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दीवाना हुआ बादल, सावन की घटा छायी...जब स्वीट सिक्सटीस् में परवान चढा प्रेम

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 554/2010/254 जी व जगत की तमाम अनुभूतियों में सब से प्यारी, सब से सुंदर, सब से सुरीली, और सब से मीठी अनुभूति है प्रेम की अनुभूति, प्यार की अनुभूति। यह प्यार ही तो है जो इस संसार को अनंतकाल से चलाता आ रहा है। ज़रा सोचिए तो, अगर प्यार ना होता, अगर चाहत ना होती, तो क्या किसी अन्य चीज़ की कल्पना भी हम कर सकते थे! फिर चाहे यह प्यार किसी भी तरह का क्यों ना हो। मनुष्य का मनुष्य से, मनुष्य का जानवरों से, प्रकृति से, अपने देश से, अपने समाज से। दोस्तों, यह 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल है, जो बुना हुआ है फ़िल्म संगीत के तार से। और हमारी फ़िल्मों और फ़िल्मी गीतों का केन्द्रबिंदु भी देखिए प्रेम ही तो है। प्रेमिक-प्रेमिका के प्यार को ही केन्द्र में रखते हुए यहाँ फ़िल्में बनती हैं, और इसलिए ज़ाहिर है कि फ़िल्मों के ज़्यादातर गानें भी प्यार-मोहब्बत के रंगों में ही रंगे होते हैं। दशकों से प्यार भरे युगल गीतों की परम्परा चली आई है, और एक से एक सुरीले युगल गीत हमें कलाकारों ने दिए हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर से चु्ने हुए

चैन से हमको कभी आपने जीने न दिया...यही शिकायत रही ओ पी को ताउम्र

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 316/2010/16 आ ज १६ जनवरी, संगीतकार ओ. पी. नय्यर साहब का जन्मदिवस है। जन्मदिन की मुबारक़बाद स्वीकार करने के लिए वो हमारे बीच आज मौजूद तो नहीं हैं, लेकिन हम उन्हे अपनी श्रद्धांजली ज़रूर अर्पित कर सकते हैं उन्ही के बनाए एक दिल को छू लेने वाले गीत के ज़रिए। नय्यर साहब के बहुत सारे गानें अब तक हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में सुनवाया है। आज हम जो गीत सुनेंगे वो उस दौर का है जब नय्यर साहब के गानों की लोकप्रियता कम होती जा रही थी। ७० के दशक के आते आते नए दौर के संगीतकारों, जैसे कि राहुल देव बर्मन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल आदि, ने धूम मचा दी थी। ऐसे में पिछले पीढ़ी के संगीतकार थोड़े पीछे ही रह गए। उनमें नय्यर साहब भी शामिल थे। लेकिन १९७२ की फ़िल्म 'प्राण जाए पर वचन न जाए' में उन्होने कुछ ऐसा संगीत दिया कि इस फ़िल्म के गानें ना केवल सुपरहिट हुए, बल्कि जो लोग कहने लगे थे कि नय्यर साहब के संगीत में अब वो बात नहीं रही, उनके ज़ुबान पर ताला लगा दिया। आशा भोसले की आवाज़ में इस फ़िल्म का "चैन से हमको कभी आप ने जीने ना दिया, ज़हर जो चाहा अगर पीना तो पीने ना दिया"

