Skip to main content

Posts

ओ हसीना जुल्फों वाली....जब पंचम ने रचा इतिहास तो थिरके कदम खुद-ब-खुद

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 302/2010/02 'पं चम के दस रंग' शृंखला की दूसरी कड़ी के साथ हम हाज़िर हैं दोस्तों। कल आपने पहली कड़ी में सुनें थे पंचम के गीत में भारतीय शास्त्रीय संगीत की मधुरता। आज इसके बिल्कुल विपरीत दिशा में जाते हुए आप के लिए हम लेकर आए हैं एक धमाकेदार पाश्चात्य धुनों पर आधारित गीत। फ़िल्म 'तीसरी मंज़िल' राहुल देव बर्मन की पहली सुपरहिट फ़िल्म मानी जाती है, जिसमें कोई संशय नहीं है। इसी फ़िल्म में वो अपने नए अंदाज़ में नज़र आए और जिसकी वजह से उन्हे पाँच क्रांतिकारी संगीतकारों में जगह मिली। (बाक़ी के चार संगीतकार हैं मास्टर ग़ुलाम हैदर, सी. रामचंद्र, ओ. पी. नय्यर, और ए. आर. रहमान)। इन नामों को पढ़कर आप ने यह ज़रूर अंदाज़ा लगा लिया होगा कि इन्हे क्रांतिकारी क्यों कहा गया है। तो फ़िल्म 'तीसरी मंज़िल' पंचम की कामयाबी की पहली मंज़िल थी। इस फ़िल्म से फ़िल्म संगीत जगत में उन्होने जो हंगामा शुरु किया था, वह हंगामा जारी रखा अपने अंतिम समय तक। रफ़ी साहब पर केन्द्रित शृंखला के अन्तर्गत इस फ़िल्म से " दीवाना मुझसा नहीं " गीत हमने सुनवाया था और फ़िल्म की

हरिशंकर परसाई की कहानी "नया साल"

आवाज़ के सभी श्रोताओं को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ! 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने पंडित सुदर्शन की कालजयी रचना " हार की जीत " का पॉडकास्ट शरद तैलंग की आवाज़ में सुना था। नववर्ष के शुभागमन पर आवाज़ की ओर से आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं हरिशंकर परसाई लिखित व्यंग्य " नया साल ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। "नया साल" का कुल प्रसारण समय मात्र 4 मिनट 40 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मेरी जन्म-तारीख 22 अगस्त 1924 छपती है। यह भूल है। तारीख ठीक है। सन् गलत है। सही सन् 1922 है। । ~ हरिशंकर परसाई (1922-1995) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी साधो, मेरी कामना अक्सर उल्टी हो जाती है। ( हरिशंकर परसाई के व्यंग्य "नया साल" से

ए सखी राधिके बावरी हो गई...बर्मन दा के शास्त्रीय अंदाज़ को सलाम के साथ करें नव वर्ष का आगाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 301/2010/01 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी चाहनेवालों को हमारी तरफ़ से नववर्ष की एक बार फिर से हार्दिक शुभकामनाएँ! नया साल २०१० आप सब के लिए मंगलमय हो यही ईश्वर से कामना करते हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला ३०० कड़ियाँ पूरी कर चुका हैं, ७ दिनों के अंतराल के बाद, आज से हम फिर एक बार हाज़िर हैं इस शूंखला के साथ और फिर उसी तरह से हर रोज़ लेकर आएँगे गुज़रे ज़माने का एक अनमोल नग़मा ख़ास आपके लिए। पहेली प्रतियोगिता का स्वरूप भी बदल रहा है आज से, तो जल्द जवाब देने से पहले शर्तों को ठीक तरह से समझ लीजिएगा! तो दोस्तों, नए साल में 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की शुरुआत एक धमाकेदार तरीके से होनी चाहिए, क्यों है न? तो फिर हो जाइए तैयार क्योंकि आज से हम शुरु कर रहे हैं क्रांतिकारी संगीतकार राहुल देव बर्मन के स्वरबद्ध किए दस अलग अलग रंगों के गीतों की एक ख़ास लघु शृंखला - पंचम के दस रंग । युं तो पंचम के दस नहीं बल्कि बेशुमार रंग हैं, लेकिन हम ने उनमें से चुन लिए लिए हैं दस रंगों को और इन दस रंगों से आपको अगले दस दिनों तक हम सराबोर करने जा रहे हैं। तो आइए आज इस नए साल की श