Skip to main content

राग भैरवी : SWARGOSHTHI – 491 : RAG BHAIRAVI




स्वरगोष्ठी – 491 में आज 

राज कपूर के विस्मृत संगीतकार – 7 : संगीतकार – सलिल चौधरी 

राज कपूर की फिल्म “जागते रहो” में फंतासी कम और सामाजिक यथार्थ अधिक है 




उस्ताद राशिद खाँ 

संगीतकार सलिल चौधरी 
“रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ "स्वरगोष्ठी" के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम फिल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेता राज कपूर के फिल्मी जीवन के पहले दशक के कुछ विस्मृत संगीतकारों की और उनकी कृतियों पर चर्चा कर रहे हैं। इन फिल्मों में से राज कपूर ने कुछ फिल्मों का निर्माण, कुछ का निर्देशन और कुछ फिल्मों में केवल अभिनय किया था। आरम्भ के पहले दशक अर्थात 1948 में प्रदर्शित फिल्म "आग" से लेकर 1958 में प्रदर्शित फिल्म "फिर सुबह होगी" तक की चर्चा इस श्रृंखला में की जाएगी। आमतौर पर राज कपूर की फिल्मों के अधिकतर संगीतकार शंकर जयकिशन ही रहे हैं। उन्होने राज कपूर की कुल 20 फिल्मों का संगीत निर्देशन किया है। इसके अलावा बाद की कुछ फिल्मों में लक्ष्मीकान्त, प्यारेलाल और रवीन्द्र जैन ने भी संगीत दिया है। राज कपूर की फिल्मों के प्रारम्भिक दशक के कुछ संगीतकार भुला दिये गए है, यद्यपि इन फिल्मों के गीत आज भी लोकप्रिय हैं। राज कपूर का जन्म 14 दिसम्बर, 1924 को पेशावर (अब पाकिस्तान) में जाने-माने अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के घर हुआ था। श्रृंखला की कड़ियाँ राज कपूर के जन्म पखवारे तक और वर्ष 2020 के अन्तिम रविवार तक जारी रहेगी। अगले सप्ताह उनकी 97वीं जयन्ती अवसर के लिए हमने राज कपूर और उनके कुछ विस्मृत संगीतकारों को स्मरण करने का निश्चय किया है। इस श्रृंखला के माध्यम से हम भारतीय सिनेमा के एक ऐसे स्वप्नदर्शी व्यक्तित्व राज कपूर पर चर्चा करेंगे, जिसने देश की स्वतन्त्रता के पश्चात कई दशकों तक भारतीय जनमानस को प्रभावित किया। सिनेमा के माध्यम से समाज को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले भारतीय सिनेमा के पाँच स्तम्भों; वी. शान्ताराम, विमल राय, महबूब खाँ और गुरुदत्त के साथ राज कपूर का नाम भी एक कल्पनाशील फ़िल्मकार के रूप में इतिहास में दर्ज़ हो चुका है। इस वर्ष 14 दिसम्बर को इस महान फ़िल्मकार की 97वीं जयन्ती है। इस अवसर के लिए श्रृंखला प्रस्तुत करने की जब योजना बन रही थी तब अपने पाठकों और श्रोताओं के अनेकानेक सुझाव मिले कि इस श्रृंखला में राज कपूर की आरम्भिक फिल्मों के गीतों को एक नये कोण से टटोला जाए। जारी श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" में हमने उनके लोकप्रिय संगीत निर्देशकों के अलावा दस ऐसे संगीतकारों के गीतों को चुना है, जिन्होने राज कपूर के आरम्भिक दशक की फिल्मों में उत्कृष्ट स्तर का संगीत दिया था। ये संगीतकार राज कपूर के व्यक्तित्व से और राज कपूर इनके संगीत से अत्यन्त प्रभावित हुए थे। इसके साथ ही इस श्रृंखला में प्रस्तुत किये जाने वाले गीतों के रागों का विश्लेषण भी करेंगे। इस कार्य में हमारा सहयोग "फिल्मी गीतों में राग" विषयक शोधकर्त्ता और "हिन्दी सिने राग इनसाइक्लोपीडिया" के लेखक के.एल. पाण्डेय और फिल्म संगीत के इतिहासकार सुजॉय चटर्जी ने किया है। इस श्रृंखला के माध्यम से हम स्वप्नदर्शी फ़िल्मकार राज कपूर और उनके प्रारम्भिक दौर के संगीतकारों की चर्चा कर रहे हैं। श्रृंखला की आज की सातवीं कड़ी में हम 1956 में राज कपूर द्वारा निर्मित और अभिनीत फिल्म "जागते रहो” से राग भैरवी पर आधारित एक गीत; "ते कि मैं झूठ बोलेया...” सुनवा रहे हैं, जिसका संगीत सलिल चौधरी ने और स्वर मुहम्मद रफी, एस. बलबीर और साथियों ने दिया है। यह गीत प्रेम धवन ने लिखा है और राग भैरवी पर आधारित है। राग भैरवी के शास्त्रीय स्वरूप का दिग्दर्शन कराने के उद्येश्य से हम इस राग में निबद्ध एक भक्ति रचना “जय शारदा भवानी भारती...” रामपुर, सहसवान घराने के सुप्रसिद्ध गायक उस्ताद राशिद खाँ के स्वर में प्रस्तुत कर रहे हैं। 



