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आइये आज सम्मानित करें 'सिने पहेली' प्रतियोगिता के विजेताओं को...

'सिने पहेली 'पुरस्कार वितरण सभा 'सिने पहेली' के सभी चाहनेवालों को सुजॉय चटर्जी का एक बार फिर से प्यार भरा नमस्कार। जैसा कि आप जानते हैं कि 'सिने पहेली' के महामुकाबले के अनुसार श्री प्रकाश गोविन्द और श्री विजय कुमार व्यास इस प्रतियोगिता के संयुक्त महाविजेता बने हैं, और साथ ही श्री पंकज मुकेश, श्री चन्द्रकान्त दीक्षित और श्रीमती क्षिति तिवारी सांत्वना पुरस्कार के हक़दार बने हैं। आज के इस विशेषांक के माध्यम से आइये इन सभी विजेताओं को इनके द्वारा अर्जित पुरस्कारों से सम्मानित करें। यह है 'सिने पहेली' प्रतियोगिता का पुरस्कार वितरण अंक। 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' की तरफ़ से महाविजेता को मिलता है 5000 रुपये का नकद इनाम। क्योंकि प्रकाश जी और विजय जी संयुक्त महाविजेता बने हैं, अत: यह राशि आप दोनों में समान रूप से विभाजित की जाती है।  श्री प्रकाश गोविन्द को 2500 रुपये की पुरस्कार राशि बहुत बहुत मुबारक़ हो! आपके बैंक खाते पर यह राशि ट्रान्सफ़र कर दी गई है। रेडियो प्लेबैक इंडिया : प्रकाश जी, इस पुरस्कार को स्वीकार

संगीत में उफान और शब्दों में कुछ उबलते सवाल

ताज़ा सुर ताल -2014 - 13 दोस्तों देश भर में चुनावी माहौल गरम है. हर नेता अपने लोकलुभावन नारों से मतदाताओं के दिल जीतने की जुगत में लगा है. गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, मुद्दे सभी वही पुराने हैं, बहुत कुछ बदला पर सोचो तो कुछ भी नहीं बदला, इतने विशाल और समृद्ध देश की संपत्ति पर आज भी बस चंद पूंजीपति फन जमाये बैठे हैं. समाज आज भी भेद भाव, छूत छात जैसी बीमारियों में कैद है. बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा से खिलवाड़ है तो न्याय और सच्चाई की आवाज़ भी कहीं राख तले दबी सुनाई देती है. कितने गर्व से हम गाते आये हैं सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा...  मगर वो सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान आज है कहाँ ? यही वो खौलता सा सवाल है जो गीतकार इरशद कामिल ने फिल्म कांची  के गीत में उठाया है. आज ताज़ा सुर ताल में है इसी गीत की बारी. एकदम नए कलाकारों को लेकर आये हैं दिग्गज निर्माता निर्देशक सुभाष घई. घई साहब अपनी फिल्मों में संगीत पक्ष पर ख़ास पकड़ रखते हैं, लम्बे समय तक उनके चेहेते रहे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और आनंद बक्शी. बख्शी साहब के साथ तो उनका काफी लम्बा साथ रहा, और उन्होंने रहमान से भी उनके लिखे गीतों क

सड़क जाम - पुरुषोत्तम पाण्डे की कहानी, अनुराग शर्मा की ज़ुबानी

इस साप्ताहिक स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको हिन्दी में मौलिक और अनूदित, नई और पुरानी, प्रसिद्ध कहानियाँ और छिपी हुई रोचक खोजें सुनवाते रहे हैं। पिछली बार आपने अनुराग शर्मा के स्वर में शंकर पुणतांबेकर की कथा " आम आदमी " का पाठ सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं पुरुषोत्तम पाण्डे की कहानी सड़क जाम जिसे स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। पुरुषोत्तम पाण्डेय की कथा लातों का देव आप पहले सुन चुके हैं। कहानी " सड़क जाम " का गद्य पुरुषोत्तम पाण्डेय के ब्लॉग जाले ब्लॉग पर उपलब्ध है। इस कथा का कुल प्रसारण समय 4 मिनट 55 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। मेरी कहानियों का स्रोत आस-पास समाज में घटित घटनाओं तथा कहीं सुनी-पढ़ी बातें ही होती है। किसी व्यक्ति विशेष को चित्रित नहीं करता हूँ।

