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आखिर मैंने संगीत के लिए सब कुछ छोड़ दिया - रफीक शेख - एक मुलाकात ज़रूरी है

एक मुलाक़ात ज़रूरी है (४) गा यक संगीतकार रफीक शेख से हमारे पुराने श्रोता भली भाति परिचित है, अभी हाल ही में रिलीस हुई है, रफीक के आवाज़ और संगीत से सजी ग़ज़ल एल्बम "हमनफस". इसके आलावा रफीक बतौर संगीतकार कुछ मराठी फ़िल्में भी कर रहे हैं. आज के "एक मुलाक़ात ज़रूरी है" कार्यक्रम में आईये कुछ और करीब से महसूस करें रफीक के अब तक के संगीत सफ़र की दिलचस्प दास्तान 

कोई ग़ज़ल सुनाकर क्या करना....कहा रफीक शेख ने

एक अनाम शायर की मशहूर गज़ल को सुरों में ढालकर पेश कर रहे हैं रफीक शेख. सुनिए इस ताज़ा प्रस्तुति को - कोई गज़ल सुनाकर क्या करना, यूँ बात बढ़ाकर क्या करना तुम मेरे थे, तुम मेरे हो, दुनिया को बता कर क्या करना दिन याद से अच्छा गुजरेगा, फिर तुम को भुला कर क्या करना....

लायी हयात आये...रफीक शेख की मखमली आवाज़ में ज़ौक की क्लास्सिक शायरी

रफीक शेख  रफीक शेख रेडियो प्लेबैक के सबसे लोकप्रियक कलाकारों में से एक हैं, विशेष रूप से उनके गज़ल गायन के ढेरों मुरीद हैं. रेडियो प्लेबैक के ओरिजिनल एल्बम " एक रात में " में उनकी गाई बहुत सी गज़लें संगृहीत हैं. आज के इस विशेष कार्यक्रम में हम लाये हैं उन्हीं की आवाज़, एक नई गज़ल के साथ. वैसे गज़ल और गज़लकार के बारे में संगीत प्रेमियों को बहुत कुछ बताने की जरुरत नहीं है. इब्राहीम "ज़ौक" की इस मशहूर गज़ल से आप सब अच्छे से परिचित होंगें. इसे पहले भी अनेकों फनकारों ने अपनी आवाज़ में ढाला है, पर रेडियो प्लेबैक के किसी भी आर्टिस्ट के द्वारा ये पहली कोशिश है. लायी हयात आये कज़ा ले चली चले ना अपनी ख़ुशी आये ना अपनी ख़ुशी चले | दुनिया ने किसका राहे-फ़ना में दिया है साथ तुम भी चले चलो यूं ही जब तक चली चले | कम होंगे इस बिसात पे हम जैसे बदकिमार जो चाल हम चले वो निहायत बुरी चले |

शुभ दीपवाली - जब पूरा आवाज़ परिवार एक सुर हुआ रफ़ीक शेख के साथ आपको बधाई देने के लिए

आवाज़ महोत्सव ओरिजिनल संगीत में गीत # २१ दोस्तों, क्या आपने कभी महसूस किया है कि दीपावली के आते ही कैसे अपने आप ही हमारे अंदर एक नयी सी खुशी, नयी सी आशा का संचार हो जाता है. यही इन त्योहारों की खासियत है कि ये वातावरण में एक ऐसी सकरात्मक ऊर्जा को घोल देते हैं कि हर कोई खुश और मुस्कुराता नज़र आता है. दोस्तों यूँ तो आज आपका मोबाइल, ई मेल इन्बोक्स आदि शुभ संदेशों से भरे हुए होंगें, पर जिस अंदाज़ में आज आपको "आवाज़" शुभकामना सन्देश देने जा रहा है, वो सबसे अनूठा अनोखा है. हमने अपने पुराने साथी संगीतकार/गायक रफीक शेख के साथ मिलकर एक गीत खास आपके लिए बनाया है, दिवाली की बधाईयों वाला. शब्द पारंपरिक है और संगीत संयोजन खुद रफीक का है. तो इस गीत को सुनिए और मुस्कुरा कर इस पवन त्यौहार का आनंद लीजिए. इस बार जन्मी ये सकारात्मकता अब यूँहीं हम सब के अंग संग रहें. सुख समृधि और खुशियों से हम सबके जीवन सजे. एक बार फिर आप सबको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ. रफ़ीक़ शेख रफ़ीक़ शेख आवाज़ टीम की ओर से पिछले वर्ष के सर्वश्रेष्ठ गायक-संगीतकार घोषित किये जा चुके हैं। रफ़ीक ने दूसरे सत्र के सं

