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ये रहे सरताज गीत, लोकप्रिय गीत और शीर्ष 10 गीत

आज दिन है आवाज़ पर बहुप्रतीक्षित परिणामों का. आवाज़ पर नए संगीत का दूसरा सत्र जुलाई 2008 के प्रथम शुक्रवार से आरंभ हुआ था जो दिसम्बर के अंतिम शुक्रवार को संपन्न हुआ। इस दौरान कुल 27 नए गाने प्रसारित किये गए। संगीत के इस महाकुम्भ में कुल 47 नए संगीत कर्मियों ने अपने फन का जौहर दुनिया के सामने रखा, जिसमें 15 संगीतकार, 13 गीतकार, 24 गायक/गायिकाएँ, 2 संगीत सहायक शामिल हैं। इससे पहले अपने पहले सत्र के 10 गीतों को लेकर युग्म ने अपना प्रथम संगीत एल्बम "पहला सुर" फरवरी 2008 में जारी किया गया था। पर दूसरा सत्र हर लिहाज से बेहतर रहा; अपने पहले सत्र की तुलना में. पहले से अधिक संगीत कर्मी, पहले से अधिक रचनाएँ और तकनीकी स्तर पर भी लगभग हर गीत की गुणवत्ता इस सत्र के गीतों में बहुत बेहतर रही, इन सभी गीतों को श्रोताओं का भरपूर प्यार मिला, इन गीतों को हमने 5 संगीत विशेषज्ञों ने भी सुना, परखा, और दो चरण में सपन्न हुए इस प्रक्रिया में इन गीतों को अंक दिए गए, जिनके आधार पर निर्धारित किया गया कि एक सरताज गीत चुना जायेगा, और श्रेष्ठ 10 चुने हुए गीतों को हिंद युग्म अपने दूसरे संगीत एल्बम का हिस्सा

पहले चरण की दूसरी समीक्षा में कांटे की टक्कर, सितम्बर के सिकंदरों की

सितम्बर के सिकंदर गीत समीक्षा की पहली परीक्षा से गुजर चुके हैं, आईये जानें हमारे दूसरे समीक्षक की क्या राय है इनके बारे में - पहला गीत खुशमिज़ा़ज मिट्टी । मेरा मानना है कि ये गीत अब तक के सबसे संपूर्ण गीतों में से एक है । इस पर बहस की कोई गुंजाईश ही नहीं है । गायक संगीतकार ने इसके बोलों को बहुत ही संवेदनशीलता के साथ निभाया है । सुबोध साठे को बधाई । गौरव के बोल एक पके हुए गीतकार की कलम से निकले लगते हैं । आवाज़ के सबसे अच्‍छे गीतों में से एक है ये । गीत- 5, धुन और संगीत संयोजन—5, गायकी और आवाज़—5, ओवारोल प्रस्तुति—5 कुल अंक 20 / 20 यानी 10 / 10, कुल अंक अब तक (पहली और दूसरी समीक्षा को मिला कर)= 19 /20 दूसरा गीत— राहतें सारी मुझे लगता है कि इस गाने से किसी भी पक्ष में पूरा न्‍याय नहीं हुआ है । मोहिंदर जी के इस गीत के पहले दो अंतरे अच्‍छे हैं । पर आखिरी दो अंतरे कमजोर लगे । उनमें ‘गेय तत्‍त्‍व’ की कमी नज़र आई । कृष्‍ण राज कुमार ने कोशिश की है कि इस गाने को बहुत ही नाजुक-सा बनाया जाये । पर मुझे लगता है कि इस आग्रह की वजह से गाने के प्रभाव पर बहुत बुरा असर पड़ा है । इस गाने को और चमकाया जा

सितम्बर के सिकंदरों को पहली भिडंत, समीक्षा के अखाडे में...

सितम्बर के सिकंदरों की पहली समीक्षा - समीक्षा ( खुशमिजाज़ मिटटी ) सितम्बर माह का पहला गीत आया है सुबोध साठे की आवाज़ में "खुशमिजाज़ मिट्टी"। गीत लिखा है गौरव सोलंकी ने और संगीतकार खुद सुबोध साठे हैं। गीत के बोल अच्छी तरह से पिरोये गये हैं। गीत की शुरुआत जिस तरह से टुकड़ों में होती है, उसी तरह संगीतकार ने मेहनत करके टुकड़ों में ही शुरुआत दी है। धीमी शुरुआत के बावजूद सुबोध साठे के स्वर मजबूती से जमे हुए नज़र आते हैं। वे एक परिपक्व संगीतकार की तरह गीत की "स्पीड" को "मेण्टेन" करते हुए चलते हैं। असल में गीत का दूसरा और तीसरा अन्तरा अधिक प्रभावशाली बन पड़ा है, बनिस्बत पहले अन्तरे के, क्योंकि दूसरा अन्तरा आते-आते गीत अपनी पूरी रवानी पर आ जाता है। ध्वनि और संगीत संयोजन तो बेहतरीन बन पड़ा ही है इसका वीडियो संस्करण भी अच्छा बना है। कुल मिलाकर एक पूर्ण-परिपक्व और बेहतरीन प्रस्तुति है। गीत के लिये 4 अंक (एक अंक काटने की वजह यह कि गीत की शुरुआत और भी बेहतर हो सकती थी), आवाज और गायकी के लिये 5 अंक (गीत की सीमाओं को देखते हुए शानदार प्रयास के लिये), ध्वनि संयोजन और संगीत के लिय

मिलिए ग़ज़ल गायकी की नई मिसाल रफ़ीक़ शेख से

कर्नाटक के बेलगाम जिले में जन्मे रफ़ीक़ शेख ने मरहूम मोहम्मद हुसैन खान (पुणे)की शागिर्दी में शास्त्रीय गायन सीखा तत्पश्चात दिल्ली आए पंडित जय दयाल के शिष्य बनें. मखमली आवाज़ के मालिक रफ़ीक़ के संगीत सफर की शुरुवात कन्नड़ फिल्मों में गायन के साथ हुई, पर उर्दू भाषा से लगाव और ग़ज़ल गायकी के शौक ने मुंबई पहुँचा दिया जहाँ बतौर बैंक मैनेजर काम करते हुए रफ़ीक़ को सानिध्य मिला गीतकार /शायर असद भोपाली का जिन्होंने उन्हें उर्दू की बारीकियों से वाकिफ करवाया. संगीत और शायरी का जनून ऐसा छाया कि नौकरी छोड़ रफ़ीक़ ने संगीत को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया. आज रफ़ीक़ पूरे भारत में अपने शो कर चुके हैं. वो जहाँ भी गए सुनने वालों ने उन्हें सर आँखों पर बिठाया. २००४ में औरंगाबाद में हुए अखिल भारतीय मराठी ग़ज़ल कांफ्रेंस में उन्होंने अपनी मराठी ग़ज़लों से समां बाँध दिया, भाषा चाहे कन्नड़ हो, हिन्दी, मराठी या उर्दू रफ़ीक़ जानते हैं शायरी /कविता का मर्म और अपनी आवाज़ के ढाल कर उसे इस तरह प्रस्तुत करते हैं कि सुनने वालों पर जादू सा चल जाता है, महान शायर अहमद फ़राज़ को दी गई अपनी दो श्रद्धांजली स्वरुप ग़ज़लों क