ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 244 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों जारी है गीतकार साहिर लुधियानवी और संगीतकार सचिन देव बर्मन के संगीतबद्ध गीतों की ख़ास लघु शॄंखला 'जिन पर नाज़ है हिंद को'। दोस्तों, सन् १९५१ की बात करें तो अब तक हमने दो फ़िल्में, 'नौजवान' और 'बाज़ी' के एक एक गीत सुनें हैं इस शृंखला में। १९५१ पहला पहला साल था साहिर साहब और सचिन दा के सुरीले साथ का। और यह पहला ही साल इतना धमाकेदार रहा है कि हम बार बार मुड़ रहे हैं उसी साल की ओर। कम से कम एक और मशहूर गीत सुनवाए बग़ैर हम इस साल की चर्चा ख़त्म ही नहीं कर सकते। यह गीत है फ़िल्म 'सज़ा' का। फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने का यह भी एक 'टाइमलेस क्लासिक' है, जिसे आज भी जुदाई के दर्द में डूबी प्रेमिकाएँ मन ही मन गा उठती हैं। "तुम न जाने किस जहाँ में खो गए, हम भरी दुनिया में तन्हा हो गए"। जी. पी. सिप्पी, जो कराची में एक नामचीन शख़्स हुआ करते थे, देश के बँटवारे के बाद भारत आ गए और फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में क़दम रखा जी. पी. प्रोडक्शन्स के बैनर के साथ। १९५१ में उन्होने बना डाली फ़िल्म '