जाए पर वचन न जाए' में उन्होने कुछ ऐसा संगीत दिया कि इस फ़िल्म के गानें ना केवल सुपरहिट हुए, बल्कि जो लोग कहने लगे थे कि नय्यर साहब के संगीत में अब वो बात नहीं रही, उनके ज़ुबान पर ताला लगा दिया। आशा भोसले की आवाज़ में इस फ़िल्म का "चैन से हमको कभी आप ने जीने ना दिया, ज़हर जो चाहा अगर पीना तो पीने ना दिया"

सुनो कहानी: एक अशुद्ध बेवकूफ - हरिशंकर परसाई

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने पंडित माधवराव सप्रे लिखित व्यंग्य रचना " एक टोकरी भर मिट्टी " का पॉडकास्ट अनुराग शर्मा की आवाज़ में सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं हरिशंकर परसाई लिखित व्यंग्य " एक अशुद्ध बेवकूफ ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। "एक अशुद्ध बेवकूफ" का कुल प्रसारण समय मात्र 7 मिनट 57 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मेरी जन्म-तारीख 22 अगस्त 1924 छपती है। यह भूल है। तारीख ठीक है। सन् गलत है। सही सन् 1922 है। । ~ हरिशंकर परसाई (1922-1995) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी वे बोले, "मैं आपसे कुछ लेने आया हूं।" मैंने समझा ये शायद ज्ञान लेने आये हैं। ( हरिशंकर परसाई के व्यंग्य "एक अश

और कुछ देर ठहर, और कुछ देर न जा...कहते रह गए चाहने वाले मगर कैफी साहब नहीं रुके

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 315/2010/15 ह मारे देश में ऐसे कई तरक्की पसंद अज़ीम शायर जन्में हैं जिन्होने आज़ादी के बाद एक सांस्कृतिक व सामाजिक आंदोलन छेड़ दिया था। इन्ही शायरों में से एक नाम था क़ैफ़ी आज़मी का, जिनकी इनक़िलाबी शायरी और जिनके लिखे फ़िल्मी गीत आवाम के लिए पैग़ाम हुआ करती थी। कैफ़ी साहब ने एक साक्षात्कार में कहा था कि 'I was born in Ghulam Hindustan, am living in Azad Hindustan, and will die in a Socialist Hindustan'. आज 'स्वरांजली' में श्रद्धांजली कैफ़ी आज़मी साहब को, जिनकी कल, यानी कि १४ जनवरी को ९२-वीं जयंती थी। उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ ज़िले की फूलपुर तहसील के मिजवां गाँव में एक कट्टर धार्मिक और ज़मींदार ख़ानदान में अपने माँ बाप की सातवीं औलाद के रूप में जन्में बेटे का नाम सय्यद अतहर हुसैन रिज़वी रखा गया जो बाद में कैफ़ी आज़मी के नाम से मशहूर हुए। शिक्षित परिवार में पैदा हुए कैफ़ी साहब शुरु से ही फक्कड़ स्वभाव के थे। पिता उन्हे मौलवी बनाने के ख़्वाब देखते रहे लेकिन कैफ़ी साहब मज़हब से दूर होते गए। उनके गाँव की फ़िज़ां ही कुछ ऐसी थी कि जिसने उनके दिलो-दिमाग