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महादेवी वर्मा छायावाद के चार प्रमुख स्तंभों में महादेवी वर्मा एक हैं !इनका जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में एक संपन्न कला -प्रेमी परिवार में सन् १९०७ में होली के दिन हुआ !महादेवी जी अपने परिवार में लगभग २०० वर्ष बाद पैदा होने वाली लड़की थी !इसलिए उनके जन्म पर सबको बहुत प्रसन्नता हुई !अपने संस्मरण `मेरे बचपन के दिन 'में उन्होंने लिखा है कि,"मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहन करना पड़ा जो एनी लड़कियों को सहना पड़ता है !"इनके बाबा (पिता)दुर्गा के भक्त थे तथा फ़ारसी और उर्दू जानते थे !इनकी माता जी जबलपुर कि थीं तथा हिंदी पढ़ी लिखी थीं !वे पूजा पाठ बहुत करती थी !माताजी ने इन्हें पंचतंत्र पढना सिखाया था तथा बाबा इन्हें विदुषी बनाना चाहते थे !इनका मानना है कि बाबा की पढ़ाने की इच्छा और विरासत में मिले सांस्कृतिक आचरण ने ही इन्हें लेखन की प्रवर्ति की ओर अग्रसर किया !इनकी आरंभिक शिक्षा इंदौर में हुई !माता के प्रभाव ने इनके ह्रदय में भक्ति -भावना के अंकुर को जन्म दिया !मात्र ९ वर्ष की उम्र में ये विवाह -बंधन में बांध गयीं थीं !विवाह के उपरांत भी इनका अध्यय
"ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन" रहा सबसे मुश्किल गाना मन्ना डे को कामयाबी आसानी से नहीं मिली। वे कहते हैं: मैं लड़ना जानता हूँ, किसी भी हालात से जूझना सीखा है मैंने। मैंने सारी ज़िन्दगी मेहनत करी है और अब भी कर रहा हूँ। मैंने कभी हार नहीं मानी। संघर्ष में सबसे अच्छी बात होती है कि वो पल जब सब कुछ खत्म होता सा दिखाई पड़ता है उस पल ही कहीं से हिम्मत और आत्मविश्वास सा आ जाता है जो मुझे हारने नहीं देता। शास्त्रीय संगीत में रुचि रखने वाले हों या उससे अनभिज्ञ, सभी को मेरे गाने पसंद आते हैं। मेरी मेहनत, ट्रेंनिंग और अनुशासन की वजह से लोग मुझे विश्व भर में जानते हैं और सम्मान देते हैं। मन्ना डे को इस बात से दुख नहीं होता कि बाकी गायकों के मुकाबले उन्हें कम मौके मिले। उन्होंने लगभग सभी बड़े संगीतकारों के साथ काम किया है। वे बताते हैं कि कईं बार संगीतकार उनसे गाना गवाना चाहते थे परन्तु हर बार संगीतकार ही निर्णय नहीं लेते। फिल्मी जगत में अभिनेताओं के पसंदीदा गायक हुआ करते हैं और गायक भी उसी कलाकार से पहचाने जाते रहे हैं। जैसे, रफी हमेशा नौशाद की पसंद रहे और उन्होंने दिलीप कुमार के अधि

तीर पर कैसे रूकूँ मैं, आज लहरों का निमंत्रण....

सुनिए अमिताभ बच्चन की आवाज़ में हरिवंश राय बच्चन का काव्य पाठ आज हिन्दी साहित्य के माधुर्य रस से लबालब काव्य लिखने वाले हालावादी कवि हरिवंश राय बच्चन छठवीं पुण्यतिथि है।उनका नाम याद आते ही याद आता है २५ वर्ष का एक युवक - लम्बे घुँघराले बाल, इकहरा शरीर, दरमियाना कद,गेहुँआ रंग, दार्शनिक मुद्रा और शरारत भरी आँखें। दिन में कचहरी और रात में होटल या ट्रेन में। २ नोट बुक सदा हाथ में रहती। एक अखबारी नोट तथा दूसरी निजी जो उसकी सच्ची साथी थी,जिसमें वो अपनी प्यारी कल्पनाएँ छन्दोबद्ध रूप में लिखता था।गला सुरीला था। अक्सर गुनगुनाता था- "अरूण कमल कोमल कलियों का, प्याली, फूलों का प्याला..." अपने गीतों की धुन स्वयं बनाता और मस्ती से गाता था। एक ऐसा कवि जिसने मात्र १३ वर्ष की आयु में अपनी पहली कविता लिखी। आरम्भ में छोटी-छोटी सभाओं में लोकप्रिय हुआ और कुछ ही दिनों में समस्त हिन्दी प्रेमियों में गायक कवि के रूप में प्रचलित हो गया। १९३३ में बनारस में एक बड़ा कविसम्मेलन हुआ। दिग्गज कवियों के बीच मधुशाला के २ पद सुनाकर दिग्विजय पा ली। बैठबा चाहते थे पर तालियों की गड़गड़ाहट ने तीसरा, फिर चौथा पद सुन