यही वो जगह है, यही वो फिजायें....किसी की यादों में खोयी आशा की दर्द भरी सदा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 298 श रद तैलंग जी के पसंद के ज़रिए आज बहुत दिनों के बाद हम लेकर आए हैं आशा भोसले और ओ. पी. नय्यर साहब की जोड़ी का एक और सदाबहार नग़मा। फ़िल्म 'ये रात फिर ना आएगी' का यह गीत "यही वो जगह है, ये ही वो फ़िज़ाएँ" इस जोड़ी का एक बहुत ही महत्वपूर्ण गीत है। बीती पुरानी यादों को उसी जगह पे जा कर फिर से एक बार जी लेने की बातें हैं इस गीत में। एस. एच. बिहारी साहब ने ऐसे जज़्बाती बोल लिखे हैं कि सुन कर दिल भर आता है। इस गीत के साथ हर कोई अपने आप को कनेक्ट कर सकता है। ख़ास कर वो लोग तो ज़रूर महसूस कर पाएँगे जो कभी अपने घर से दूर किसी जगह पर जा कर रहे होंगे और वहाँ पर कई रिश्ते भी बनाएँ होंगे, दोस्त बनाए होंगे, प्यार पाया होगा। और फिर जब उस जगह को छोड़ कर चले जाना पड़ा तो बस यादें ही साथ में वापस गईं। और फिर कई बरस बाद जब उसी जगह पर वापस लौटे तो सब कुछ बदला हुआ सा पाया। अगर कुछ वैसे का वैसा था तो बस दिल में उन बीते दिनों की यादें। "यही पर मेरा हाथ में हाथ लेकर कभी ना बिछड़ने का वादा किया था, सदा के लिए हो गए हम तुम्हारे गले से लगा कर हमें ये कहा था, कभ

हमने खायी है मोहब्बत में जवानी की क़सम....ज्ञान साहब का संगीतबद्ध एक दुर्लभ गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 260 फ़ि ल्म संगीत के इतिहास में अगर हम झाँकें तो ऐसे कई कई नाम ज़हन में आते हैं, जिन नामों पर जैसे वक़्त की धूल सी चढ़ गई है, और रोज़ मर्रा की ज़िंदगी में जिन्हे हम आज बड़ी मुश्किल से याद करते हैं। लेकिन एक वक़्त ऐसा था जब ये फ़नकार, कम ही सही, लेकिन अपनी प्रतिभा के जौहर से फ़िल्म संगीत के विशाल ख़ज़ाने को अपने अपने अनूठे ढंग से समृद्ध किया था। इनमें शामिल हैं फ़िल्म संगीत के पहली पीढ़ी के कई बड़े बड़े संगीतकार भी, जिन्हे आज की पीढ़ी लगभग भुला ही चुकी है। लेकिन संगीत के सच्चे रसिक आज भी उन्हे याद करते हैं, सम्मान करते हैं। और 'ओल्ड इज़ गोल्ड' एक ऐसा मंच है जो फ़िल्म संगीत के सुनहरे दशकों के हर दौर के कलाकारों को समर्पित है। आज एक ऐसे ही गुणी संगीतकार का ज़िक्र कर रहे हैं, आप हैं फ़िल्म संगीत के पहली पीढ़ी के संगीतकार ज्ञान दत्त। ज्ञान दत्त जी का नाम याद आते ही याद आते हैं सहगल साहब के गाए फ़िल्म 'भक्त सूरदास' के तमाम भजन। 'भक्त सूरदास' और ज्ञान दत्त जैसे एक दूसरे के पर्याय बन गए थे। यह ४० का दौर था। फिर धीरे धीरे बदलते दौर के साथ साथ ज्ञ

