ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 150 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल दिन-ब-दिन, कड़ी दर कड़ी आगे बढ़ती चली जा रही है दोस्तों। यह आप सब का प्यार और पुराने फ़िल्म संगीत में आप की दिलचस्पी ही है कि इस शृंखला की रोचकता में ज़रा सी भी कमी नहीं आयी है। आज इस शृंखला ने पूरे किए पूरे १५० दिन! आप सब का प्यार युंही बना रहे, तो हम आगे भी आप के पसंदीदा गीतों के इस महफ़िल को युंही रोशन करते रहेंगे। दरअसल यह महफ़िल रोशन है गुज़रे ज़माने के उन लाजवाब कलाकारों की अपार मेहनत और लगन की वजह से जिन्होने फ़िल्म संगीत के धरोहर को समृद्ध किया, उसमें बेशुमार मोतियाँ जड़ें। आज यह धरोहर एक विशाल अनमोल ख़ज़ाने का रूप ले चुकी है, और इसी ख़ज़ाने से चुन चुन कर हम मोतियाँ निकाल कर ला रहे हैं हर रोज़ आप के लिए। आज इस शृंखला की १५० वीं कड़ी के लिए हमने जो गीत चुना है वो फ़िल्म संगीत का एक सदाबहार नग़मा है। इसके संगीतकार ने अपने पूरे जीवन में केवल १४ फ़िल्मों में संगीत दिया है, लेकिन इन १४ फ़िल्मों में उन्होने कुछ ऐसा काम कर दिखाया है कि आज ५० साल बाद भी वो ज़िंदा हैं अपने रचे उन तमाम कालजयी संगीत की वजह से। हम बात कर रहे ...