कल्पनाशील फ़िल्मकार राज कपूर के 97वें जन्मदिन के अवसर पर आयोजित श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार” की सातवीं कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ। अपने फिल्मी जीवन में राज कपूर ने 18 फिल्मों का निर्माण किया था। फिल्म “हिना” का अधूरा निर्माण कर वे स्वर्ग सिधार गए, जिसे बाद में उनके पुत्रों ने पूरा किया। इन सभी फिल्मों के कथानक सामाजिक यथार्थ की भूमि से जन्म लेते थे, किन्तु उनका ऊपरी स्वरूप फंतासी की तरह दिखता था। इन 18 फिल्मों में एक फिल्म “जागते रहो” ऐसी है, जिसमें सामाजिक यथार्थ की मात्रा अधिक और फंतासी नाममात्र के लिए है। राज कपूर इस फिल्म के निर्माता और अभिनेता थे। फिल्म ‘जागते रहो’ एक सफल बांग्ला नाटक “एक दिन रात्रे” पर आधारित है, जिसमे एक रात की कहानी है। यह फिल्म महानगरीय सभ्यता के खोखलेपन को चित्रित करता है। फिल्म का निदेशन सुप्रसिद्ध रंगकर्मी जोड़ी शम्भू मित्रा और अमित मैत्र ने किया था। फिल्म का नायक एक छोटे से गाँव से नौकरी की खोज में महानगर में आया है। पूरे दिन भूंखा प्यासा भटकता हुआ वह एक बहुमंजिले भवन में पानी की तलाश में पहुँच जाता है। चौकीदार उसे चोर समझ कर शोर मचा देता है। घबरा कर वह खुद को छिपाने के लिए भवन की हर मंज़िल और हर फ्लैट में भटकता फिरता है। इन सभी फ्लैट में उसे तथाकथित सभ्य समाज का वास्तविक चेहरा दिखाई देता है। राज कपूर की यही एकमात्र फिल्म है, जिसमे अधिकतम हक़ीक़त है और नाममात्र का फसाना। राज कपूर ने इस गम्भीर कथ्य में भी मनोरंजन का प्रयास किया है। करारे व्यंग्य के बीच हास्य के क्षण भी हैं। पूरी फिल्म में नायक कुछ नहीं बोलता। केवल अन्त में वह कहता है; “मैं थका हारा पानी पीने यहाँ चला आया, और सब लोग मुझे मुझे चोर समझ कर मेरे पीछे भागे, जैसे मैं कोई पागल कुत्ता हूँ। मैंने यहाँ हर तरह के लोग और चेहरे देखे। मुझ गँवार को तुमसे यही शिक्षा दी कि चोरी किये बिना कोई बड़ा आदमी नहीं बन सकता। क्या सचमुच चोरी किये बिना कोई बड़ा आदमी नहीं बन सकता?” यह जलता हुआ प्रश्न राज कपूर ने देश के कर्णधारों से पूछा है। राज कपूर जैसे जागरूक फ़िल्मकार ने भावी भारतीय समाज का पूर्वानुमान 1956 में ही कर लिया था। 