रफ़ी साहब- एक ऐसी आवाज़ जिसने जाने कितनी बार हम सब के जज़्बात अपने स्वरों में उकेरे है

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ४१ क ल ही हम यह बात कर रहे थे कि शक़ील साहब ने ज़्यादातर काम नौशाद साहब के साथ किया है, तो लीजिए इस मशहूर जोड़ी के नाम करते हैं आज की 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' कड़ी को। मुस्लिम सबजेक्ट पर बनी फ़िल्मों में 'मेरे महबूब' का शुमार उल्लेखनीय फ़िल्मों में होता है। इस फ़िल्म का गीत संगीत का पक्ष बेहद मज़बूत रहा और आज भी इसके गीतों इज़्ज़त से सुने जाते हैं। लीजिए आज इसी फ़िल्म का शीर्षक गीत पेश-ए-ख़िदमत है। क्योंकि आज हम इस गीत के रफ़ी साहब वाले वर्ज़न का रिवाइव्ड रूप सुनेंगे, इसलिए आइए एक बार फिर से रुख़ करते हैं नौशाद साहब द्वारा प्रस्तुत दो कार्यक्रमों की ओर जिनमें वो रफ़ी साहब की तारीफ़ कर रहे हैं अपने अंदाज़ में। विविध भारती के 'संगीत के सितारे' कार्यक्रम में नौशाद साहब ने रफ़ी साहब की तारीफ़ कुछ इस तरह से की थी - "एक फ़नकार को जो अहसासात होने चाहिये, वो रफ़ी साहब में भरपूर था। एक गीत था राग मधुमंती पर। गाना रिकार्ड होने के बाद रफ़ी साहब ने उसे सुना और बार बार सुनते रहे। बोले कि 'शोरगुल से हट कर यह गाना सितना सुकून दे रहा है!'

नौशाद - शकील की जोड़ी ने हिंदी फिल्म संगीत को जन जन का संगीत बनाया उसका सरलीकरण करके

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # २७ 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' में आज प्रस्तुत है शक़ील - नौशाद की एक रचना जिसे फ़िल्म के लिए मोहम्मद रफ़ी ने गाया था। फ़िल्म 'दुलारी' का यह गीत है "सुहानी रात ढल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे"। १९४९ का साल शक़ील-नौशाद के लिए एक सुखद साल रहा। महबूब ख़ान की फ़िल्म 'अंदाज़', ताजमहल पिक्चर्स की फ़िल्म 'चांदनी रात', तथा ए. आर. कारदार साहब की दो फ़िल्में 'दिल्लगी' और 'दुलारी' इसी साल प्रदर्शित हुई थी और ये सभी फ़िल्मों का गीत संगीत बेहद लोकप्रिय सिद्ध हुआ था। आज ज़िक्र 'दुलारी' का। इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे सुरेश, मधुबाला और गीता बाली। फ़िल्म का निर्देशन कारदार साहब ने ख़ुद ही किया था। आज के प्रस्तुत गीत पर हम अभी आते हैं, लेकिन उससे पहले आपको यह बताना चाहेंगे कि इसी फ़िल्म में लता जी और रफ़ी साहब ने अपना पहला डुएट गीत गाया था, यानी कि इसी फ़िल्म ने हमें दिया पहला 'लता-रफ़ी डुएट' और वह गीत था "मिल मिल के गाएँगे दो दिल यहाँ, एक तेरा एक मेरा"। एक और ऐसा युगल गीत था "रात रंगीली मस्त

दर्द और मुकेश के स्वरों में जैसे कोई गहरा रिश्ता था, जो हर बार सुनने वालों की आँखों से आंसू बन छलक उठता था

