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Showing posts with the label indian classical music

सुर संगम में आज - परवीन सुल्ताना की आवाज़ का महकता जादू

सुर संगम - 09 - बेगम परवीन सुल्ताना अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि जितना महत्वपूर्ण एक अच्छा गुरू मिलना होता है, उतना ही महत्वपूर्ण होता है गुरू के बताए मार्ग पर चलना। संभवतः इसी कारण वे कठिन से कठिन रागों को सहजता से गा लेती हैं, उनका एक धीमे आलाप से तीव्र तानों और बोल तानों पर जाना, उनके असीम आत्मविश्वास को झलकाता है, जिससे उस राग का अर्क, उसका भाव उभर कर आता है। चाहे ख़याल हो, ठुमरी हो या कोई भजन, वे उसे उसके शुद्ध रूप में प्रस्तुत कर सबका मन मोह लेती हैं। सु र-संगम की इस लुभावनी सुबह में मैं सुमित चक्रवर्ती आप सभी संगीत प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। हिंद-युग्म् के इस मंच से जुड़ कर मैं अत्यंत भाग्यशाली बोध कर रहा हूँ। अब आप सब सोच रहे होंगे कि आज 'सुर-संगम' सुजॉय जी प्रस्तुत क्यों नही कर रहे। दर-असल अपने व्यस्त जीवन में समय के अभाव के कारण वे अब से सुर-संगम प्रस्तुत नहीं कर पाएँगे। परन्तु निराश न हों, वे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के ज़रिये इस मंच से जुड़े रहेंगे। ऐसे में उन्होंने और सजीव जी ने 'सुर-संगम' का उत्तरदायित्व मेरे कन्धों पर सौंपा है।

सुर संगम में आज - बीन का लहरा और इस वाध्य से जुडी कुछ बातें

सुर संगम - 08 पुंगी या बीन के चाहे कितने भी अलग अलग नाम क्यों न हो, इस साज़ का जो गठन है, वह लगभग एक जैसा ही है। इसकी लम्बाई करीब एक से दो फ़ूट की होती है। पारम्परिक तौर पर पुंगी एक सूखी लौकी से बनाया जाता है, जिसका इस्तमाल एयर रिज़र्वर के लिए किया जाता है। इसके साथ बांस के पाइप्स लगाये जाते हैं जिन्हें जिवाला कहा जाता है। सु प्रभात! 'सुर संगम' की आठवीं कड़ी में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों, पिछले सात अंकों में आप ने इस स्तंभ में या तो शास्त्रीय गायकों के गायन सुनें या फिर भारतीय शास्त्रीय यंत्रों का वादन, जैसे कि सितार, शहनाई, सरोद, और विचित्र वीणा। आज भी हम एक वादन ही सुनने जा रहे हैं, लेकिन यह कोई शास्त्रीय साज़ नहीं है, बल्कि इसे हम लोक साज़ कह सकते हैं, क्योंकि इसका प्रयोग लोक संगीत मे होता है, या कोई समुदाय विशेष इसका प्रयोग अपनी जीविका उपार्जन के लिए करता है। आज हम बात कर रहे हैं बीन की। जी हाँ, वही बीन, जिसे हम अक्सर सपेरों और सांपों से जोड़ते हैं। बीन पूरे भारतवर्ष में अलग अलग इलाकों में अलग अलग नामों से जाना जाता है। उत्तर और पूर्व भारत में इसे पुंगी, तुम्बी