फिल्म "जागते रहो" में राज कपूर और नरगिस 
फिल्म “जागते रहो” के निर्माण की योजना बनाते समय राज कपूर के साथियों ने इस शुष्क विषय पर फिल्म न बनाने का सुझाव दिया, किन्तु उनके मस्तिष्क में यह विषय इतनी गहराई तक पैठ चुका था कि उन्होने उस सुझाव को दरकिनार कर दिया। फिल्म के अन्तिम दृश्य में प्यासा नायक अन्ततः एक बाग में पहुँचता है, जहाँ नरगिस पौधों को सींच रही थी। रात भर का प्यासा नायक उस युवती के हाथ से जी भर कर पानी पीकर तृप्त हो जाता है। यह प्यास एक व्यक्ति के रूप में और एक प्रेमी हृदय वाले राज कपूर की थी और फ़िल्मकार राज कपूर की भी थी। फिल्म “जागते रहो” का एक विचित्र तथ्य यह भी है कि राज कपूर द्वारा निभाए गये चरित्र को पानी पिला कर तृप्त करने वाली नरगिस की राज कपूर के साथ यह अन्तिम फिल्म सिद्ध हुई। फिल्म “जागते रहो” का निर्माण आरम्भ होने से पहले शंकर जयकिशन, राज कपूर की फिल्मों के स्थायी संगीतकार बन चुके थे। “बरसात”, “आवारा”, “श्री420”, “चोरी चोरी” आदि के गीत अत्यन्त जनप्रिय हो चुके थे। इसके बावजूद “जागते रहो” के लिए राज कपूर ने शंकर जयकिशन के स्थान पर जनवादी विचारधारा के सलिल चौधरी को संगीत का दायित्व दिया। राज कपूर की दूरदृष्टि ने इस तथ्य को पहचान लिया था कि शंकर जयकिशन के संगीत में आधी हक़ीक़त और आधा फसाना अभिव्यक्त होता है, जब कि सलिल चौधरी के संगीत से केवल हक़ीक़त। सलिल चौधरी ने फिल्म के कथानक के अनुरूप सूर्योदय के राग भैरव को केन्द्र में रख कर संगीत रचा। रात में होने वाले पाप को धोने और जनमानस में जागृति लाने के लिए भैरव के स्वरों से लिप्त गीत; “जागो मोहन प्यारे...” की ही आवश्यकता थी। सलिल दा ने इस फिल्म में दर्शनिकता से परिपूर्ण गीत; “ज़िंदगी ख्वाब है...” की भी रचना की, जिसे अभिनेता मोतीलाल पर फिल्माया गया था। आज जो गीत हम आपको सुनवाने जा रहे हैं, उसमें सलिल चौधरी की पंजाब के लोकसंगीत और नृत्य शैली उजागर होती है। पंजाब की चर्चित लोकशैली “भांगड़ा” पर आधारित गीत; “ते कि मैं झूठ बोलेया...” आज आपके लिए उपहार है। इस गीत को मोहम्मद रफी, एस. बलबीर और साथियों ने स्वर दिया है। गीतकार हैं प्रेम धवन और संगीतकार तो सलिल चौधरी हैं ही। फिल्म ‘जागते रहो’ के कथानक में घटित घटना की अवधि और फिल्म की अवधि लगभग समान है। रात्रि एक बज कर बीस मिनट से आरम्भ घटनाक्रम सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो जाता है। पंजाब के लोकनृत्य भांगड़ा और राग भैरवी पर आधारित यह गीत अब आप सुनिए। 

राग भैरवी : “ते कि मैं झूठ बोलेया...” : मुहम्मद रफी, एस. बलबीर और साथी : संगीत – सलिल चौधरी 


