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राग काफी और बागेश्री : SWARGOSHTHI – 368 : RAG KAFI & BAGESHRI

स्वरगोष्ठी – 368 में आज दस थाट, बीस राग और बीस गीत – 7 : काफी थाट पण्डित भीमसेन जोशी से राग काफी में खयाल और उस्ताद अमीर खाँ से फिल्मी गीत की रचना सुनिए उस्ताद अमीर खाँ पण्डित  भीमसेन जोशी ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला ‘दस थाट, बीस राग और बीस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारा

‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ : SWARGOSHTHI – 198 : RAG BAGESHRI

  स्वरगोष्ठी – 198 में आज शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत – 7 : राग बागेश्री उस्ताद अमीर खाँ ने गाया बाँग्ला फिल्म में राग बागेश्री के स्वरों में खयाल- ‘कैसे कटे रजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है, हमारी लघु श्रृंखला, ‘शास्त्रीय संगीतज्ञों के फिल्मी गीत’। फिल्म संगीत के क्षेत्र में चौथे से लेकर आठवें दशक के बीच शास्त्रीय संगीत के कई विद्वानों और विदुषियों ने अपना योगदान किया है। छठें दशक के फिल्म संगीत में इस प्रकार के गीतों की संख्या अधिक थी। इस श्रृंखला में हमने कुछ ऐसे ही फिल्मी गीतों का चुनाव किया है, जिन्हें रागदारी संगीत के प्रयोक्ताओं और विशेषज्ञों ने रचा है। इन रचनाओं में राग के स्पष्ट स्वरूप की उपस्थिति मिलती है। श्रृंखला के सातवें अंक में आज हम आपसे 1960 में प्रदर्शित बाँग्ला फिल्म ‘क्षुधित पाषाण’ के एक गीत पर चर्चा करेंगे। फिल्म का यह गीत राग बागेश्री कामोद के स्वरों में पिरोया गया है। सुविख्यात गायक उस्ताद अमीर खाँ और बाँग्ला गीतों की सुप्रसिद्ध गायिका प्रतिमा बनर्जी

‘सावन की रातों में ऐसा भी होता है...’ : SWARGOSHTHI – 179 : Raag Des Malhar & Jayant Malhar

स्वरगोष्ठी – 179 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 5 : राग देस मल्हार और जयन्त मल्हार दो रागों के मेल से सृजित मल्हार अंग के दो राग ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की पाँचवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी प्रस्तुत कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत मल्हार अंग के सभी राग पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ हैं। आम तौर पर इन रागों का गायन-वादन वर्षा ऋतु में अधिक किया जाता है। इसके साथ ही कुछ ऐसे सार्वकालिक राग भी हैं जो स्वतंत्र रूप से अथवा मल्हार अंग के मेल से भी वर्षा ऋतु के अनुकूल परिवेश रचने में सक्षम

दिन के तीसरे प्रहर के कुछ मोहक राग

  स्वरगोष्ठी- 105 में आज राग और प्रहर – 3 कृष्ण की बाँसुरी और राग वृन्दावनी सारंग   ‘स्वरगोष्ठी’ के 105वें अंक में , मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इन दिनों आपके इस प्रिय स्तम्भ में लघु श्रृंखला ‘राग और प्रहर’ जारी है। गत सप्ताह हमने आपसे दिन के दूसरे प्रहर के कुछ रागों के बारे में चर्चा की थी। आज दिन के तीसरे प्रहर गाये-बजाये जाने वाले रागों पर चर्चा की बारी है। दिन का तीसरा प्रहर, अर्थात मध्याह्न से लेकर अपराह्न लगभग तीन बजे तक की अवधि के बीच का माना जाता है। इस अवधि में सूर्य की सर्वाधिक ऊर्जा हमे मिलती है और इसी अवधि में मानव का तन-मन अतिरिक्त ऊर्जा संचय भी करता है। आज के अंक में हम आपके लिए तीसरे प्रहर के रागों में से वृन्दावनी सारंग, शुद्ध सारंग, मधुवन्ती और भीमपलासी रागों की कुछ रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे। सा रंग अंग के रागों में वृन्दावनी सारंग और शुद्ध सारंग राग तीसरे प्रहर के प्रमुख राग माने जाते हैं। यह मान्यता है कि श्रीकृष्ण अपनी प्रिय बाँसुरी पर वृन्दावनी सारंग और मेघ राग की अवतारणा कि