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चाँद अकेला जाए सखी री....येसुदास की मधुर आवाज़ और जयदेव का संगीत, इससे बेहतर क्या होगा...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 311/2010/11 ज नवरी का महीना फ़िल्म संगीत जगत के लिए एक ऐसा महीना है जिसमें अनेक कलाकारों के जन्मदिवस तथा पुण्यतिथि पड़ती है। इस साल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की शुरुआत हमने की पंचम यानी कि राहुल देव बर्मन के पुण्यतिथि को केन्द्रित कर उन पर आयोजित लघु शृखला 'पंचम के दस रंग' के ज़रिए, जो कल ही पूर्णता को प्राप्त हुई है। पंचम के अलावा जनवरी के महीने में और भी बहुत सारे संगीतकारों, गीतकारों और गायकों के जन्मदिन व स्मृतिदिवस हैं, तो हमने सोचा कि क्यों ना दस अंकों की एक ख़ास लघु शृंखला चलाई जाए जिसमें ऐसे कलाकारों को याद कर उनके एक एक गीत सुनवा दिए जाएँ और उनसे जुड़ी कुछ बातें भी की जाए। तो लीजिए प्रस्तुत है आज, यानी ११ जनवरी से लेकर २० जनवरी तक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की ख़ास शृंखला 'स्वरांजली'। दोस्तों, आज है ११ जनवरी। और कल, यानी कि १० जनवरी को था हिंदी और दक्षिण भारत के सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक यशुदास जी का जनमदिन। जी हाँ, यशुदास, जिनका नाम कई जगह बतौर जेसुदास भी दिखाई दे जाता है। तो हम यशुदास जी को कहते हैं 'बिलेटेड हैप्पी बर्थडे'!!! पद्मभू

जब साजिद वाजिद जोड़ी को मिला गुलज़ार साहब का साथ, तो रचा गया एपिक "वीर" का संगीत

ताज़ा सुर ताल ०२/ २०१० सजीव - 'ताज़ा सुर ताल' की इस साल की दूसरी कड़ी में सभी का हम स्वागत करते हैं। पिछली बार ' दुल्हा मिल गया ' की गीतों की चर्चा हुई थी और गानें भी हमने सुनें थे, आज बारी है एक महत्वपूर्ण फ़िल्म की, जिसकी चर्चा शुरु हुए साल बीत चुका है। सुजॊय - चर्चा शुरु हुए साल बीत चुका है और अभी तक फ़िल्म बाहर नहीं आई, ऐसी तो मुझे बस एक ही फ़िल्म की याद आ रही है, सलमान ख़ान का 'वीर'। सजीव - बिल्कुल सही पहचाना तुमने! आख़िर अब इस फ़िल्म के गानें रिलीज़ हो चुके हैं, और फ़िल्म के प्रोमोज़ भी आने शुरु हो गए हैं। आज फ़िल्म 'वीर' की बातें और 'वीर' का संगीत 'ताज़ा सुर ताल' पर। सुजॊय - तो सजीव, जब 'वीर' की बात छिड़ ही गई है तो बात आगे बढ़ाने से पहले इस फ़िल्म का मशहूर गीत "सलाम आया" सुन लेते हैं और श्रोताओं को भी सुनवा देते हैं, उसके बाद इस गीत के बारे में चर्चा करेंगे और 'वीर' की बातों को आगे बढ़ाएँगे। सजीव - ज़रूर! बस इतना बता दें कि इस फ़िल्म के संगीतकार हैं साजिद-वाजिद और गीतकार हमारे गुलज़ार साहब। गीत - सल

महबूबा महबूबा....याद कीजिये पंचम का वो मदमस्त अंदाज़ जिस पर थिरका था कभी पूरा देश