चल बादलों के आगे ....कहा हेमंत दा ने आशा के सुर से सुर मिलाकर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 192 '१० गायक और एक आपकी आशा' की पहली कड़ी में कल आप ने आशा भोसले और तलत महमूद का गाया फ़िल्म 'इंसाफ़' का युगल गीत सुना था। आज भी कल जैसा ही एक नर्म-ओ-नाज़ुक रोमांटिक युगल गीत लेकर हम हाज़िर हुए हैं। आज के गायक हैं हेमंत कुमार। इससे पहले की हम आज के गीत की चर्चा करें, क्योंकि यह शृंखला केन्द्रित है आशा जी पर, तो आशा जी के बारे में पहले कुछ बातें हो जाए! आशा जी ने फ़िल्म जगत में अपना सफ़र शुरु किया था बतौर बाल कलाकार। 'बड़ी माँ' और 'आई बहार' जैसी फ़िल्मों में उन्होने अभिनय किया था। बतौर पार्श्वगायिका उन्हे पहला मौका दिया था संगीतकार हंसराज बहल ने, फ़िल्म थी 'चुनरिया' और साल था १९४८। लेकिन यह फ़िल्म नहीं चली और उनका गाना भी नज़रंदाज़ हो गया। शोहरत की ऊँचाइयों को छूने के लिए उन्हे करीब करीब १० साल संघर्ष करना पड़ा. १९५७ के कुछ फ़िल्मों से वो हिट हो गयीं और १९५८ में बनी 'हावड़ा ब्रिज' के "आइए मेहरबान" गीत से तो वो लोगों के दिलों पर राज करने लगीं। १९४८ की 'चुनरिया' से लेकर १९५८ की 'हावड़ा ब्रिज

रहा गर्दिशों में हरदम मेरा इश्क का सितारा...मनोज कुमार की पीडा और रफी साहब की आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 158 "या द न जाये बीते दिनों की, जाके न आए जो दिन, दिल क्यों बुलाए उन्हे दिल क्यों बुलाए"। दोस्तों, फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की यादें इतनी पुरअसर हैं, इतने सुरीले हैं, कि उन्हे भुला पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। भले ही वो दिन फिर वापस नहीं आ सकते, लेकिन ग्रामोफ़ोन रिकार्ड्स, कैसेट्स और सीडीज़ के माध्यम से उन सुरीले दिनों की यादों को क़ैद कर लिया गया है जो सदियों तक उन सुरीले ज़माने की और उस दौर से गुज़रे कलाकारों की सुर साधना से दुनिया की फिजाओं को महकाती रहेंगी। इन सुर साधकों में से एक नाम मोहम्मद रफ़ी साहब का है, जिनकी कल पुण्य तिथि थी। आज ही के दिन सन् १९८० में वो हम से बिछड़ गये थे। जब भी रफ़ी साहब के गाये गीतों की महफ़िल सजती है तो यह दिल ग़मगीन हो जाता है यह सोचकर कि उपरवाले ने इतनी जल्दी क्यों उन्हे हम से अलग कर दिया! अभी तो मानो बस महफ़िल शुरु ही हुई थी, ३० साल पूरे होने जा रहे हैं उनके गये हुए, पर दिल तो आज भी बस यही कहता है उन्ही के गाये 'साज़ और आवाज़' फ़िल्म के उस गीत के बोलों में ढलकर कि "दिल की महफ़िल सजी है चले आइए, आप

बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी...ओल्ड इस गोल्ड के सभी श्रोताओं को समर्पित ये गीत.

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 119 हा ल ही में हमने आपको एस. एच. बिहारी के बारे में विस्तार से बताया था कि किस तरह से उन्हे एस. मुखर्जी ने १९५४ की फ़िल्म 'शर्त' में पहला बड़ा ब्रेक दिया था। आगे चलकर उनकी कई और फ़िल्मों में बिहारी साहब ने गीत लिखे, और सिर्फ़ लिखे ही नहीं, उन्हे कामयाबी की बुलंदी तक भी पहुँचाया। ऐसी ही एक फ़िल्म थी 'एक मुसाफ़िर एक हसीना'. जॉय मुखर्जी और साधना अभिनीत इस फ़िल्म में ओ. पी. नय्यर का संगीत था। आशा भोंसले और रफ़ी साहब के गाये इस फ़िल्म के तमाम युगल गीतों में तीन गीत जो सबसे ज़्यादा लोकप्रिय हुए, वो थे "मैं प्यार का राही हूँ", "आप युँही अगर हम से मिलती रहीं, देखिये एक दिन प्यार हो जायेगा", और तीसरा गीत था "बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी, मेरी ज़िंदगी में हुज़ूर आप आये". यूँ तो एस. एच. बिहारी ने ही इस फ़िल्म के अधिकतर गानें लिखे, लेकिन "आप युँही अगर" वाला गीत राजा मेहंदी अली ख़ान ने लिखा था। आज इस महफ़िल में सुनिये तीसरा युगल गीत। फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह थी कि शादी की रात साधना के घर आतंकवादियों का हमला होता है

