ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 727/2011/167 ‘ओ ल्ड इज गोल्ड’ पर जारी श्रृंखला ‘वतन के तराने’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ। दोस्तों, इस श्रृंखला में देशभक्ति से परिपूर्ण गीतों के माध्यम से हम अपने उन पूर्वजों का स्मरण कर रहे हैं, जिनके त्याग और बलिदान के कारण आज हम उन्मुक्त हवा में साँस ले रहे हैं। आज के अंक में हम 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के नायक और प्रथम बलिदानी मंगल पाण्डेय के अदम्य साहस और आत्मबलिदान की चर्चा करेंगे, साथ ही गीतकार आनन्द बक्शी का इन्हीं भावों से ओतप्रोत एक प्रेरक गीत भी सुनवाएँगे। कानपुर के बिठूर में निर्वासित जीवन बिता रहे पेशवा बाजीराव द्वितीय का निधन 14जनवरी, 1851 को हो गया था। उनके दत्तक पुत्र नाना साहब को पेशवा का पद प्राप्त हुआ। अंग्रेजों ने नाना साहब को पेशवा बाजीराव का वारिस तो मान लिया था, किन्तुपेंशन देना स्वीकार नहीं किया। तत्कालीन राजनीतिक परिस्थिति के जानकार नाना साहब अन्दर ही अन्दर अंग्रेजों के विरुद्ध क्रान्ति की योजना बनाने लगे। तीर्थयात्रा के बहाने उन्होने स्थान-स्थान पर अंग्रेजों के विरुद्ध क्रान्ति के लिए लोगों को