स्वरगोष्ठी – 379 में आज
राग से रोगोपचार – 8 : रात्रि के दूसरे प्रहर का राग मालगुंजी
वैचारिक अन्तर्द्वन्द्व और उलझन की स्थिति में उपयोगी हो सकता है यह राग
उस्ताद अलाउद्दीन खाँ |
लता मंगेशकर |
राग मालगुंजी
के मुख्य स्वर हैं; रे, नि॒, सा, रे, ग, म। इनसे इस राग का प्रारम्भिक
दर्शन हो जाता है। इस राग को राग रागेश्वरी और राग बागेश्री का मिश्रण माना
जाता है। आरोह में कहीं-कहीं रागेश्वरी तो अवरोह में कहीं-कहीं बागेश्री
का आभास होता है। संगीत मार्तण्ड पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर के मतानुसार इस राग की
प्रकृति न गम्भीर है और न तरल है। वैचारिक अन्तर्द्वन्द्व, उलझन की
स्थितियों में इस राग के स्वर संवेदनात्मक रूप में प्रेरणा तथा मनोबल को
सुदृढ़ करने के साथ-साथ उन कष्टदायक स्थितियों का समाधान करने में सहयोगी
सिद्ध हो सकते हैं। उलझनों तथा मानसिक अन्तर्द्वन्द्व की स्थितियों के
साथ-साथ इनके प्रभावानुसार उत्पन्न मनोभौतिक समस्याओं; उच्चरक्तचाप का
बढ़ना, भूंख न लगना, अनिद्रा आदि का उपचार इस राग से सम्भव हो सकता है। राग
मालगुंजी के शास्त्रीय स्वरूप को समझने के लिए अब हम आपके लिए मैहर घराने
के संस्थापक उस्ताद अलाउद्दीन खाँ का वायलिन वादन प्रस्तुत कर रहे हैं।
यू-ट्यूब के सौजन्य से प्रस्तुत इस दुर्लभ वीडियो का अब आप रसास्वादन करें।
राग मालगुंजी : वायलिन वादन : उस्ताद अलाउद्दीन खाँ
राग
मालगुंजी का सम्बन्ध काफी थाट से माना जाता है। इसमें दोनों गान्धार और
दोनों निषाद प्रयोग किये जाते हैं। शुद्ध निषाद का प्रयोग अति अल्प किया
जाता है। अन्य स्वर शुद्ध प्रयोग होते हैं। आरोह में पंचम स्वर वर्जित होता
है और अवरोह में सातो स्वर प्रयोग किये जाते हैं। इसलिए यह षाडव-सम्पूर्ण
जाति का राग है। राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। इस
राग के गायन-वादन का अनुकूल समय रात्रि का दूसरा प्रहर है। सामान्यतः आरोह
में शुद्ध गान्धार और शुद्ध निषाद तथा अवरोह में कोमल गान्धार और कोमल
निषाद का प्रयोग किया जाता है। शुद्ध निषाद का अति अल्प प्रयोग केवल तार
सप्तक के साथ आरोह में किया जाता है। मन्द्र सप्तक के आरोहात्मक और
अवरोहात्मक दोनों प्रकार के स्वरों में कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है।
कुछ विद्वान केवल कोमल निषाद प्रयोग करते हैं, शुद्ध निषाद लगाते ही नहीं।
पंचम स्वर आरोह में वर्जित है और अवरोह में अल्प है। धैवत से मध्यम को आते
समय पंचम का कण लिया जाता है। शुद्ध निषाद का अल्पत्व, कोमल निषाद की
अधिकता, मध्यम स्वर का बहुत्व और पंचम स्वर का अल्पत्व तथा लगभग राग
बागेश्री के समान चलन होने के कारण इसे बागेश्री अंग का राग कहा जाता है।
राग मालगुंजी का वादी-संवादी क्रमशः मध्यम और षडज होने के कारण इसे रात्रि
12 बजे के बाद गाना-बजाना चाहिए, किन्तु इसे रात्रि 12 बजे से पूर्व
गाया-बजाया जाता है। अब हम प्रस्तुत कर रहे हैं; राग मालगुंजी पर आधारित एक
फिल्मी गीत। इसे हमने वर्ष 1961 में प्रदर्शित फिल्म “छोटे नवाब” से लिया
है। लता मंगेशकर के स्वर में प्रस्तुत उस गीत के संगीतकार राहुलदेव बर्मन
हैं। आप यह गीत सुनिए और हमें आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति
दीजिए।
राग मालगुंजी : “घर आ जा घिर आई बदरा...” : लता मंगेशकर : फिल्म – छोटे नवाब
संगीत पहेली
‘स्वरगोष्ठी’
के 379वें अंक की संगीत पहेली में आज हम आपको वर्ष 1971 में प्रदर्शित एक
फिल्म से रागबद्ध गीत का अंश सुनवा रहे हैं। गीत के इस अंश को सुन कर आपको
दो अंक अर्जित करने के लिए निम्नलिखित तीन में से कम से कम दो प्रश्नों के
उत्तर देने आवश्यक हैं। यदि आपको तीन में से केवल एक अथवा तीनों प्रश्नों
का उत्तर ज्ञात हो तो भी आप प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। 380वें अंक
की ‘स्वरगोष्ठी’ तक जिस प्रतिभागी के सर्वाधिक अंक होंगे, उन्हें वर्ष 2018
के तीसरे सत्र का विजेता घोषित किया जाएगा। इसके साथ ही पूरे वर्ष के
प्राप्तांकों की गणना के बाद वर्ष के अन्त में महाविजेताओं की घोषणा की
जाएगी और उन्हें सम्मानित भी किया जाएगा।
1 – इस गीतांश को सुन कर बताइए कि इसमें किस राग का आधार है?