न ये चाँद होगा न तारे रहेंगें...एस एच बिहारी का लिखा ये अनमोल नग्मा गीता दत्त की आवाज़ में.

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 93 आ ज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में प्यार के इज़हार का एक बड़ा ही ख़ूबसूरत अंदाज़ पेश-ए-ख़िदमत है गीता दत्त की आवाज़ में। दोस्तों, आपने ऐसा कई कई गीतों में सुना होगा कि प्रेमी अपनी प्रेमिका से कहता है कि जब तक यह दुनिया रहेगी, तब तक मेरा प्यार रहेगा; और जब तक चाँद सितारे चमकते रहेंगे, तब तक हमारे प्यार के दीये जलते रहेंगे, वगैरह वगैरह । लेकिन आज का जो यह गीत है वह एक क़दम आगे निकल जाता है और कहता है कि भले ही चाँद तारे चमकना छोड़ दें, लेकिन उनका प्यार हमेशा एक दूसरे के साथ बना रहेगा। आप समझ गये होंगे कि हमारा इशारा किस गीत की तरफ़ है। जी हाँ, फ़िल्म 'शर्त' का सदाबहार गीत "न ये चाँद होगा न तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे"। इस गीत को हेमंत कुमार ने भी गाया था लेकिन आज हम गीताजी का गाया गीत आपको सुनवा रहे हैं। गीत का एक एक शब्द दिल को छू लेनेवाला है, जिनसे सच्चे प्यार की कोमलता झलकती है। 'चाँद' से याद आया कि इसी फ़िल्म में 'चाँद' से जुड़े कुछ और गानें भी थे, जैसे कि लता और हेमन्तदा का गाया "देखो वो चाँद छुपके कर

मेरी जान तुम पे सदके...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 18 'ओ ल्ड इस गोल्ड' की एक और शाम लेकर हम हाज़िर हैं. आज की यह शाम थोडी शायराना है, जिसमें थोड़ी सी रूमानियत है, थोड़ी बेचैनी है, थोड़ी सी प्यास भी है, और थोड़ी सी चाहत भी. 60 के दशक के आखिर में संगीतकार ओ पी नय्यर के स्वरबद्ध गीत कम होने लगे थे. लेकिन जब भी किसी फिल्म को उन्होने अपना पारस हाथ लगाया तो वो जैसे सोना बन गया. 1966 में बनी फिल्म "सावन की घटा" आज अगर याद की जाती है तो सिर्फ़ उसके महकते हुए गीत संगीत के लिए. ओ पी नय्यर और एस एच बिहारी इस फिल्म के संगीतकार और गीतकार थे. इस फिल्म के लगभग सभी गीत 'हिट' हुए थे. आशा भोंसले और मोहम्मद रफ़ी ने ज़्यादातर गीत भी गाए इस फिल्म में. लेकिन एक गीत ऐसा था जिसे नय्यर साहब ने महेंद्र कपूर से गवाया. इसी गीत का एक दूसरा 'वर्जन' भी था जिसे आशाजी ने गाया था. "मेरी जान तुमपे सदके अहसान इतना कर दो, मेरी ज़िंदगी में अपनी चाहत का रंग भर दो". इसमें कोई शक़ नहीं की महेंद्र कपूर ने इस गीत में अपनी गायकी का वो रंग भरा है जो आज तक उतरने का नाम नहीं लेती. हालाँकि ओ पी नय्यर के चहेते गायक