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # १५ हिं दी फ़िल्मों में विदाई गीतों की बात करें तो सब से पहले "बाबुल की दुयाएँ लेती जा" ज़्यादातर लोगों को याद आता है। लेकिन इस विषय पर कुछ और भी बहुत ही ख़ूबसूरत गीत बने हैं और ऐसा ही एक विदाई गीत आज हम चुन कर ले आये हैं। मुकेश की आवाज़ में यह है फ़िल्म 'बम्बई का बाबू' का गाना "चल री सजनी अब क्या सोचे, कजरा ना बह जाये रोते रोते" । मेरे ख़याल से यह गाना फ़िल्म संगीत का पहला लोकप्रिय विदाई गीत होना चाहिए। 'बम्बई का बाबू' १९६० की फ़िल्म थी। इससे पहले ५० के दशक में कुछ चर्चित विदाई गीत आये तो थे ज़रूर, जैसे कि १९५० में फ़िल्म 'बाबुल' में शमशाद बेग़म ने एक विदाई गीत गाया था "छोड़ बाबुल का घर मोहे पी के नगर आज जाना पड़ा", १९५४ में फ़िल्म 'सुबह का तारा' में लता ने गाया था "चली बाँके दुल्हन उनसे लागी लगन मोरा माइके में जी घबरावत है", और १९५७ में मशहूर फ़िल्म 'मदर इंडिया' में शमशाद बेग़म ने एक बार फिर गाया "पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली"। लेकिन मुकेश के गाये इस गीत में कुछ ऐस

राजेश रोशन को था अपनी धुन पर पूरा विश्वास जिसकी बदौलत सुनने वालों को मिला एक बेहद मनभावन गीत

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # ०६ रा जेश रोशन ने अपने करीयर में कई बार रबीन्द्र संगीत से धुन लेकर हिंदी फ़िल्मी गीत तैयार किया है। इनमें से सब से मशहूर गीत रहा है फ़िल्म 'याराना' का "छू कर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा"। आज इस गीत की बारी 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' में। क्योंकि यह गीत अंजान ने लिखा है, तो आज जान लेते हैं इस गीत के बारे में अनजान साहब के बेटे समीर क्या कह रहे हैं विविध भारती पर। "उन्होने (अंजान ने) मुखड़ा मुझे सुनाया "छू कर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा", मुझे लगा कि बहुत ख़ूबसूरत गाना बनेगा। मगर जब हम गाँव से वापस आए और सिटिंग् हुई और रिकार्डिंग् पर जब गाना पहुँचा तो संजोग की बात थी कि रिकार्डिंग् में जाने से पहले तक प्रोड्युसर ने वो गाना नहीं सुना था। और रिकार्डिंग् में जब प्रोड्युसर आया और उन्होने जैसे ही गाना सुना तो बोले कि रिकार्डिंग् कैन्सल करो, मुझे यह गाना रिकार्ड नहीं करना है। उन्होने कहा कि इतना बेकार गाना मैंने अपनी ज़िंदगी में नहीं सुना, इतना खराब गाना राजु तुमने हमारी फ़िल्म के लिए बनाया है, मुझे यह गाना रिकार्ड नहीं क

एक रात में सौ बार जला और बुझा हूँ...नए संगीत के तीसरे सत्र की शुरूआत, नजीर बनारसी के कलाम और रफीक की आवाज़ से

