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कैसे कोई जिये, ज़हर है ज़िंदगी... कुछ और ही रंग होता है गीता दत्त की आवाज़ में छुपे दर्द का

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 291 गी ता दत्त और शैलेन्द्र को समर्पित दो लघु शृंखलाओं के बाद आज से हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' को चौथी बार के लिए दे रहे हैं फ़रमाइशी रंग। यानी कि 'ओल्ड इज़ गोल्ड पहेली प्रतियोगिता' के चौथे विजेयता पराग सांकला जी के फ़रमाइशी गीतों को सुनने का वक़्त आख़िर आ ही गया है। तो आज से अगले पाँच दिनों तक इस महफ़िल को रोशन करेंगे पराग जी के पाँच मनचाहे गीत। हम सभी जानते हैं कि पराग जी गीता दत्त जी के परम भक्त हैं, और गीता जी के गीतों और उनसे जुड़ी बातों के प्रचार प्रसार में उन्होने एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और लगातार उस ओर उनका प्रयास जारी है। तो ऐसे में अगर हम उनके पसंद का पहला गाना गीता जी की आवाज़ में न सुनवाएँ तो ग़लत बात हो जाएगी। तो चलिए आज सुना जाए गीता जी की आवाज़ में एक और दर्द भरा नग़मा। पता नहीं क्यों जब भी हम गीता जी के गाए ये दर्द भरे और ग़मगीन गानें सुनते हैं तो अक्सर उन गीतों के साथ हम उनकी निजी ज़िंदगी को भी जोड़ देते हैं। उनकी व्यक्तिगत जीवन में जो ग़मों और तक़लीफ़ों के तूफ़ान आए थे, वो उनके गाए तमाम गीतों में भी झलकते हैं। और सब से ज

इस बार नर हो न निराश करो मन को संगीतबद्ध हुआ

गीतकास्ट प्रतियोगिता- परिणाम-6: नर हो न निराश करो मन को आज हम हाज़िर हैं 6वीं गीतकास्ट प्रतियोगिता के परिणामों को लेकर और साथ में है एक खुशख़बरी। हिन्द-युग्म अब तक इस प्रतियोगिता के माध्यम से जयशंकर प्रसाद , सुमित्रानंदन पंत , सूर्यकांत त्रिपाठी निराला , महादेवी वर्मा , रामधारी सिंह दिनकर और मैथिलीशरण गुप्त की एक-एक कविता संगीतबद्ध करा चुका है। इस प्रतियोगिता के आयोजित करने में हमें पूरी तरह से मदद मिली है अप्रवासी हिन्दी प्रेमियों की। खुशख़बरी यह कि ऐसे ही अप्रवासी हिन्दी प्रेमियों की मदद से हम इन 6 कविताओं की बेहतर रिकॉर्डिंगों को ऑडियो एल्बम की शक्ल दे रहे हैं और उसे लेकर आ रहे हैं 30 जनवरी 2010 से 7 फरवरी 2010 के मध्य नई दिल्ली के प्रगति मैदान में लगने वाले 19वें विश्व पुस्तक मेला में। इस माध्यम से हम इस कवियों की अमर कविताओं को कई लाख लोगों तक पहुँचा ही पायेंगे साथ ही साथ नव गायकों और संगीतकारों को भी एक वैश्विक मंच दे पायेंगे। 6वीं गीतकास्ट प्रतियोगिता में हमने मैथिली शरण गुप्त की प्रतिनिधि कविता 'नर हो न निराश करो मन को' को संगीतबद्ध करने की प्रतियोगिता रखी थी। इसमें

सजनवा बैरी हो गए हमार....शैलेन्द्र का दर्द पी गयी मुकेश की आवाज़, और चेहरा था राज कपूर का

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 290 दो स्तों, यह शृंखला जो इन दिनों आप सुन रहे हैं वह है "शैलेन्द्र- आर.के.फ़िल्म्स के इतर भी"। यानी कि राज कपूर फ़िल्म्स के बाहर बनी फ़िल्मों में शैलेन्द्र जी के लिखे हुए गानें। लेकिन दोस्तों, जो हक़ीक़त है वह तो हक़ीक़त है, उसे ना हम झुटला सकते हैं और ना ही आप बदल सकते हैं। और हक़ीक़त यही है कि राज कपूर और शैलेन्द्र दो ऐसे नाम हैं जिन्हे एक दूसरे से जुदा नहीं किया जा सकता। सिर्फ़ कर्मक्षेत्र में ही नहीं, बल्कि यह आश्चर्य की ही बात है कि एक की पुण्यतिथि ही दूसरे का जन्म दिवस है। आज १४ दिसंबर, यानी कि शैलेन्द्र जी की पुण्य तिथि। १४ दिसंबर १९६६ के दिन शैलेन्द्र जी इस दुनिया-ए-फ़ानी को हमेशा के लिए अलविदा कह गए थे, और १४ दिसंबर ही है राज कपूर साहब का जनमदिन। इसलिए आज इस विशेष शृंखला का समापन हम एक ऐसे गीत से कर रहे हैं जो आर.के.फ़िल्म्स की तो नहीं है, लेकिन इस फ़िल्म के साथ शैलेन्द्र और राज कपूर दोनों ही इस क़दर जुड़े हैं कि आज के दिन के लिए इससे बेहतर गीत नहीं हो सकता। और ख़ास कर इस फ़िल्म के जिस गीत को हमने चुना है वह तो बिल्कुल सटीक है आज के लिए। &qu