सुर संगम में आज - बेगम अख्तर की आवाज़ में ठुमरी और दादरा का सुरूर

सुर संगम - 07 कुछ लोगों का यह सोचना है कि मॊडर्ण ज़माने में क्लासिकल म्युज़िक ख़त्म हो जाएगी; उसे कोई तवज्जु नहीं देगा, पर मैं कहती हूँ कि यह ग़लत बात है। ग़ज़ल भी क्लासिकल बेस्ड है। अगर सही ढंग से पेश किया जाये तो इसका जादू भी सर चढ़ के बोलता है। "आ प सभी को मेरा सलाम, मुझे आप से बातें करते हुए बेहद ख़ुशनसीबी महसूस हो रही है। मुझे ख़ुशी है कि मैंने ऐसे वतन में जनम लिया जहाँ पे फ़न और फ़नकार से प्यार किया जाता है, और मैंने आप सब का शुक्रिया अपनी गायकी से अदा किया है"। मलिका-ए-ग़ज़ल बेगम अख़्तर जी के इन शब्दों से, जो उन्होंने कभी विविध भारती के किसी कार्यक्रम में श्रोताओं के लिए कहे थे, आज के 'सुर-संगम' का हम आगाज़ करते हैं। बेगम अख़्तर एक ऐसा नाम है जो किसी तारुफ़ की मोहताज नहीं। उन्हें मलिका-ए-ग़ज़ल कहा जाता है, लेकिन ग़ज़ल गायकी के साथ साथ ठुमरी और दादरा में भी उन्हें उतनी ही महारथ हासिल है। ३० अक्तुबर १९७४ को वो इस दुनिया-ए-फ़ानी से किनारा तो कर लिया, लेकिन उनकी आवाज़ का जादू आज भी सर चढ़ कर बोलता है। आज के संगीत में जब चारों तरफ़ शोर-शराबे का माहौल है, ऐसे में बेग

सुर संगम में आज - उस्ताद हबीब ख़ान का बजाया विचित्र वीणा वादन

सुर संगम - 06 विचित्र वीणा का रेंज पाँच ऒक्टेव का होता है। सितार की तरह विचित्र वीणा भी उंगलियों में मिज़राब (plectrums) पहनकर बजाया जाता है, तथा मेलडी के लिए शीशे का एक बट्टा मुख्य तारों पर फेरा जाता है। दो नोट्स के बीच दो इंच का फ़ासला हो सकता है। सु प्रभात! 'सुर-संगम' में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों, हमारे देश में प्राचीण काल से जितने भी साज़ हुए हैं, उनमें से कुछ साज़ आज विलुप्त प्राय हो गये हैं, यानी कि जिनका आज इस्तमाल ना के बराबर हो गये हैं। रुद्र-वीणा और सुरशृंगार की तरह विचित्र-वीणा एक ऐसा ही साज़ है। प्राचीन काल में एकतंत्री वीणा नाम का एक साज़ हुआ करता था; विचित्र वीणा उसी साज़ का आधुनिक रूप है। इस वीणा में तीन फ़ीट लम्बा और ६ इंच चौड़ा एक डंड होता है, और दोनों तरफ़ दो तुम्बे होते हैं कद्दु के आकार के जिन्हें हम रेज़ोनेटर भी कह सकते हैं। डंड के दोनों छोर पर मोर के सर की आकृति बनी होती है। विचित्र वीणा वादक वीणा को अपने सामने ज़मीन पर रख कर अपनी उंगलियाँ तारों पर फेरता है। विचित्र वीणा में मौजूद तारों (स्ट्रिंग्स) की बात करें तो इसमें चार मुख्य 'प्लेयि

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

सुर संगम में आज - पंडित बृज नारायण का सरोद वादन - राग श्री

सुर संगम - 04 राग श्री, एक प्राचीन उत्तर भारतीय राग है पूर्वी ठाट का। इसे भगवान शिव से जोड़ा जाता है। यह राग सिख धर्म में गाया जाता है गुरु ग्रंथ साहिब के तहत। गुरु ग्रंथ साहिब में कुल ३१ राग हैं और उसमें राग श्री सब से पहले आता है। गुरु ग्रंथ साहिब के १४ से लेकर ९४ पृष्ठों में जो कम्पोज़िशन है, वो इसी राग में है। सु प्रभात! सुर-संगम स्तंभ के सभी पाठकों व श्रोताओं का स्वागत है आज के इस अंक में। आज इसमें हम चर्चा करेंगे सुप्रसिद्ध सरोद वादक पंडित बृज नारायण की, जिनका बजाया हुआ राग श्री आपको सुनवाएँगे। साथ ही एक ऐसी फ़िल्मी रचना भी सुनवाएँगे जिसमें पंडित जी ने सरोद बजाया है और उस गीत में सरोद का बड़ा ही प्रॊमिनेण्ट प्रयोग हुआ है। बृज नारायण सुप्रसिद्ध सारंगी वादक पंडित राम नारायण के बड़े बेटे हैं। उनका जन्म २५ अप्रैल १९५२ को राजस्थान के उदयपुर में हुआ था। वैसे तो पिता के ज़रिये वो सारंगी भी बजा लेते थे, लेकिन धीरे धीरे उनकी रुचि सरोद में हो गई। बहुत ही कम उम्र से सीखने की वजह से उन्होंने इस विधा में महारथ हासिल की और एक नामचीन सरोद वादक के रूप में जाने गये। बृज नारायण कुछ समय तक अपने चाच