चैत्र मास में चैती गीतों का लालित्

स्वरगोष्ठी – 161 में आज लोक संगीत का रस-रंग जब उपशास्त्रीय मंच पर बिखरा ‘चैत मासे चुनरी रंगइबे हो रामा, पिया घर लइहें...’ ‘ रेडियो प्लेबैक इण्डिया ’ के मंच पर साप्ताहिक स्तम्भ ‘ स्वरगोष्ठी ’ के एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र , एक बार पुनः आप सब संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों , आज हम आपसे संगीत की एक ऐसी शैली पर चर्चा करेंगे जो मूलतः ऋतु प्रधान लोक संगीत की शैली है , किन्तु अपनी सांगीतिक गुणबत्ता के कारण इस शैली को उपशास्त्रीय मंचों पर भी अपार लोकप्रियता प्राप्त है। भारतीय संगीत की कई ऐसी लोक - शैलियाँ हैं , जि नका प्रयोग उपशास्त्रीय संगीत के रूप में भी किया जाता है। होली पर्व के बाद , आरम्भ होने वाले चैत्र मास से ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। इस परिवेश में चैती गीतों का गायन आरम्भ हो जाता है। गाँव की चौपालों से लेकर मेलों में , मन्दिरों में चैती के स्वर गूँजने लगते हैं। आज के अंक से हम आपसे चैती गीतों के विभिन्न प्रयोगों पर चर्चा आरम्भ करेंगे। उत्तर भारत में इस गीत के प्रकारों को चैती , चैता और घाटो के नाम से जान

अभिनेत्री नन्दा को श्रद्धांजलि आज 'एक गीत सौ कहानियाँ' में...

एक गीत सौ कहानियाँ - 26   ‘अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम...’ "मुझे अभी-अभी पता चला कि अभिनेत्री नन्दा, जिसे हम बेबी नन्दा कहते थे, वो अब हमारे बीच नहीं रही। यह सुन कर मुझे बहुत दुख हुआ। बेबी नन्दा जब 4-5 साल की थी, तब उसने 'मन्दिर' फ़िल्म में मेरे छोटे भाई की भूमिका निभायी थी। मैं नन्दा के पिताजी मास्टर विनायक जी की कम्पनी में बतौर बाल कलाकार 1943 से काम करती थी। मेरी और नन्दा और उसकी बड़ी बहन मीना के साथ बड़ी दोस्ती थी। नन्दा की पहली फ़िल्म 'तूफ़ान और दीया' से मैंने नन्दा के लिए प्लेबैक शुरु किया। बहुत अच्छी इंसान थी। भगवान उसकी आत्मा को शान्ति दे।" --- लता मंगेशकर अ भिनेत्री नन्दा अब इस दुनिया में नहीं रहीं। लता जी के उपर्युक्त शब्दों से पता चलता है कि कितना अन्तरंग रिश्ता रहा होगा दोनों में। आज नन्दा जी को श्रद्धा-सुमन अर्पित करने के लिए लता जी के गाये और नन्दा जी पर फ़िल्माये फ़िल्म 'हम दोनो' के भजन "अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम" से बेहतर कोई रचना नहीं होगी। गाँधीवादी विचारधारा लिये राग गौड़ सारंग आधारित इस

यो यो और मीका भी बने मस्त कलंदर के दीवाने

ताज़ा सुर ताल 2014-11 दोस्तों नए गीतों की दुनिया में एक बार फिर से स्वागत है आप सबका। आज सबसे पहले बात हनी सिंह, जी हाँ वही 'यो यो' वाले।  यूं तो भारतीय श्रोताओं के लिए रैप गायन शैली को बहुत पहले ही बाबा सेहगल सरीखे गायक परोस चुके हैं, पर जो कामियाबी यो यो ने हासिल की उसका कोई सानी नहीं।  हनी सिंह ने बहुत से नए पंजाबी गायकों को हिट गीत दिए गाने के लिए और उनपर अपने रैप का जो तड़का लगाया उसे सुन युवा श्रोता झूम उठे।  उनके रैप के शब्द भी ऐसे जैसे इस दौर के युवाओं की बात हो रही हो बिना अलग लाग लपेट।  सबसे अच्छी खासियत उनकी ये रही कि समय के साथ साथ वो अपने संगीत में भी नए प्रयोग लाते रहे।   लुंगी डांस  के लिए रजनीकान्त का अंदाज़ चुरा लिया तो कभी गुलज़ार साहब के क्लास्सिक तेरे बिना ज़िन्दगी से  को रैप के सांचे में ढाल लिया।  उनका ताज़ा प्रयोग रहा हिंदी फ़िल्मी संगीत के आज के सबसे हिट गायक मिका सिंह के साथ जुगलबंदी करना। मिका और यो यो साथ आये हैं एक सूफियाना गीत के साथ. वैसे इस गीत दमा दम मस्त कलंदर  का भी इतिहास पुराना है।  मूल रूप से अमीर खुसरो के रचे  इस इबादत को बाबा बुल्लेशाह ने अ

साहिर और रोशन की अनूठी जुगलबंदी से बनी ये नायाब कव्वाली

खरा सोना गीत - निगाहें मिलाने को जी चाहता है  प्रस्तोता - रचिता टंडन  स्क्रिप्ट - सुजॉय चट्टर्जी  प्रस्तुति - संज्ञा टंडन