Season 3 of new Music, Song # 01 दो स्तो, कहते है किसी काम को अगर फिर से शुरू करना हो, तो उसे वहीं से शुरू करना चाहिए जहाँ पर उसे छोड़ा गया था. आज आवाज़ के लिए ख़ास दिन है. 29 दिसंबर को हमने जिस सम्मानजनक रूप से नए संगीत को दूसरे सत्र को अलविदा कहा था, उसी नायाब अंदाज़ में आज हम स्वागत करने जा रहे हैं नए संगीत के तीसरे सत्र का. हमने आपको छोड़ा था रफीक भाई की सुरीली आवाज़ पर महकती एक ग़ज़ल पर, तो आज एक बार फिर संगीत के नए उभरते हुए योद्धाओं के आगमन का बिगुल बजाया जा रहा हैं उसी दमदार मखमली आवाज़ से. जी हाँ दोस्तों, सीज़न 3 आरंभ हो रहा है नजीर बनारसी के कलाम और रफीक शेख की जादू भरी अदायगी के साथ. रफीक हमारे पिछले सत्र के विजेता रहे हैं जिनकी 3 ग़ज़लें हमारे टॉप 10 गीतों में शामिल रहीं, और जिन्हें आवाज़ की तरफ से 6000 रूपए का नकद पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था, इस बार भी रफीक इस शानदार ग़ज़ल के साथ अपनी जबरदस्त शुरूआत करने जा रहे हैं नए सत्र में। नजीर बनारसी की ये ग़ज़ल उन्हें उनके एक मित्र के माध्यम से प्राप्त हुई है, नजीर साहब वो उस्ताद शायर हैं जिनके बोलों को जगजीत सिंह और अन्य नामी फनक

कविता और संगीत का अनूठा मेल है "काव्यनाद"

ताज़ा सुर ताल ०८/२०१० सुजॉय - सजीव आज आपके चेहरे पर एक अजीब सी खुशी है, इसकी वजह... सजीव - हाँ सुजॉय मैं हिंद युग्म के अपने प्रोडक्ट "काव्यनाद" को विश्व पुस्तक मेले में मिली आपार सफलता और वाह वाही से बहुत खुश हूँ. सुजॉय - हाँ सजीव मैंने भी यह अल्बम सुनी, और सच कहूँ तो ये मेरी अपेक्षाओं से कहीं बेहतर निकली, इतनी पुरानी कविताओं पर इतनी मधुर धुनें बन सकती है, यकीं नहीं होता. सजीव - बिलकुल सुजॉय, ये इतना आसान हरगिज़ नहीं था, पर जैसा कि मैंने हमेश विश्वास जताया है युग्म के सभी संगीतकार बेहद प्रतिभाशाली हैं, ये सब कुछ संभव कर सकते हैं. सुजॉय - तो इसका अर्थ है सजीव कि आज हम इसी अनूठी अल्बम को ताज़ा सुर ताल में पेश करने जा रहे हैं ? सजीव - जी सुजॉय, काव्यनाद प्रसाद, निराला, दिनकर, महादेवी, पन्त, और गुप्त जैसे हिंदी के प्रतीक कवियों की ६ कविताओं का संगीतबद्ध संकलन है, ६ कविताओं को संगीत के अलग अलग अंदाज़ में प्रस्तुत किया गया है, कुल १४ गीत हैं, और सबसे अच्छी बात ये हैं कि सभी एक दूसरे से बेहद अलग ध्वनि देते हैं. सुजॉय - सबसे पहले मैं इसमें से उस गीत को सुनवाना चाहूँगा जो मुझे व्यक्ति

इस बार नर हो न निराश करो मन को संगीतबद्ध हुआ

गीतकास्ट प्रतियोगिता- परिणाम-6: नर हो न निराश करो मन को आज हम हाज़िर हैं 6वीं गीतकास्ट प्रतियोगिता के परिणामों को लेकर और साथ में है एक खुशख़बरी। हिन्द-युग्म अब तक इस प्रतियोगिता के माध्यम से जयशंकर प्रसाद , सुमित्रानंदन पंत , सूर्यकांत त्रिपाठी निराला , महादेवी वर्मा , रामधारी सिंह दिनकर और मैथिलीशरण गुप्त की एक-एक कविता संगीतबद्ध करा चुका है। इस प्रतियोगिता के आयोजित करने में हमें पूरी तरह से मदद मिली है अप्रवासी हिन्दी प्रेमियों की। खुशख़बरी यह कि ऐसे ही अप्रवासी हिन्दी प्रेमियों की मदद से हम इन 6 कविताओं की बेहतर रिकॉर्डिंगों को ऑडियो एल्बम की शक्ल दे रहे हैं और उसे लेकर आ रहे हैं 30 जनवरी 2010 से 7 फरवरी 2010 के मध्य नई दिल्ली के प्रगति मैदान में लगने वाले 19वें विश्व पुस्तक मेला में। इस माध्यम से हम इस कवियों की अमर कविताओं को कई लाख लोगों तक पहुँचा ही पायेंगे साथ ही साथ नव गायकों और संगीतकारों को भी एक वैश्विक मंच दे पायेंगे। 6वीं गीतकास्ट प्रतियोगिता में हमने मैथिली शरण गुप्त की प्रतिनिधि कविता 'नर हो न निराश करो मन को' को संगीतबद्ध करने की प्रतियोगिता रखी थी। इसमें