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 310/2010/10 दो स्तों, 'पंचम के दस रंग' लघु शृंखला को सुनते हुए आज हम आ पहुँचे हैं दसवीं कड़ी, यानी इस शृंखला की अंतिम कड़ी पर। आज का रंग है 'आइटम सॊंग्‍'। आइटम सॊंग्स की परम्परा नई नहीं है। बहुत पहले से ही हमारी फ़िल्मों में आइटम सॊंग्स बनते आए हैं। हाँ, इतना ज़रूर बदलाव आया है कि पहले ऐसे गानें फ़िल्म की कहानी से जुड़े हुए लगते थे, शालीनता भी हुआ करती थी, लेकिन आज के दौर के आइटम सॊंग्स केवल सस्ती पब्लिसिटी और अंग प्रदर्शन के लिए ही इस्तेमाल में लाए जाते हैं। साहब, आइटम सॊंग किसे कहते हैं पंचम दा ने दुनिया को दिखाया था १९७५ की ब्लॊकबस्टर फ़िल्म 'शोले' में "महबूबा महबूबा" गीत को बना कर और ख़ुद उसे गा कर। जलाल आग़ा और हेलेन पर फ़िल्माया हुआ यह गीत उतना ही अमर है जितना कि फ़िल्म 'शोले'। आज के इस अंतिम कड़ी के लिए पंचम दा की आवाज़ में इस गीत से बेहतर भला और कौन सा गीत हो सकता था! फ़िल्म 'शोले' की हम और क्या बातें करें, इसके हर पहलु तो बच्चा बच्चा वाक़िफ़ है, इसलिए आइए आज इस गीत की थोड़ी चर्चा की जाए। "महबूबा मह

इस मोड़ से जाते हैं कुछ सुस्त कदम रस्ते...और उन्हीं रास्तों पर आज भी राह तकते हैं गुलज़ार पंचम का

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 309/2010/09 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' में 'पंचम के दस रंग' शृंखला में अब तक आप ने जिन ८ रंगों का आनंद उठाया वो रंग थे भारतीय शास्त्रीय संगीत, पाश्चात्य संगीत, लोक संगीत, भक्ति संगीत, हास्य रस, रोमांटिसिज़्म, क़व्वाली और कल का रंग कुछ दर्द भरा सा था जुदाई के रंग से रंगा हुआ। आज हम जिस जौनर की बात करेंगे उसके बारे में सिर्फ़ यही कह सकते हैं कि यह जौनर है गुलज़ार और पंचम की जोड़ी का जौनर। अब इस जौनर को और क्या नाम दें? गुलज़ार साहब, जिनके ग़ैर पारंपरिक बोल हमेशा गीत को एक अलग ही मुक़ाम पर ले जाया करती है, और उस पर अगर उनके चहेते दोस्त और संगीतकार पंचम के संगीत का रंग चढ़े तो फिर कहना ही क्या! इसलिए हमने सोचा कि इस जोड़ी के नाम एक गीत तो होना ही चाहिए और एक ऐसा गीत जिसमें गुलज़ार साहब के अनोखे शब्द हों, जो आम तौर पर फ़िल्मी गीतों में सुनाई नहीं देते हों। ऐसे तो उनके अनेकों गानें हैं, लेकिन हमने आज के लिए चुना है लता मंगेशकर और किशोर कुमार की आवाज़ों में फ़िल्म 'आंधी' का गीत "इस मोड़ से जाते हैं, कुछ सुस्त क़दम रस्ते, कुछ तेज़ क़दम राहें"।

सुनो कहानी:पंडित माधवराव सप्रे की "एक टोकरी भर मिट्टी"

आवाज़ के सभी श्रोताओं को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ! 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने हरिशंकर परसाई लिखित व्यंग्य रचना " नया साल " का पॉडकास्ट अनुराग शर्मा की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं पंडित माधवराव सप्रे लिखित प्रेरणा-कथा " एक टोकरी भर मिट्टी ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। "एक टोकरी भर मिट्टी" का कुल प्रसारण समय मात्र 4 मिनट 15 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। पं. माधवराव सप्रे (1878-1926) स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी नायकों में से एक पंडित माधवराव सप्रे ने भारत में राजनैतिक चेतना जगाने के साथ-साथ साहित्य जगत में भी अपना योगदान दिया था. हिन्दी केसरी और छत्तीसगढ़ मित्र नामक पत्रिकाएं शुरू करने के अतिरिक्त उन्होंने सन १९०५ मे

सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देती...जब मुकेश ने उंडेला दर्द पंचम के स्वरों में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 308/2010/08 क ल एक गुदगुदाने वाला गीत आप ने सुना था 'पंचम के दस रंग' शृंखला के अंतर्गत। पंचम के संगीत की विविधता को बनाए रखते हुए आइए आज हम कल के गीत के ठीक विपरीत दिशा में जाते हुए एक ग़मगीन नग़मा सुनते हैं। अक्सर राहुल देव बर्मन के नाम के साथ हमें ख़ुशमिज़ाज गानें ही ज़्यादा याद आते हैं, लेकिन उन्होने कई गमज़दा गानें भी बनाए हैं जो बेहद मशहूर हुए हैं। आज के लिए हमने जिस गीत को चुना है वह बहुत ख़ास इसलिए भी है क्योंकि इस गीत के गायक को पंचम दा ने बहुत ज़्यादा गवाया नहीं है। जी हाँ, मुकेश और पंचम की जोड़ी बहुत ही रेयर जोड़ी रही है। 'धरम करम' में "इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल" और 'कटी पतंग' फ़िल्म के गीत "जिस गली में तेरा घर ना हो बालमा" दो ऐसे गीत हैं जो सब से पहले ज़हन में आते हैं मुकेश और पंचम के एक साथ ज़िक्र से। लेकिन इस जोड़ी का एक और गीत है जो आज हमने चुना है फ़िल्म 'मुक्ति' से। "सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देती, तुम्हारे प्यार की बातें हमें सोने नहीं देती"। आनंद बक्शी की गीत रचना है और

मेरी जीवन नैय्या बीच भंवर में गुड़ गुड़ गोते खाए....कैसे रहेंगे मुस्कुराए बिना किशोर दा और पंचम दा के सदाबहार गीत को सुनकर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 307/2010/07 'पं चम के दस रंग' शृंखला में आज है हमारी आपको गुदगुदाने की बारी। राहुल देव बर्मन ने बहुत सारी फ़िल्मों में हास्य रस के गानें बनाए हैं। इससे पहले कि हम आज के गीत पर आएँ, हम उन तमाम हिट व सुपरहिट गीतों का ज़िक्र करना चाहेंगे जिनमें पंचम ने हास्य रस के रंग भरे हैं। नीचे हम एक पूरी की पूरी फ़ेहरिस्त दे रहे हैं, ज़रा याद कीजिए इन गीतों को, इनमें से कुछ गीत आगे चलकर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में भी शामिल होंगे ऐसी हम उम्मीद करते हैं। १. कालीराम का फट गया ढोल (बरसात की एक रात) २. गोलमाल है भई सब गोलमाल है (गोलमाल) ३. एक दिन सपने में देखा सपना (गोलमाल) ४. मास्टर जी की आ गई चिट्ठी (किताब) ५. कायदा कायदा आख़िर फ़ायदा (ख़ूबसूरत) ६. सुन सुन सुन दीदी तेरे लिए (ख़ूबसूरत) ७. नरम नरम गरम गरम (नरम गरम) ८. एक बात सुनी है चाचाजी (नरम गरम) ९. ये लड़की ज़रा सी दीवानी लगती है (लव स्टोरी) १०. दुक्की पे दुक्की हो (सत्ते पे सत्ता) ११. जयपुर से निकली गाड़ी (गुरुदेव) और इन सबसे उपर, फ़िल्म 'पड़ोसन' के दो गानें - "एक चतुर नार" तथा "मेरे भोले बलम&q