अभी आपने जो गीत सुना, उसमें राग भैरवी के स्वर लगे हैं। स्वरों के माध्यम से प्रत्येक रस का सृजन करने में राग भैरवी सर्वाधिक उपयुक्त राग है। संगीतज्ञ इसे ‘सदा सुहागिन राग’ तथा ‘सदाबहार’ राग के विशेषण से अलंकृत करते हैं। सम्पूर्ण जाति का यह राग भैरवी थाट का आश्रय राग माना जाता है। राग भैरवी में ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद सभी कोमल स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इस राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। राग भैरवी के आरोह स्वर हैं, सा, रे॒(कोमल), ग॒(कोमल), म, प, ध॒(कोमल), नि॒(कोमल), सां तथा अवरोह के स्वर, सां, नि॒(कोमल), ध॒(कोमल), प, म ग(कोमल), रे॒(कोमल), सा होते हैं। यूँ तो इस राग के गायन-वादन का समय प्रातःकाल, सन्धिप्रकाश बेला है, किन्तु आमतौर पर इसका गायन-वादन किसी संगीत-सभा अथवा समारोह के अन्त में किये जाने की परम्परा बन गई है। ‘भारतीय संगीत के विविध रागों का मानव जीवन पर प्रभाव’ विषय पर अध्ययन और शोधकर्त्ता लखनऊ के जाने-माने मयूर वीणा और इसराज वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र से जब मैंने राग भैरवी पर चर्चा की तो उन्होने स्पष्ट बताया कि भारतीय रागदारी संगीत से राग भैरवी को अलग करने की कल्पना ही नहीं की जा सकती। यदि ऐसा किया गया तो मानव जाति प्रातःकालीन ऊर्जा की प्राप्ति से वंचित हो जाएगी। राग भैरवी मानसिक शान्ति प्रदान करता है। इसकी अनुपस्थिति से मनुष्य डिप्रेशन, उलझन, तनाव जैसी असामान्य मनःस्थितियों का शिकार हो सकता है। प्रातःकाल सूर्योदय का परिवेश परमशान्ति का सूचक होता है। ऐसी स्थिति में भैरवी के कोमल स्वर- ऋषभ, गान्धार, धैवत और निषाद, मस्तिष्क की संवेदना तंत्र को सहज ढंग से ग्राह्य होते है। कोमल स्वर मस्तिष्क में सकारात्मक हारमोन रसों का स्राव करते हैं। इससे मानव मानसिक और शारीरिक विसंगतियों से मुक्त रहता है। भैरवी के विभिन्न स्वरों के प्रभाव के विषय में श्री मिश्र ने बताया कि कोमल ऋषभ स्वर करुणा, दया और संवेदनशीलता का भाव सृजित करने में समर्थ है। कोमल गान्धार स्वर आशा का भाव, कोमल धैवत जागृति भाव और कोमल निषाद स्फूर्ति का सृजन करने में सक्षम होता है। भैरवी का शुद्ध मध्यम इन सभी भावों को गाम्भीर्य प्रदान करता है। धैवत की जागृति को पंचम स्वर सबल बनाता है। इस राग के गायन-वादन का सर्वाधिक उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। भैरवी के स्वरों की सार्थक अनुभूति कराने के लिए अब हम प्रस्तुत कर रहे हैं, रामपुर, सहसवान घराने की गायकी के संवाहक उस्ताद राशिद खाँ के स्वर में राग भैरवी में निबद्ध एक वंदना गीत। ऐसी मान्यता है कि इस गीत की रचना संगीत सम्राट तानसेन ने की थी। आप इस रचना के माध्यम से राग भैरवी के भक्तिरस का अनुभव कीजिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए। 

राग भैरवी : "जय शारदा भवानी भारती..." : उस्ताद राशिद खाँ 



संगीत पहेली

"स्वरगोष्ठी" के 491वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको लगभग 63 वर्ष पूर्व प्रदर्शित राज कपूर की एक फिल्म के राग आधारित गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के सही उत्तर देना आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। श्रृंखला के पाँचवें सत्र अर्थात इस वर्ष के अन्तिम अंक की पहेली का उत्तर प्राप्त होने के बाद तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे उन्हें इस वर्ष के चतुर्थ सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा। 





1 - इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग की छाया है? 

2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए। 

3 – इस गीत में किस पार्श्वगायक के स्वर है? 

आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia9@gmail.com पर ही शनिवार 12 दिसम्बर, 2020 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। फेसबुक पर पहेली का उत्तर स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेताओं के नाम हम उनके शहर/ग्राम, प्रदेश और देश के नाम के साथ “स्वरगोष्ठी” के अंक संख्या 493 में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत, संगीत या कलाकार के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। 


पिछली पहेली के सही उत्तर और विजेता

“स्वरगोष्ठी” के 489वें अंक में हमने आपको 1953 में प्रदर्शित फिल्म "धुन से लिये गए एक युगल गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से कम से कम दो सही उत्तरों की अपेक्षा की गई थी। इस गीत के आधार राग को पहचानने में हमारे अधिकतर प्रतिभागियों को असफलता मिली। पहेली के पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – नट भैरवी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल – कहरवा तथा तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – हेमन्त कुमार और लता मंगेशकर। 

‘स्वरगोष्ठी’ की इस पहेली का सही उत्तर देने वाले हमारे विजेता हैं; चेरीहिल, न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी और शारीरिक अस्वस्थता के कारण स्वास्थ्यलाभ कर रहीं हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी। उपरोक्त सभी प्रतिभागियों में से प्रत्येक को दो-दो अंक मिलते हैं। ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से आप सभी को हार्दिक बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नए प्रतिभागी भी हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप इसमें भाग ले सकते हैं। 


संवाद

मित्रों, इन दिनों हम सब भारतवासी, प्रत्येक नागरिक को कोरोना वायरस से मुक्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं। देश के कुछ स्थानों पर अचानक इस वायरस का प्रकोप इन दिनों बढ़ गया है। अप सब सतर्कता बरतें। संक्रमित होने वालों के स्वस्थ होने का प्रतिशत निरन्तर बढ़ रहा है। परन्तु अभी भी हमें पर्याप्त सतर्कता बरतनी है। विश्वास कीजिए, हमारे इस सतर्कता अभियान से कोरोना वायरस पराजित होगा। आप सब से अनुरोध है कि प्रत्येक स्थिति में चिकित्सकीय और शासकीय निर्देशों का पालन करें और अपने घर में सुरक्षित रहें। इस बीच शास्त्रीय संगीत का श्रवण करें और अनेक प्रकार के मानसिक और शारीरिक व्याधियों से स्वयं को मुक्त रखें। विद्वानों ने इसे “नाद योग पद्धति” कहा है। “स्वरगोष्ठी” की नई-पुरानी श्रृंखलाएँ सुने और पढ़ें। साथ ही अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवगत भी कराएँ। 


अपनी बात

मित्रों, “रेडियो प्लेबैक इण्डिया” के साप्ताहिक स्तम्भ “स्वरगोष्ठी” पर जारी हमारी नई श्रृंखला “राज कपूर के विस्मृत संगीतकार" की सातवीं कड़ी में आज आपने राज कपूर की निर्मित और अभिनीत फिल्म "जागते रहो” एक गीत का रसास्वादन और गीतकार प्रेम धवन तथा संगीतकार सलिल चौधरी का परिचय प्राप्त किया। यह गीत राग भैरवी पर आधारित है। राग के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए हमने आपको रामपुर, सहसवान घराने सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ उस्ताद राशिद खाँ के स्वर में एक अत्यन्त कर्णप्रिय भक्तिरचना का रसास्वादन कराया। 

कुछ तकनीकी समस्या के कारण हम अपने फेसबुक के मित्र समूह के साथ “स्वरगोष्ठी” का लिंक साझा नहीं कर पा रहे हैं। सभी संगीत अनुरागियों से अनुरोध है कि हमारी वेबसाइट http://radioplaybackindia.com अथवा http://radioplaybackindia.blogspot.com पर क्लिक करके हमारे सभी साप्ताहिक स्तम्भों का अवलोकन करते रहें। “स्वरगोष्ठी” के वेब पेज के दाहिनी ओर निर्धारित स्थान पर अपना ई-मेल आईडी अंकित कर आप हमारे सभी पोस्ट के लिंक को नियमित रूप से अपने ई-मेल पर प्राप्त कर सकते है। “स्वरगोष्ठी” की पिछली कड़ियों के बारे में हमें अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया लगातार मिल रही है। हमें विश्वास है कि हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेंगे। आज के इस अंक अथवा श्रृंखला के बारे में यदि आपको कुछ कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। यदि आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia9@gmail.com पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः सात बजे “स्वरगोष्ठी” के इसी मंच पर हम एक बार फिर संगीत के सभी अनुरागियों का स्वागत करेंगे। 


प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र  

रेडियो प्लेबैक इण्डिया 
राग भैरवी : SWARGOSHTHI – 491 : RAG BHAIRAVI : 6 दिसम्बर, 2020 



Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...