स्नेह निर्झर बह गया है कुछ यूँ संगीतबद्ध हुआ

गीतकास्ट प्रतियोगिता- परिणाम-3: स्नेह-निर्झर बह गया है देखते-देखते आज वह समय भी आ गया, जब हम गीतकास्ट प्रतियोगिता के तीसरे अंक के परिणाम प्रकाशीत व प्रसारित कर रहे हैं। मई महीने में शुरू हुई इस प्रतियोगिता का एक मात्र उद्देश्य यही था कि हिन्दी कविता के प्रतिमानों या यूँ कह लें आधार-स्तम्भों को संगीत से जोड़ा जाये ताकि नई पीड़ी भी उन्हें गुनगुना सके और अपने मन के आँगन में एक स्थान दे सके। इस प्रतियोगिता की शुरूआती दो कड़ियाँ 'अरुण यह मधुमय देश हमारा' और 'प्रथम रश्मि ' बहुत सफल रहीं। श्रोताओं ने बहुत पसंद किया। प्रतिभागिता बढ़ी। उसी का फल है कि तीसरे अंक में जब हमने निराला की एक मुश्किल कविता ' स्नेह-निर्झर बह गया है' चुना तो भी इसमें 18 प्रविष्टियाँ प्राप्त हुईं। हमने तीसरे अंक के लिए प्रविष्टि जमा करने की आखिरी तिथि रखी थी 31 जुलाई 2009। 30 जुलाई तक हमें मात्र 1 प्रविष्टि मिली थी, लेकिन 31 तारीख को यह बढ़कर 18 हो गईं। कविता मुश्किल तो थी ही, लेकिन हम पिछले 3 अंकों से एक और परेशानी का सामना कर रहे हैं, वह यह कि अलग-अलग प्रकाशन की पुस्तक में कविता की पंक्तियों

"तुझमें रब दिखता है..." रफीक ने दिया इस गीत को एक नया रंग

युग्म पर लोकप्रिय गीतों का चुनाव जारी है, कृपया इसे अचार संहिता का उल्लंघन न मानें. :) रफीक शेख दूसरे सत्र के गायकों में सबसे अधिक उभरकर सामने आये. अपनी तीन शानदार ग़ज़लों में उन्होंने गजब की धूम मचाई. हालांकि कभी कभार उन पर रफी साहब के अंदाज़ के नक़ल का भी आरोप लगा, पर रफीक, रफी साहब के मुरीद होकर भी अपनी खुद की अदायगी में अधिक यकीन रखते हैं. आप श्रोताओं ने अभी तक उनके ग़ज़ल गायन का आनंद लिया है, पर हम आपको बताते हैं कि रफीक हर तरफ गीतों को गाने की महारत रखते हैं. आज हम श्रोताओं को सुनवा रहे हैं रफीक के गाया एक कवर वर्ज़न फिल्म "रब ने बना दी जोड़ी" से. गीत है "तुझ में रब दिखता है यारा मैं क्या करुँ...." मूल गीत को गाया है रूप कुमार राठोड ने. रफीक ने इस गीत से साबित किया है कि उनकी रेंज और आवाज़ से वो हर तरह के गानों में रंग भर सकते हैं. तो सुनते हैं रफीक शेख को एक बार फिर एक नए अंदाज़ में -