सुर संगम में आज - उस्ताद अमीर ख़ान का गायन - राग मालकौन्स

सुर संगम - 03 उस्ताद अमीर ख़ान ने "अतिविलंबित लय" में एक प्रकार की "बढ़त" ला कर सबको चकित कर दिया था। इस बढ़त में आगे चलकर सरगम, तानें, बोल-तानें, जिनमें मेरुखण्डी अंग भी है, और आख़िर में मध्यलय या द्रुत लय, छोटा ख़याल या रुबाएदार तराना पेश किया। जा ड़ों की नर्म धूप और आंगन में लेट कर, आँखों पे खींच कर तेरे दामन के साये को, आंधे पड़े रहे, कभी करवट लिए हुए"। गुलज़ार के इन अल्फ़ाज़ों से बेहतर शायद ही कोई अल्फ़ाज़ होंगे जाड़ों की इस सुहानी सुबह के आलम का बयाँ करने के लिए। 'आवाज़' के दोस्तों, सर्दी की इस सुहाने रविवार की सुबह में मैं आप सभी का 'आवाज़' के इस साप्ताहिक स्तंभ 'सुर-संगम' में स्वागत करता हूँ। आज इस स्तंभ का तीसरा अंक है। पहले अंक में आपने उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साहब का गायन सुना था राग गुनकली में, और दूसरे अंक में उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान और उस्ताद विलायत ख़ान से शहनाई और सितार पर एक भैरवी ठुमरी। आज हम लेकर आये हैं उस्ताद अमीर ख़ान का गायन, राग है मालकौन्स। उस्ताद अमीर ख़ान का जन्म १५ अगस्त १९१२ को इंदौर में एक संगीत परिवार

सुर संगम में आज - भैरवी ठुमरी - उस्ताद विलायत ख़ान (सितार) और उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान (शहनाई)

सुर संगम - 02 उन दोनों में जो आपसी सम्मान और प्यार था, वो उनकी प्रस्तुतिओं में साफ़ महसूस की जा सकती थी। जब भी ये दोनों साथ में कॊन्सर्ट्स करते थे तो शो हाउसफ़ुल हुआ करता था, और जब दोनों साथ में रेकॊर्डिंग् करते थे तो उनके रेकॊर्ड्स भी हज़ारों, लाखों की तादाद में बिकते और आज भी बिकते हैं। सु प्रभात! रविवार की इस ठिठुरती सुबह में शास्त्रीय संगीत के इस स्तंभ 'सुर संगम' के साथ मैं, सुजॊय हाज़िर हूँ। पिछले सप्ताह से इस साप्ताहिक स्तंभ की शुरुआत हुई थी और हमने सुनी थी उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साहब की गाई राग गुणकली। आज बारी एक जुगलबंदी की, और जिन दो कलाकारों की यह जुगलबंदी है, वे दोनों ही अपनी अपनी विधाओं में, अपने अपने साज़ों में बहुत ऊँचा मुकाम बनाया है, महारथ हासिल है। इनमें से एक हैं सुविख्यात सितार वादक उस्ताद विलायत ख़ान और दूसरे हैं शहनाई सम्राट उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान। सन् १९६७ में इन दोनों के जुगलबंदी की एक रेकॊर्ड जारी हुई थी 'Duets From India' के शीर्षक से। हमने जुगलबंदी तो कहा, लेकिन तकनीकी दृष्टि से इसे जुगलबंदी नहीं कहेंगे, बल्कि यह एक भैरवी आधारित ठुमरी है।