2 – इस गीत में प्रयोग किये गए ताल को पहचानिए और उसका नाम बताइए।
3 – इस गीत में किस पार्श्वगायिका के स्वर है।?
आप उपरोक्त तीन मे से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com या radioplaybackindia@live.com
पर ही शनिवार, 11 अगस्त, 2018 की मध्यरात्रि से पूर्व तक भेजें। आपको यदि
उपरोक्त तीन में से केवल एक प्रश्न का सही उत्तर ज्ञात हो तो भी आप पहेली
प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। COMMENTS
में दिये गए उत्तर मान्य हो सकते हैं, किन्तु उसका प्रकाशन पहेली का उत्तर
देने की अन्तिम तिथि के बाद किया जाएगा। “फेसबुक” पर पहेली का उत्तर
स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजेता का नाम हम उनके शहर, प्रदेश और देश के नाम
के साथ ‘स्वरगोष्ठी’ के 381वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में
प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या
अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी
में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए COMMENTS के माध्यम से तथा swargoshthi@gmail.com अथवा radioplaybackindia@live.com पर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’
की 377वें अंक की संगीत पहेली में हमने आपको वर्ष 1953 में प्रदर्शित
फिल्म “अनारकली” के एक रागबद्ध गीत का अंश सुनवा कर आपसे तीन में से किसी
दो प्रश्न के उत्तर पूछा था। पहले प्रश्न का सही उत्तर है; राग – रागेश्वरी, दूसरे प्रश्न का सही उत्तर है; ताल कहरवा और तीसरे प्रश्न का सही उत्तर है; स्वर – लता मंगेशकर।
“स्वरगोष्ठी”
की इस पहेली प्रतियोगिता में तीनों अथवा तीन में से दो प्रश्नो के सही
उत्तर देकर विजेता बने हैं; वोरहीज, न्यूजर्सी से डॉ. किरीट छाया, नांदेड़ से भास्कर अमृतवार, चेरीहिल न्यूजर्सी से प्रफुल्ल पटेल, कोटा, राजस्थान से तुलसीराम वर्मा, कल्याण, महाराष्ट्र से शुभा खाण्डेकर, जबलपुर, मध्यप्रदेश से क्षिति तिवारी, मेरीलैण्ड, अमेरिका से विजया राजकोटिया और हैदराबाद से डी. हरिणा माधवी।
उपरोक्त सभी प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक
बधाई। सभी प्रतिभागियों से अनुरोध है कि अपने पते के साथ कृपया अपना उत्तर
ई-मेल से ही भेजा करें। इस पहेली प्रतियोगिता में हमारे नये प्रतिभागी भी
हिस्सा ले सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आपको पहेली के तीनों प्रश्नों के
सही उत्तर ज्ञात हो। यदि आपको पहेली का कोई एक उत्तर भी ज्ञात हो तो भी आप
इसमें भाग ले सकते हैं।
अपनी बात
मित्रों,
‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ पर जारी हमारी
महत्त्वाकांक्षी श्रृंखला “राग से रोगोपचार” की आठवीं कड़ी में आपने कुछ
शारीरिक और मनोशारीरिक रोगों के उपचार में सहयोगी राग मालगुंजी का परिचय
प्राप्त किया। आपने उस्ताद अलाउद्दीन खाँ द्वारा वायलिन पर प्रस्तुत राग
मालगुंजी का रसास्वादन किया। साथ ही आपने लता मंगेशकर की आवाज़ में इस राग
पर आधारित एक फिल्मी गीत फिल्म “छोटे नवाब” से सुना। हमें विश्वास है कि
हमारे अन्य पाठक भी “स्वरगोष्ठी” के प्रत्येक अंक का अवलोकन करते रहेंगे और
अपनी प्रतिक्रिया हमें भेजते रहेगे। आज के अंक के बारे में यदि आपको कुछ
कहना हो तो हमें अवश्य लिखें। हमारी वर्तमान अथवा अगली श्रृंखला के लिए यदि
आपका कोई सुझाव या अनुरोध हो तो हमें swargoshthi@gmail.com
पर अवश्य लिखिए। अगले अंक में रविवार को प्रातः 7 बजे हम ‘स्वरगोष्ठी’ के
इसी मंच पर एक बार फिर सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करेंगे।
शोध व आलेख : पं. श्रीकुमार मिश्र
सम्पादन व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
सम्पादन व प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
राग मालगुंजी : SWARGOSHTHI – 379 : RAG MALGUNJI : 5 अगस्त, 2018
Comments
place at this website, I have read all that,
so at this time me also commenting here.