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‘बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय...’ : SWARGOSHTHI – 188 : THUMARI BHAIRAVI

स्वरगोष्ठी – 188 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 7 : ठुमरी भैरवी पण्डित भीमसेन और सहगल की आवाज़ में सुनिए लौकिक और आध्यात्मिक भाव का बोध कराती यह कालजयी ठुमरी  ‘ रेडियो प्लेबैक इण्डिया ’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘ स्वरगोष्ठी ’ के मंच पर मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी साथी प्रस्तुतकर्त्ता संज्ञा टण्डन के साथ आप सब संगीत-प्रेमियों का अभिनन्दन करता हूँ। इन दिनों जारी हमारी श्रृंखला ' फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी ’ के सातवें अंक में आज हम एक कालजयी पारम्परिक ठुमरी और उसके फिल्मी संस्करण के साथ उपस्थित हैं। इस श्रृंखला में आप कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरि यों का रसास्वादन कर रहे हैं जिन्हें फिल्मों में कभी यथावत तो कभी परिवर्तित अन्तरे के साथ इस्तेमाल किया गया। फिल्मों मे शामिल ऐसी ठुमरियाँ अधिकतर पारम्परिक ठुमरियों से प्रभावित होती हैं। ‘ रेडियो प्लेबैक इण्डिया ’ के कुछ स्तम्भ केवल श्रव्य माध्यम से प्रस्तुत किये जाते हैं तो कुछ स्तम्भ आलेख और चित्र , दृश्य माध्यम के साथ और गीत-संगीत श्रव्य माध्यम से प्रस्तुत होते हैं। इस श्रृंखला से

"मेरो गाम काठा पारे...", सफ़ेद-क्रान्ति की ही तरह यह गीत भी पहुँचा था देश के कोने कोने तक

एक गीत सौ कहानियाँ - 42   ‘मेरो गाम काठा पारे. .. ’ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ से, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ - 'एक गीत सौ कहानियाँ'।  इसकी 42-वीं कड़ी में आज जानिये फ़िल्म 'मंथन' के यादगार गीत "मेरो गाम काठा पारे..." के बारे में। 80 का दशक कलात्मक फ़िल्मों का स्वर्ण-युग रहा। जिन फ़िल्मका

‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ...’ : SWARGOSHTHI – 187 : THUMARI BHAIRAVI, KHAMAJ AND ADANA

स्वरगोष्ठी – 187 में आज फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी – 6 : ठुमरी भैरवी, खमाज और अड़ाना लता जी के जन्मदिन पर शुभकामनाओं सहित समर्पित है उन्हीं की गायी ठुमरी  ‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ...’   ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर मैं कृष्णमोहन मिश्र अपनी साथी प्रस्तुतकर्त्ता संज्ञा टण्डन के साथ आप सब संगीत-प्रेमियों का अभिनन्दन करता हूँ। आज ‘भारतरत्न’ की उपाधि से अलंकृत, विश्वविख्यात कोकिलकंठी गायिका लता मंगेशकर की 85वीं वर्षगाँठ है। इस अवसर पर ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ परिवार अपने हजारों पाठकों और श्रोताओं के साथ लता जी का हार्दिक अभिनन्दन करता है। इन दिनों हमारी जारी श्रृंखला 'फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ के छठे अंक में आज हमने एक ऐसी पारम्परिक ठुमरी का चयन किया है, जिसके पारम्परिक स्वरूप को अपने समय की सुविख्यात गायिकाओं- रसूलन बाई और रोशनआरा बेगम ने स्वर दिया है, तो इसी ठुमरी के परिमार्जित फिल्मी संस्करण को लता मंगेशकर ने अनूठे अंदाज से प्रस्तुत किया ह