मैं पैयम्बर तो नहीं, मेरा कहा कैसे हो

दूसरे सत्र के २७ वें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज अपनी पहली दो ग़ज़लों से श्रोताओं और समीक्षकों सभी पर अपना जादू चलाने के बाद रफ़ीक़ शेख लौटे हैं अपनी तीसरी और इस सत्र के लिए अपनी अन्तिम प्रस्तुति के साथ. शायर है इस बार मुंबई के दौर सैफी साहब, जिनके खूबसूरत बोलों को अपनी मखमली आवाज़ और संगीत से सजाया है रफ़ीक़ ने. तो दोस्तों आनंद लें हमारी इस नई प्रस्तुति का और हमें अपनी राय से अवश्य अवगत करवायें. सुनने के लिए नीचे के प्लयेर पर क्लिक करें - Rafique Sheikh is back again for the last time in this season with his new ghazal, "jo shajhar..." written by a shayar from Mumbai Daur Saifii Sahab, hope you enjoy this presentaion also as most of his ghazals so far has been loved by audiences and critics as well. to listen, please click on the player below - Lyrics - ग़ज़ल के बोल - जो शज़र सूख गया है वो हरा कैसे हो, मैं पैयम्बर तो नहीं, मेरा कहा कैसे हो. जिसको जाना ही नही, उसको खुदा क्यों माने, और जिसे जान चुके हैं वो खुदा कैसे हो, दूर से देख के मैंने उसे पहचान लिया, उसने इतना भी नही मुझसे

तेरा दीवाना हूँ...मेरा ऐतबार कर...

दूसरे सत्र के सत्रहवें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज - अपनी पहली ग़ज़ल "सच बोलता है..." गाकर रफ़ीक शेख ने ग़ज़ल गायन में अपनी पकड़ साबित की थी. आज वो लेकर आए हैं एक ताज़ी नज़्म -"आखिरी बार बस...". यह नज़्म रफ़ीक साहब की आवाज़ का एक नया अंदाज़ लिए हुए है, उनकी अब तक की तमाम ग़ज़लों से अलग इस नज़्म की नज़ाकत को उन्होंने बहुत बखूबी से निभाया है. रफ़ीक साहब की एक और खासियत ये है कि वो हमेशा नए शायरों की रचनाओं को अपनी आवाज़ में सजाते हैं. इस तरह वो हमारे मिशन में मददगार ही साबित हो रहे हैं. उनकी पिछली ग़ज़ल के शायर अज़ीम नवाज़ राही भी किसी ऐसे स्थान पर रहते हैं जहाँ इन्टरनेट आदि की सुविधा उपलब्ध नहीं है, यही कारण है कि हमें अब तक उनकी तस्वीर और अन्य जानकारियाँ उपलब्ध नहीं हो पायी हैं. लेकिन इस बार के रचनाकार मोइन नज़र के विषय में हमारे बहुत से श्रोता पहले से ही परिचित होंगे। मोइन नज़र वही शायर हैं जिनका कलाम 'इतना टूटा हूँ कि छूने से बिखर जाऊँगा, अब अगर और दुआ दोगे तो मर जाऊँगा' गाकर ग़ज़ल गायक गुलाम अली ने दुनिया में अपना परचम फहराया। मोइन नज़र साहब रेलवे में

मिलिए ग़ज़ल गायकी की नई मिसाल रफ़ीक़ शेख से

कर्नाटक के बेलगाम जिले में जन्मे रफ़ीक़ शेख ने मरहूम मोहम्मद हुसैन खान (पुणे)की शागिर्दी में शास्त्रीय गायन सीखा तत्पश्चात दिल्ली आए पंडित जय दयाल के शिष्य बनें. मखमली आवाज़ के मालिक रफ़ीक़ के संगीत सफर की शुरुवात कन्नड़ फिल्मों में गायन के साथ हुई, पर उर्दू भाषा से लगाव और ग़ज़ल गायकी के शौक ने मुंबई पहुँचा दिया जहाँ बतौर बैंक मैनेजर काम करते हुए रफ़ीक़ को सानिध्य मिला गीतकार /शायर असद भोपाली का जिन्होंने उन्हें उर्दू की बारीकियों से वाकिफ करवाया. संगीत और शायरी का जनून ऐसा छाया कि नौकरी छोड़ रफ़ीक़ ने संगीत को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया. आज रफ़ीक़ पूरे भारत में अपने शो कर चुके हैं. वो जहाँ भी गए सुनने वालों ने उन्हें सर आँखों पर बिठाया. २००४ में औरंगाबाद में हुए अखिल भारतीय मराठी ग़ज़ल कांफ्रेंस में उन्होंने अपनी मराठी ग़ज़लों से समां बाँध दिया, भाषा चाहे कन्नड़ हो, हिन्दी, मराठी या उर्दू रफ़ीक़ जानते हैं शायरी /कविता का मर्म और अपनी आवाज़ के ढाल कर उसे इस तरह प्रस्तुत करते हैं कि सुनने वालों पर जादू सा चल जाता है, महान शायर अहमद फ़राज़ को दी गई अपनी दो श्रद्धांजली स्वरुप ग़ज़लों क

