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‘दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अँखियाँ प्यासी रे...’ : राग केदार में भक्तिरस

  स्वरगोष्ठी – 144 में आज रागों में भक्तिरस – 12 राग केदार के स्वरों से अभिसिंचित एक कालजयी भक्तिगीत ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की बारहवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीतानुरागियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, जारी श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस राग पर आधारित फिल्म संगीत के उदाहरण भी आपको सुनवा रहे हैं। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम आपसे राग केदार में उपस्थित भक्तिरस पर चर्चा करेंगे। आपके समक्ष इस राग के भक्तिरस-पक्ष को स्पष्ट करने के लिए हम तीन भक्तिरस से पगी रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे। सबसे पहले हम 1957 में प्रदर्शित फिल्म ‘नरसी भगत’ का राग केदार पर आधारित एक प्रार्थना गीत और इसके बाद पण्डित जसराज के गायन और पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया के बाँसुरी वादन की आकर्षक जुगलबन्दी में एक भजन भी आप सुनेगे।  प न्द्रहवीं शताब्दी के वैष्णव भक्त कवि नरसी मेहता के जीवन पर हिन्दी में दो

‘भयभंजना वन्दना सुन हमारी...’ : राग मियाँ की मल्हार में भक्तिरस

    स्वरगोष्ठी – 143 में आज रागों में भक्तिरस – 11 मन्ना डे को भावांजलि अर्पित है उन्हीं के गाये गीत से  ‘ रेडियो प्लेबैक इण्डिया ’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘ स्वरगोष्ठी ’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘ रागों में भक्तिरस ’ की ग्यारहवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र , आप सब संगीतानुरागियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों , जारी श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपसे भारतीय संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और उनमें निबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस राग पर आधारित फिल्म संगीत के उदाहरण भी आपको सुनवा रहे हैं। श्रृंखला की आज की कड़ी में हम आपसे ऋतु प्रधान राग मियाँ की मल्हार में उपस्थित भक्तिरस पर चर्चा करेंगे। आपके समक्ष इस राग के भक्तिरस-पक्ष को स्पष्ट करने के लिए हम तीन भक्तिरस से पगी रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे। सबसे पहले हम 1956 में प्रदर्शित फिल्म ‘ बसन्त बहार ’ का राग मियाँ की मल्हार पर आधारित एक वन्दना गीत सुर-गन्धर्व मन्ना डे की आवाज़ में प्रस्तुत कर उनकी स्मृतियों को भावांजली अर्पित करेंगे। आपको स्मरण ही होगा की बीते 24 अक्तूबर को बैंगलुरु में उनका निधन हो गया थ

पण्डित राजन-साजन मिश्र से सुनिए मियाँ की मल्हार

    स्वरगोष्ठी – 129 में आज भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति – 9 राग मियाँ मल्हार पर आधारित एक अनूठा गीत-   ‘नाच मेरे मोर जरा नाच...’ इन दिनों ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक मंच ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी है, लघु श्रृंखला ‘भूले-बिसरे संगीतकार की कालजयी कृति’। इस श्रृंखला की नौवीं कड़ी के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों की इस संगोष्ठी में उपस्थित हूँ और आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपको राग-आधारित कुछ ऐसे फिल्मी गीत सुनवा रहे हैं, जो छः दशक से भी पूर्व के हैं। रागों के आधार के कारण ये गीत आज भी सदाबहार गीत के रूप में हमारे बीच प्रतिष्ठित हैं। परन्तु इनके संगीतकार हमारी स्मृतियों में धूमिल हो गए हैं। इस श्रृंखला को प्रस्तुत करने का हमारा उद्देश्य यही है कि इन कालजयी, राग आधारित गीतों के माध्यम से हम उन भूले-बिसरे संगीतकारों को स्मरण करें। आज के अंक में हम आपके लिए वर्षाकालीन राग मियाँ की मल्हार पर आधारित लगभग लुप्तप्राय एक फिल्मी गीत, इस गीत के विस्मृत संगीतकार शान्ति कुमार देसाई का परिचय और राग मियाँ की मल्हार में नि

चार रागों का मेल हैं इस रागमाला गीत में

स्वरगोष्ठी – 120 में आज रागों के रंग रागमाला गीत के संग – 6 ‘एक ऋतु आए एक ऋतु जाए...’ संगीत-प्रेमियों की साप्ताहिक महफिल ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नये अंक का साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र पुनः उपस्थित हूँ। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी है लघु श्रृंखला ‘रागों के रंग रागमाला गीत के संग’। आज हम आपके लिए जो रागमाला गीत प्रस्तुत कर रहे हैं, उसे हमने 1966 में प्रदर्शित फिल्म ‘सौ साल बाद’ से लिया है। इस गीत में चार रागों- भटियार, आभोगी कान्हड़ा, मेघ मल्हार और बसन्त बहार का प्रयोग हुआ है। गीत के चार अन्तरे हैं और इन अन्तरों में क्रमशः स्वतंत्र रूप से इन्हीं रागों का प्रयोग किया गया है। इसके गीतकार आनन्द बक्शी और संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल हैं। इ स श्रृंखला के पिछले अंकों में आपने कुछ ऐसे रागमाला गीतों का आनन्द लिया था, जिनमें रागों का प्रयोग प्रहर के क्रम से था या ऋतुओं के क्रम से हुआ था। परन्तु आज के रागमाला गीत में रागों का क्रम प्रहर अथवा ऋतु के क्रम में नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि फिल्म ‘सौ साल बाद’ के इस रागमाला गीत में

ऋतु आधारित राग हैं इस रागमाला गीत में

स्वरगोष्ठी – 117 में आज रागों के रंग रागमाला गीत के संग – 4 ‘ऋतु आए ऋतु जाए सखी री मन के मीत न आए...’ ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नये अंक के साथ मैं, कृष्णमोहन मिश्र अपने संगीत-प्रेमी पाठकों-श्रोताओं के बीच एक बार पुनः उपस्थित हूँ। आज के अंक में हम एक बार फिर लघु श्रृंखला ‘रागों के रंग रागमाला गीत के संग’ की अगली कड़ी प्रस्तुत कर रहे हैं। श्रृंखला के पिछले दो अंकों में हमने जो गीत शामिल किये थे, उनमे रागों के क्रम प्रहर के क्रमानुसार थे। परन्तु आज के रागमाला गीत में रागों का क्रम बदलते मौसम के अनुसार है। इस गीत में ग्रीष्म ऋतु का राग गौड़ सारंग, वर्षा ऋतु का राग गौड़ मल्हार, पतझड़ का राग जोगिया और बसन्त ऋतु का राग बहार क्रमशः शामिल किया गया है। रागमाला का यह गीत हमने 1953 प्रदर्शित फिल्म ‘हमदर्द’ से लिया है। फिल्म के संगीतकार हैं, अनिल विश्वास और इसे मन्ना डे और लता मंगेशकर ने गाया है।  अनिल विश्वास और लता मंगेशकर   ‘रा गमाला’ संगीत का वह प्रकार होता है, जिसमे किसी गीत में एक से अधिक रागों का प्रयोग हो और सभी राग स्वतंत्र रूप से रच