सच बोलता है मुंह पर, चाहे लगे बुरा सा

दूसरे सत्र के तेरहवें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज. नए गीतों को प्रस्तुत करने के इस चलन में अब तक ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई कलाकार अपने पहले गीत के ओपन होने से पहले ही एक जाना माना नाम बन जाए कुछ इस कदर कि आवाज़ के स्थायी श्रोताओं को लगातार ये जानने की इच्छा रही कि अपने संगीत और आवाज़ से उन पर जादू करने वाले रफ़ीक शेख का गीत कब आ रहा है. तो दोस्तों आज इंतज़ार खत्म हुआ. आ गए हैं रफ़ीक शेख अपनी पहली प्रवष्टि के साथ आवाज़ के इस महा आयोजन में. साथ में लाये हैं एक नए ग़ज़लकार अजीम नवाज़ राही को, रिकॉर्डिंग आदि में मदद रहा अविनाश जी का जो रफ़ीक जी के मित्र हैं. दोस्तों हमें यकीन है रफ़ीक शेख की जादू भरी आवाज़ में इस खूबसूरत ग़ज़ल का जादू आप पर ऐसा चलेगा कि आप कई हफ्तों, महीनों तक इसे गुनगुनाने पर मजबूर हो जायेंगे. तो मुलाहजा फरमायें युग्म की नयी पेशकश,ये ताज़ा तरीन ग़ज़ल - " सच बोलता है ....." ग़ज़ल को सुनने के लिए नीचे के प्लेयर पर क्लिक करें - After creating a lot of buzz by his rendition of Ahmed Faraz sahab's ghazals (as a musical tribute to the legend) singer/composer Ra

जिंदगी से यही गिला है मुझे...

भारी फरमाईश पर एक बार फ़िर रफ़ीक शेख़ लेकर आए हैं अहमद फ़राज़ साहब का कलाम पिछले सप्ताह हमने सदी के महान शायर अहमद फ़राज़ साहब को एक संगीतमय श्रद्धाजंली दी,जब हमारे संगीतकार मित्र रफ़ीक शेख उनकी एक ग़ज़ल को स्वरबद्ध कर अपनी आवाज़ में पेश किया. इस ग़ज़ल को मिली आपार सफलता और हमें प्राप्त हुए ढ़ेरों मेल और स्क्रैप में की गयी फरमाईशों से प्रेरित होकर रफीक़ शेख ने फ़राज़ साहब की एक और शानदार ग़ज़ल को अपनी आवाज़ में गाकर हमें भेजा है. हमें यकीन है है उनका ये प्रयास उनके पिछले प्रयास से भी अधिक हमारे श्रोताओं को पसंद आएगा. अपनी बेशकीमती टिप्पणियों से इस नवोदित ग़ज़ल गायक को अपना प्रोत्साहन दें. ग़ज़ल - जिंदगी से यही... ग़ज़लकार - अहमद फ़राज़. संगीत और गायन - रफ़ीक शेख ghazal - zindagi se yahi gila hai mujhe... shayar / poet - ahmed faraz singer and composer - rafique sheikh जिदगी से यही गिला है मुझे, तू बहुत देर से मिला है मुझे. तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल, हार जाने का हौंसला है मुझे. दिल धड़कता नही, टपकता है, कल जो ख्वाहिश थी आबला है मुझे. हमसफ़र चाहिए हुजूम नही, एक मुसाफिर भी काफिला है मु